राजमा की खेती किसानों को कर सकती है मालामाल, जानिए कैसे करें खेती और उन्नत बीज
भोपाल, भारत में राजमा की डिमांड काफी ज्यादा है, जो कई व्यंजनों में इस्तेमाल होता है। भारत में सबसे ज्यादा मशहूर हिमालयन रीजन में उगने वाला राजमा है, जिसके निर्यात देशभर में किया जाता है। ऐसे में यह किसानों के लिए काफी बढ़िया खेती का विकल्प हो सकता है। राजमा एक प्रकार की दाल है, जिसमें कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं। राजमा में एंटी-ऑक्सिडेंट्स, फाइबर, आयरन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम और कई प्रकार के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही राजमा के सेवन से वजम कम करने में मदद मिलती है और किडनी, हृदय, हड्डी, मधुमेह, कैंसर, ब्लड प्रेशर नियंत्रण, कब्ज संबंधी रोग में काफी फायदेमंद होता है। राजमा अपने आप में एक पोषक आहार है, जिसकी खेती भारत के कई राज्यों में होती आ रही है।
राजमा की खेती उपयुक्त मिट्टी और खेत की तैयारी
राजमा की खेती आम तो सभी मिट्टी में कर सकते है। लेकिन राजमा की फसल को अच्छी वृद्धि और ज्यादा उपज के लिए किशान को राजमा की खेती हल्की दोमट मिट्टी में करनी चाहिए। क्यों की हल्की दोमट मिट्टी में जल निकाशी अच्छी होती है। और भारी चिकनी मिट्टी में भी राजमा की खेती कई किशान करते है और अच्छी उपज भी प्राप्त करते है।
राजमा की खेती करे उस जमीन का पी.एच मान 5 से लेकर 7 के बिच होना बेहद जरूरी है। क्यों की 5 से 7 का P.H मान राजमा की खेती के लिए अच्छा माना जाता है और इस प्रकार की मिट्टी में राजमा के पौधे बहुत अच्छी वृद्धि एवं उपज देते है।
राजमा की खेती के लिए मिट्टी की तैयारी इस प्रकार करनी चाहिए की जैसे हम मुमफली की खेत की तैयारी करते है। इसी तरह हमें 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी होगी ट्रैक्टर के हल या कल्टीवेटर की मदद से गहरी जुताई करनी होगी। मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए। और आखरी तुड़ाई से पहले सड़ा हुआ गोबर या कंपोस्ट एक हेक्टर में 10 से 15 टन डाल के मिट्टी में अच्छे से मिला देनी चाहिए। इन के आलावा भी फास्फोरस, पोटाश, एवं नाइट्रोजन मिट्टी में मिला सकते है।
राजमा की उन्नत किस्में
भारत में राजमा की कई किस्मों का उत्पादन होता है, जो कि बेहतर मुनाफे के साथ स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। ऐसे में किसान भाईयों के लिए राजमा की कई किस्मों का उत्पादन करने का विकल्प है, जिसे किसान अपने खेत में उगा सकते हैं।
पी.डी.आर 14 : इस किस्मे की राजमा के दाने लाल रंग का और चित्तीदार होते है। और दाने थोड़े बड़े साइज के होते है। कही लोग तो इसे उदय के नाम से भी जानते है। इस किस्मे में पैदावार 125 से लेकर 130 दिनों में पक के तैयार हो जाती है। और एक हेक्टर में से 35 से 40 क्विंटल की पैदावार होती है।
मालवीय 137 : राजमा की इस किस्मे के रंग गहरा लाल होता है। इस वेराइटी को तैयार होने में 110 से लेकर 115 दिन लगते है। और उपज में 30 से 35 क्विंटल तक हो शक्ती है।
अम्बर : इस किस्मे के दाने चित्तीदार और लाल रंग के होते है। इस किस्मे के पौधे जल्द वृद्धि करते है और उपज थोड़ी कम अति है। एक हेक्टर में से 20 से 30 क्विंटल तक की उपज आति है।
एच.यू.आर 15 : इस किस्मे के दाने सफ़ेद रंग के होते है। इस किस्मे को पक के तैयार होने में 120 से 130 दिन लगते है। एक हेक्टर में से 20 से 25 क्विंटल तक की उपज आति है।
उत्कर्ष : इस किस्मे के दाने गहरे लाल रंग के होते है। इस किस्मे को पक के तैयार होने में 125 से 130 दिन लगते है। एक हेक्टर में से तक़रीबन 20 से 30 क्विंटल तक की उपज आति है।
बी.एल. 63 : इस किस्मे के दाने भूरा रंग के होते है। इस किस्मे को पक के तैयार होने में 110 से 120 दिन लगते है। एक हेक्टर में से 15 से 20 क्विंटल तक की उपज आति है।
वी.एल. 125 : इस किस्मे की खेती ज्यादा तर उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी विस्तार में होती है। इस किस्मे के फल में 4 से 6 के बिच निकल ते है। इस बीज का वजन अच्छा होता है।
मालवीय-15, मालवीय-137, पी।डी.आर -14, वीएल-63 अंबर, उत्कर्ष, आईआईपीआर 96-4, अम्बर, एच.यू.आर15, उत्कर्ष, बीएल 63, आईआईपीआर 98-5, अरुण और हूर इन के आलावा भी कई सारी किस्मे है राजमा की खेती की बुवाई के लिए।
कब और कैसे बुवाई करते है
खरीफ में बुआई का समय – 20 जून से 20 जुलाई के बीच, फसल अवधि – 110 से 140 दिन
रबी में बुआई का समय – 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच
राजमा की खेती पंक्तियों में करते है। इस राजमा की प्रत्यक पंक्तियों की दुरी 35 से 45 सेंटीमीटर नी रखनी होगी। और बुवाई में राजमा के पौधे से पौधे की दुरी 10 सेंटीमीटर रख शकते है।
अगर एक हेक्टर के हिसाब से बीज की मात्रा 3 से 4 किलिग्राम काफी है। लेकिन राजमा के बीज की बुवाई से पहले बीज उपचार करना बेहद जरूरी है। बीज उपचार में आप 2 से 3 ग्राम थीरम को एक किलिग्राम में अच्छे से मिला के बुवाई करनी चाहिए। राजमा के बीज थोड़े कठोर होते है इस लिए बुवाई के बाद अंकुरित होने में थोड़े दिन लगते है। राजमा के बीज बुवाई के बाद 15 से 20 दिन का वक्त लगते है।
बीज की मात्रा
राजमा की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 50 से 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है ।
बीज उपचार
राजमा के बीज को बुवाई से पहले उपचारित करे । बीज उपचार करने के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम को प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर उपचारित करे ।
बुआई का तरीका
फसल बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखे ।
खाद कब और कितना
राजमा की खेती में योग्य समय पर खाद दाल के हम राजमा की उपज में बड़ोतरी कर शकते है। और किशान अच्छी उपज के कारण मुनाफा भी ज्यादा कर सकते है।
राजमा की खेती में आखरी जुताई से पहले 15 से लेकर 20 टन सड़ा हुआ गोबर या कम्पोस्ट अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए। इस के आलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटाश भी मिट्टी में मिला शकते है
नाइट्रोजन एक हेक्टर में 100 से लेकर 110 किलोग्रेम में और फास्फोरस 50 से लेकर 60 किलोग्राम एवं पोटाश 25 से लेकर 30 किलोग्राम एक हेक्टर के हिसाब से दे शकते है।
नाइट्रोजन : नाइट्रोजन पौधे को वातावरण में से 80% किलता है और 4% पानी के माध्यम से मिलता है। इस के आलावा एक हेक्टर में हम 100 से 110 किलोग्राम नाइट्रोजन दे शकते है। नाइट्रोजन का मुख्य कार्य है पौधे या बेल अच्छे से वृद्धि करना।
फास्फोरस : हम एक हेक्टर में फास्फोरस 50 से 60 किलोग्राम दे शकते है। इस का माप जमीन की H.P मान के हिसाब से कम या ज्यादा दे शकते है। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे या बेल पर फूल की वृद्धि, फल की वृद्धि और पौधे में रोग प्रति कारक शक्ती बढ़ा देना। इस के आलावा भी ए तत्व कार्य करते है फल के आकर को बढ़ाता है।
पोटाश : हम एक हेक्टर में पोटाश 25 से 30 किलोग्राम दे शकते है। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे के जड़ो को विक्षित ता वृद्धि करना और कई रोग एवं कीट से पौधे को बचाते है। इस के कारण पौधे या बेल की जड़ मजबूती से जमीन के साथ जुड़ जाती है। पोटाश देने से पौधे की कोशिका की दीवारे मजबूत होती है और तने या बेल के कोष्ट की बड़ोतरी करते है।
सिंचाई कब
राजमा की खेती में सिंचाई की आवश्यता बहुत कम होती है। राजमा की खेती में 2 से लेकर 4 बार ही सिंचाई करनी चाहिए। 2 से 4 बार सिंचाई से राजमा के फसल पक के तैयार हो जाती है। राजमा की खेती में पहेली सिचाई बीज बुवाई के ठीक 15 से 25 दिन बाद कर लेनी चाहिए। दूसरी सिंचाई एक निराई या गुड़ाई के बाद कर लेनी चाहिए और पौधे को जमीन के साथ मजबूती से जोड़ने के लिए थोड़ी मिट्टी पौधे की आस पास चढ़ा देनी चाहिए।
जब पौधे पर फूल अंकुरित होने लगते है तब फूल की मात्रा फसल में बढ़ाने के लिए और पौधे से फूल जड़ के गिरना जाये इस लिए। बाद में जब फूल में से फल बने तब फल की अच्छी वृद्धि के लिए फल में रहे बीज की अच्छी वृद्धि के लिए एवं फल में मौजूदा बीज को सम्पूर्ण रुप से परिपक हो जाने के लिए सिंचाई करनी चाहिए।
रोग एवं कीट और उपचार
राजमा की खेती में कई प्रकार के रोग एवं कीट लगते है। अगर इस रोग एवं कीट की बात करे तो जड़ गलन, माहु , पान कथिरी, थ्रिप्स, सफेद मक्खी, और कीट की बात करे तो हरा तेला, हरी इली, जैसे रोग एवं कीट राजमा की फसल में दिखाई देते है।
इन रोग एवं किट का सहि वक्त पर नियंत्रण करना बेहद जरूरी है। नहीं तो राजमा की सारी फसल बरबाद करते है ए रोग एवं कीट। इस लिए सही समय पर योग्य दवाई का छिटकाव कर के राजमा के पौधे या फसल में लगाने वाले रोग एवं कीट से मुक्त करना चाहिए।
जड़ गलन : इस रोग को लगने से पौधे की जड़ो सूखने लगती है और धीरे धीरे पौधा जमीन से
उपचार: इस रोग उपचार में हम कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानीके साथ घोल मिलके पर एक पौधे पीर 50मिली ग्राम पोधेकी जाड़मे सिंचाई करना चाहिए और छिटकाव भी कर शकते है।
माहु : इस कीट के वजे से पौधे का विकास या पौधे की वृद्धि अटक जाती है। जब इस कीट का अटेक पौधे या फसल में होता है तब पौधे पर माहु के माल के कारण पौधा चिकना होजाता है
उपचार: इस कीट के उपचार में हम टाटा कंपनी का एपलोड बूप्रोफेज़िन 25% SC 16लीटर पानी में 35 मिलीग्राम मिलाके छिड़काव 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव कीजिए।
पान कथिरी : इस कीट को आप पौधे की पत्तिया के निचले भाग में दिखाई देते है। इस के कारण पौधे के पतों कोकदवा जाते है।
उपचार: इस कीट उपचार में हम जीवाग्रो मिटिगेट 5% EC और नागार्जुन का मेन्टल फिप्रोनील 7% + हेक्सीथाएजोक्स 2% SC 16 लीटर पानी के साथ 25 मिलीग्राम मिलके छिटकाव करे।
थ्रिप्स : इस कीट की वजे से पौधे के पतों जमीन की तरफ मुड़ ने लगती है और बाद में धीरे धीरे पौधे से गिरने लगती है।
उपचाई: इस किट के उपचार में हम बायार कंपनी का रीजैंट थिप्रोनिल 5% और पीआई कम्पनी का कोलफोर्स और इथियोन 40% + साईपर मेथिरिन 4%EC 16 लीटर पानी के साथ 35 मिलीग्राम मिला के छिटकाव करना चाहिए।
सफेद मक्खी : इस सफ़ेद मक्खी के वजे से पौधे के पतों में मौजूदा रस चूस लेते है और पत्तिया धीरे धीरे सुख के पौधे से जमीन पर गिर जाती है।
उपचार : इस सफ़ेद मक्खी के उपचार में हम बीएसेफ कंपनी का सैफीना एफीडोपायरोपेन 50% L DC 16 लीटर पानीके साथ 40 मिलीग्राम मिलाके छिटकाव करना चाहिए।
हरा तेला : इस हरा तेला पौधे पर लगने से पौधे की पतों एवं फल दोनों को नुकशान पहोचाता है। और पौधा धीरे धीरे वाइरस ग्रस्त हो जाता है
हरी इली : इस हरी इली के कारण पौधे में जो फूल एवं फल है इसे बहुत नुकशान करते है। इस हरी इली से उपज में भी हमे बहुत नुकसान होता है।
उपचार: इस हरी इली के उपचाई में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 ऐ मेल 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
राजमा की फसल से उपज
एक हेक्टर में से 25 से 30 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकते है।
120-130 दिनों में पक जाती है फसल
राजमा बुवाई के 120-130 दिनों में पक जाता है, जिसको नमी से दूर करने के लिए 3-4 दिन धूप में सुखाना पड़ता है। जब 3-4 दिन हो जाएं तो, भूसे को राजमे से अलग करके फलियों से दाना चटकर गिरकर बिखर सकते हैं। जिसमें राजमा की उपज 1 हैक्टेयर में 25-30 क्विंटल तक की हो जाती है।