अब शिमला ही नहीं, मप्र में भी होगी सेब की खेती, जानिए कैसे

अब शिमला ही नहीं, मप्र में भी होगी सेब की खेती, जानिए कैसे

कटनी और खरगोन के किसान ले रहे पैदावार

भोपाल, सेब की खेती मध्यप्रदेश में भी हो सकती है ये सुनकर एक बार आश्चर्यजनक लग सकता है लेकिन ये सही है। अब मध्य प्रदेश में भी शिमला जैसे सेब की खेती संभव हो सकेगी। जबलपुर में स्थित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने रिसर्च के तौर पर 14 महीने पहले विश्वविद्यालय  के परिसर में सेब के कई सारे पौधे रोपे थे, जिनमें से अब बड़ी संख्या में फूल आए हैं।

शुरुआती रिजल्ट से काफी उत्साहित वैज्ञानिक
वैज्ञानिक इसकी शुरुआती रिजल्ट से काफी उत्साहित हैं। उनका अनुमान है कि फूल आने के बाद अब इससे फल बनने की प्रक्रिया की शुरुआत होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोरोना के समय में कृषि विवि में 14 महीने पहले सेब के 10 पौधे लगाये गए थे। जिनमें से तीन सूख गए बाकि बचे सातों पौधों में अच्छी ग्रोथ देखने को मिल रही है। पूर्व में अमरकंटक में सेब और नाशपाती की कई वर्षों पहले खेती होती रही है। कोविड के समय में कृषि विवि में 14 महीने पहले हिमाचल प्रदेश के शिमला से सेब की हरिमन-99 किस्म के 10 पौधे मंगवाए थे। तीन सूख गए। 7 पौधों में अच्छी ग्रोथ हुई है।

शिमला से लाया गया था पौधा
बता दें कि कृषि विवि ने जो सेब अपने परिसर में लगाए हैं वो सेब की हरिमन-99 किस्म है, जो कि हिमाचल प्रदेश के शिमला से लाया गया था। अब देखने वाली बात होगी की क्या वैज्ञानिकों की उम्मीद के मुताबिक इन फूलों में से फल निकलते हैं या नहीं। यदि फल भी उम्मीद के मुताबिक आते हैं तो ये किसानों के लिए एक वरदान साबित होगा।

किसानों के लिए वरदान साबित होगा
सभी पौधों में अच्छी मात्रा में फूल आए हैं। ये फल में परिवर्तित हो गए तो इस तापमान में सेब की खेती करना संभव हो जाएगा। ये हमारे किसानों के लिए वरदान साबित होगा। हरिमन-99 किस्म के सेब का पौधा 45 डिग्री का तापमान आसानी से सहन कर सकता है। अभी तक की संभावना अच्छी है। उम्मीद है कि फूल आए तो फल भी आएंगे। इससे यहां भी सेब के बागान तैयार करने का रास्ता खुलेगा।

खेती के लिए जबलपुर का मौसम अनुकूल
सेब के लिए जबलपुर का मौसम काफी अनुकूल माना जा रहा है। यहां साल भर धूप होती है। मिट्‌टी का Ph 5 से 7 के बीच होनी चाहिए। यहां की मिट्‌टी भुरभुरी है। इसके पौधे में पानी नहीं लगना चाहिए। पौधे के लिए ठंड जरूरी है, लेकिन पाला नहीं पड़ना चाहिए। यहां ठंड में तापमान औसतन 7 से 20 डिग्री तक रहता है। सेब के पौधे डेढ़ से तीन साल में फलने लगते हैं। फूल आने और फल पूरी तरह तैयार होने की प्रोसेस में 130 से 135 दिन लग जाते हैं।

कटनी में हो रही सेब की खेती
कटनी जिले के मदनपुर गांव में सामने आया। यहां किसान रमाशंकर कुशवाहा ने सेब की खेती की नई तकनीक अपनाई और सेब की फसल अब कश्मीर में ही नहीं कटनी में भी लहलहाने लगी। किसान ने बताया कि 16-17 माह में ही सेब फल देने लगे। किसान का अनुमान है अगले साल सेब से उन्हें और अधिक मुनाफा मिलेगा। उद्यानिकी विभाग की सलाह को किसान रमाशंकर ने अपनाते हुए सेब का बंफर उत्पादन किया। किसान ने बताया कि कटनी में तैयार होने वाली ग्राफ्टेड सेब की खासियत है कि इसके लिए कश्मीर जैसी कम तापमान की आवश्यकता नहीं है। सेब की यह फसल मध्यप्रदेश के तापमान में भी तैयार होती है और किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है।

खरगोन के किसान ने भी उगाए सेब
खरगोन के कसरावद में 8 वी पास 65 वर्षीय सुरेंद्र पाचोटिया ने अपनी खेती में अनेकों प्रयोग किये हैं। तीन वर्ष पूर्व ऐसा ही एक प्रयोग निमाड़ में एप्पल की खेती का शुरू किया था। जो आज पूरी सम्भावनाओं के साथ सामने आ रहा है। उनके खेत में लगाए गए 40 सेवफल के पौधों से 1 साल पहले ही फल पक चुके हैं। अपने सफल प्रयोग से उत्साहित होकर सुरेंद्र पाचोटिया ने सेवफल के 200 नए पौधे लगाकर खेती प्रारम्भ कर दी है। 

लगभग एक साल पहले अपने सेवफल के पौधों से सुर्खलाल रंग के फल आये तो सुरेंद्र उत्साहित होकर अपनी फेसबुक पोस्ट कर दिया। उनकी पोस्ट को दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के सूरीनाम देश में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक ने पसन्द करने के बाद उनकी सराहना की। तब से सुरेंद्र ने ठान लिया कि किसी न किसी दिन निमाड़ का अपना एप्पल भी होगा। जिसकी खेती भी होगी और बाजार में भी पसंद किया जाएगा।