देसी मोटे अनाजों पर सुन्दर कविता, जरुर पढ़ें
मोटा अनाज जो काफी समय से लोगों की थाली से गायब है। जिसका परिणाम ये है कि तमाम बीमारियां लोगों को घेर रहीं हैं। अब भारत सरकार ने मोटे अनाजों को पिफर थाली में वापस लाने का प्रयास कर रही है। भारत के प्रस्ताव पर 72 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है। अब पूरी दुनिया में मोटे अनाजों से जोड़कर कई आयोजन किए जा रहे हैं। एक तरफ राज्य सरकारें किसानों को मोटे अनाज उागाने के लिए प्रेरित कर रही हैं तो वहीं लोगों को थाली तक इसे पहुंचाने के लिए भी जागरुकता किया जा रहा है। वैसे तो दुनिया में मिलेट की 13 वैरायटी मौजूद है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 के लिए 8 अनाजों- बाजरा, रागी, कुटकी, संवा, ज्वार, कंगनी, चेना और कोदो को शामिल किया गया है।
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ऐसे समय में किसी ने मोटे अनाजों पर अतिसुंदर एक कविता लिखी है, जिसे कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक राजेश द्विवेदी ने शेयर किया है, जो मोटे अनाजों की थिति पर प्रकाश डालती है...
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यह 'रागी' हुई अभागी क्यों? चावल की किस्मत जागी क्यों?
जो 'ज्वार' जमी जन-मानस में, गेहूँ के डर से भागी क्यों?
यूँ होता श्वेत 'झंगोरा' है। यह धान सरीखा गोरा है।
पर यह भी हारा गेहूँ से, जिसका हर कहीं ढिंढ़ोरा है!
जाने कितने थे अन्न यहाँ? एक-दूजे से प्रसन्न यहाँ।
जब आया दौर सफेदी का, हो गए मगर सब खिन्न यहाँ।
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अब कहाँ है वो 'कोदो'-'कुटकी'? 'साँवाँ' की काया भटकी कहां।
संन्यासी हुआ 'बाजरा' अब, गुम हो गई 'कंगणी' कुटकी है।
अब जिसका रंग सुनहरा है। सब तरफ उन्हीं का पहरा है।
अब कौन सुने मटमैलों की, गेहूँ का साया गहरा है।
यह देता सबसे कम पोषण। और करता है सबसे ज्यादा शोषण।
तोहफे में दिए रसायन भर, माटी-पानी किया अवशोषण।
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यह गेहूँ धनिया-सेठ बना। उपभोगी मोटा पेट बना।
जो हज़म नहीं कर पाए हैं, उनकी चमड़ी का फेट बना।
अब आएँगे दिन 'रागी' के। उस 'कुरी', 'बटी', बैरागी के।
अब 'राजगिरा' फिर आएगा और ताज गिरें बड़भागी के।
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जब हमला हो 'हमलाई' का। छँट जाए भरम मलाई का।
चीनी पर भारी 'चीना' हो, टूटेगा बंध कलाई का।
बीतेगा दौर गुलामी का। गोरों की और सलामी का।
जो बची धरोहर अपनी है, गुज़रा अब वक्त नीलामी का।
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नोट :-रागी,ज्वार, झंगोरा, कोदो, कुटकी, साँवाँ, बाजरा, काँगणी, कुरी, बटी, चीना राजगिरा, हमलाई ये सब विभिन्न प्रकार के अन्न (millets) हैं, जो गेहूँ और चावल की साज़िश के शिकार होकर लुप्तप्राय हो चुके हैं।