ठंड के मौसम मेँ पशुओं की देखभाल कैसे करें
डॉ. ब्रजेश सिंह
डॉ. आनंद कुमार जैन
डॉ. रणवीर सिंह
पशु औषधि विभाग
पशु चिकित्सा और पशु पालन महाविद्यालय, जबलपुर, मप्र
सर्दियों में हमारे यहाँ तापमान 5-60 से 220 तक होता है। इस तापमान में जहाँ पशुओं से अत्यधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है वहीं पशुओं को ठंडी हवाओं के प्रकोप से बचाना भी जरूरी है। इसीलिए सर्दियों में पशु आवास का विशेष महत्व होता है।
पशु घर में प्रत्येक गाय-भैंस के लिये कम से कम 5.5 फिट चैड़ी एवं 10 फिट लम्बी पक्की जगह होनी चाहिए। फर्श खुरदुरा होना चाहिये तथा नाली के लिये सही ढलान होना चाहिए। पशुशाला की दीवार 4-5 फिट ऊँची होनी चाहिये बाकी में जाली लगाये।
सर्दियों में रात के समय इस जाली वाले भाग में टाट या बोरी को सिलकर पर्दे लगायें, जिससे ठंडी हवाओं से पशुओं को बचाया जा सके। पशु घर की पश्चिमी दीवार पर 2 फिट चैड़ा और 1.5 फिट गहरा नाद बनाना चाहिये। नाद का आधार भूमितल से 1 फिट ऊपर होना चाहिये। नाद के साथ स्वच्छ जल की भी व्यवस्था होनी चाहिये। पानी का नाद सप्ताह में दो दिन चूने से पोत दें इससे पशुओं में कैल्सियम की कमी नही होगी तथा पशुओं में होने वाले विभिन्न संक्रमणों से भी बचाव हो सकता है। सर्दियों में जरूरी है कि पशुओं खासकर नवजात बछड़ें एवं बछियों को सर्दी से बचाने के लिये फर्श पर पुवाल का विछावन डाले। इसकों समय-समय पर बदल दें जिससे इसमें नमी न आ जाये।
सर्दियों में पशु पोषण कैसे करें
एक वयस्क पशु को प्रतिदिन औसतन 6 किलो सूखा चारा और 15-20 किलों तक हरा चारा खिलाना चाहिये। फलीदार और बिना फलीदार हरे चारे को समान अनुपात में मिलाकर खिलाना चाहिये। हरे चारे की फसल को जब आधी फसल में फूल आ जाये तब काटकर खिलाना उपयुक्त रहता है। चारे को काटकर खिलाना लाभदायक होता है। सूखा चारा, हरा चारा, पशु आहार एवं खनिज मिश्रण मिलाकर सानी बनाकर प्रतिदिन 3-4 बार में देना चाहिये। इससे चारे की बर्बादी कम होती है और चारा सुपाच्य भी हो जाता है।
उपलब्ध चारे अथवा भूसे का अभाव कल के लिये संरक्षण कैसे करें
इस मौसम में 50-60 दिनों बाद बरसीम आना शुरू हो जाएगी। इस मौसम में चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है पर गर्मियों के मौसम में चारा उपलब्ध नही हो पाता इसलिए जरूरी है कि अभाव काल के लिये चारे का संरक्षण किया जाये जो कि 'हेÓ बनाकर किया जा सकता है। 'हेÓ मुलायम तने वाली घासों से बनाई जाती है इसके लिये फसल को काटकर 5-10 किलो के बंडल बनाते हैं। इन बंडलों को एक दूसरे के सहारे से खड़ा करके धूप में सुखायें। सूखने की प्रक्रिया में जगह बदलते रहें तकि बंडल ठीक से सूख जायें।
भूसे को भी यूरिया से उपचारित करके उसमें प्रोटीन की मात्रा बढाकर उसे ज्यादा पौष्टिक बनाया जा सकता है। इसके लिये 4 किलो यूरिया को 40 लीटर पानी में घोलें। यह मात्रा 100 किलो भूसे के लिये पर्याप्त होती है। 100 किलो भूसे को पक्के फर्श या कच्चे फर्श में प्लास्टिक की शीट के ऊपर इस तरह फैलायें कि पर्त की मोटाई लगभग 3-4 इंच रहे। इसके ऊपर यूरिया का घोल छिड़के फिर भूसे को पैरों से चल-चल कर या कूद-कूद कर दबायें। पुन: 100 किलो की भूसे की पर्त बनाये और यूरिया का घोल छिड़कें। इस तरह से 100-100 किलो की दस पतज़् बनायें एवं घोल का छिड़काव करने के बाद पैरों से दबाते जाए।
इस उपचारित भूसे को अब प्लास्टिक शीट से ढक दें और जमीन से छूने वाले किनारों पर मिट्टी अथवा पुवाल डाल दें एवं गोबर से लीप दें। इस तरह उपचारित भूसे के ढेर को गमीज़् में 21 दिन व सर्दी में 28 दिन के बाद खोलें। पशुओं को खिलाने से पहले भूसे को लगभगग 10 मिनट तक खुली हवा में फैला दें जिससे उसकी गैस निकल जाए। शुरूआत में पशु को उपचारित भूस थोड़ा-थोड़ा दे बाद में आदत पडऩे पर पशु बड़े चाव से भूसा खाने लगता है।
इस मौसम में पशुओं में कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती है
सर्दियों में पशुओं में विभिनन प्रकार के रोगों के होने की सम्भावना रहती है जिसमें प्रमुख है- पशुओं में सर्दी जुखाम के लक्षण, निमोनिया जो कि सर्दी लगने अथवा पशुशाला में अत्यधिक नमी के कारण पनपे जीवाणुओ द्वारा होता है। आने वाली रवी की फसल के समय यदि पशु अत्यधिक हरा चारा मुख्यत: बरसीम खा ले या कि उसके आहार में कोई आकस्मिक बदलाव हो तो अफरा/पेट फूलने/ठसवंज की समस्या हो सकती है। इस मौसम में नवजात बछड़ों या बछिया में जीवाणु या विषाणुओं द्वारा होने वाला दस्त भी प्रमुख रूप से पाया जाता है।
पशुओं का इन रोगों से बचाव कैसे करें
दस्त से नवजात के बचाव के लिये पशुशाला में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
जन्म से लेकर दो माह तक गोवंशों को अलग सूखे, स्वच्छ एवं पूर्ण हवादार स्थान पर रखें। समय समय पर निर्जमीकरण करें।
गोवंशों के रहने की जगह पर फर्श पर सर्दियों में पुवाल बिछायें तथा समय-समय पर इसको बदलते रहें।
ठंडी हवा के थपेड़ों से बचाने के लिये इनमे टाट/बोरे के पर्दों का इस्तेमाल करें। दिन के समय पर्दे हटा दें ताकि धूप आ सके।
गोवंशों को जन्म के )घंटे के अन्दर खीस अवश्य पिलायें इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमत बढती है।
नवजात बछड़े/बछिया को शरीर के बजन के हिसाब से दूध पिलायें।
दस्त से बचाव के लिये दूध को गरम करने के बाद ठंडा करके पिलायें।
क्रीमियों के द्वारा होने वाले रोगों से बचाव के लिये समय-समय पर पशु चिकित्सक की सलाह पर क्रीमिनाशक दवापान करायें।
अफरा रोग से बचाव के लिये हरा चारा अत्यधिक मात्रा में न दें तथा पशु आहार में आकस्मिक बदलाव न करें।
पशुओं को सर्दी के मौसम में दाने के साथ सरसों का तेल मिलाकर खिलायें इससे उन्हें उर्जा मिलेगी, उनका पाचन सही रहेगा ।
सर्दियों में खुरपका, मुॅहपका रोग होने की सम्भावना रहती है इससे बचाव के लिये टीकारण अक्टूबर महीने तक हो जाना चाहिये। पर यदि टीकाकरण न हुआ हो तो अतिशीघ्र टीकाकरण करायें। वाह्य परजीवी जैसे कि किलनी, जूँ इत्यादि से पशुओं का बचाव करें। इसके लिये पशुचिकित्सक से परामर्श प्राप्त कर दवा का इस्तेमाल करें। पशुओं में दिन में एक बार सख्त ब्रस से खुरैरा करें इससे वाह्य परजीवियों से बचाव होगा साथ ही साथ शरीर में रक्त का प्रवाह भी बढेगा और उनके उत्पादन में भी सुधार आएगा।