उन्नत बीजों का प्रयोग, फसल में बढ़ जाता है 20 प्रतिशत उत्पादन

उन्नत बीजों का प्रयोग, फसल में बढ़ जाता है 20 प्रतिशत उत्पादन

डॉ. चंचल भार्गव
डॉ. रिया ठाकुर
जनेकृविवि, कृषि विज्ञान केन्द्र, छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश
उन्नत बीज वह होता है, जिसमें आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत हो,अन्य फसल एवं खरपतवार के बीजों से रहित हो, रोग व कीट के प्रभाव से मुक्त हो, अंकुरण क्षमता उच्च कोटि की हो, खेत में जमाव और अन्तत: उपज अच्छी हो। उन्नत बीज वह होता है जो रोगों के प्रतिरोधक हो और प्रदेश की जलवायु के अनुसार हो। कई बार किसान ऐसे बीजों की बुवाई कर देते हैं, जिससे उत्पादन घट जाता है और किसान को उम्मीद के अनुसार लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए प्रामाणिक उन्नत बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज के प्रयोग से ही लगभग 20 प्रतिशत उत्पादकता/उत्पादन में वृद्वि की जा सकती है।  
पौधे का वह भाग, जिसमें भ्रूण अवस्थित होता है और इसकी अंकुरण क्षमता, आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्वता तथा नमी आदि मानकों के अनुरूप होने के साथ ही बीजजनित रोगों से मुक्त होता है-उसको बीज कहा जाता है। बुवाई के पूर्व कृषक भाई किस्मों के चयन व अन्य समसामयिक सलाह हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकतें है। इस दिशा में कृषि विज्ञान केन्द्र तत्परता से निरंतर कार्य कर रहे हैं। किसानों को बीज का चयन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत है।
कृषकों को बुवाई के पूर्व बीज चयन हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- जिस बीज में आनुवंशिक तथा प्रजातीय शुद्धता हो अर्थात् बीज में किस्म के अनुरूप आकार, प्रकार, रंग, रूप तथा भार के लक्षण हों, अच्छा बीज माना जाता है।
- फसल सघनता बढ़ाने कम अवधि में पकने वाली व अधिक पैदावार देने वाली फसलों के बीज उपयोग करना चाहिए।
- प्रतिवर्ष संकर किस्मों के नए बीज प्रयोग करने चाहिए। पिछले वर्षों के बीज उपयोग से पैदावार कम मिलती है।
- चयन किए गए बीज किस्मों को लगातार तीन चार वर्ष के बाद बुवाई के काम में नहीं लेना चाहिए।
- बीज शुद्ध एवं साफ होना चाहिए तथा किसी फसल या किस्म के बीज में अन्य फसलों या किस्मों के बीज का मिश्रण नहीं होना चाहिए। शुद्ध एवं स्वस्थ बीज में अंकुरण क्षमता के साथ-साथ प्रारम्भिक बढ़ाव की क्षमता अधिक होती है।
- बीज का रोग रहित होना अनिवार्य है। अत: ऐसा बीज उपयोग करना चाहिए, जिसमें पूर्व में कोई रोग न लगा हो। रोगी बीज में रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होने से या तो वह अंकुरित नहीं होता अथवा अंकुरण के बाद मर जाता है।
- लगभग हर बीज के दाने, वजन एवं आकार में एक समान होना चाहिए। शीघ्र एवं एक समान अंकुरण हेतु अच्छा बीज ओज होना आवश्यक है। बीज ओज से तात्पर्य बीज की उस प्राकृतिक और शरीर क्रियात्मक स्वस्थता से है, जिसमें तीव्रता से एक समान अंकुरण होता है और पौधा विकसित होता है।
- बीज की अंकुरण क्षमता की जांच कर लेना चाहिए। अंकुरण क्षमता के अनुसार ही इकाई क्षेत्र में निश्चित पौध संख्या को बरकरार रखा जा सकता है अन्यथा उपचार विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- बीज के दाने पूर्ण और परिपक्व होना चाहिए।
- बीज में आद्र्रता मात्रा जब निर्धारित स्तर 10-15: से अधिक होती है तो भंडारण के दौरान बीज की अंकुरण क्षमता व बीज गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़़ता है।

बीज की अंकुरण क्षमता का आंकलन

बीज की अंकुरण क्षमता की शीघ्र जानकारी प्राप्त करने हेतु बीज को रातभर पानी में भिगो देते हैं। सुबह बीजों को 2-3-5 टेट्राजोलियम क्लोराइड या ब्रोमाइड के 1: घोल में 2-4 घंटों तक डुबोते हैं। जीवित बीजों में श्वसन होता है तथा मरे हुए बीज श्वसन नहीं कर सकते हैं। रंगहीन टेट्राजोलियम, भ्रूण के एन्जाइम के सम्पर्क में आकर भ्रूण की जीवित कोशिकाओं को लाल रंग में बदल देता है। इस टेस्ट को टेट्राजोलियम या टी टेस्ट कहते हैं। कुछ बीजों को गिनकर जमीन के एक कोने में अच्छी तरह से बो देना चाहिए अंकुरण पश्चात् अंकुरित पौधों को गिन लेना चाहिए फिर निम्न सूत्र प्रयोग करके अंकुरण प्रतिशत ज्ञात किया जा सकता है।

उन्नत बीज आप भी पैदा कर सकते हैं

उन्नत सुधरे बीजों की सुलभ उपलब्धि हेतु कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विभाग, मप्र राज्य बीज निगम व राष्ट्रीय बीज निगम तत्परता से कार्य कर रहे हैं। किन्तु प्रयासों के पश्चात् भी कई बार कृषकों को उन्नत बीज उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। इन परिस्थितियों में कृषकों को अपने प्रक्षेत्र पर स्वयं बीजोत्पादन करना चाहिए। बीजोत्पादन हेतु कृषकों को निम्न तकनीकी जानकारी होना चाहिए। 

आधार बीज का उपयोग

बीजोत्पादन हेतु आधार बीज अधिक उपयुक्त होता है। प्रजनक बीज से जो बीज उत्पादित किया जाता है उसे आधार बीज कहते हैं। यह बीज इस प्रकार उत्पन्न किया जाता है कि विशेष मानकों के अनुसार इसमें अनुवांशिक गुण और शुद्धता बनी रहती है।

खेत की तैयारी

जिस खेत में बीज उत्पादन कार्यक्रम लेना है उसको गर्मी में अच्छी तरह से जुताई कर बिखरना चाहिए ताकि खरपतवार पूरी तरह से नष्ट हो जाए तथा गर्मी से जमीन में छिपे कीट नष्ट हो जाएं। पौधों को समुचित वृद्धि हेतु भूमि की भौतिक दशा, भूपरिष्करण क्रिया द्वारा सुधारना अति आवश्यक है। अच्छी तरह से भुरभुरी मिट्टी में समुचित जल तथा वायु का शोषण संचार होता रहता है। अत: बीजोत्पादन वाले खेत की उचित जुताई वबखरनी कर खेत को समतल रखना चाहिए। 

गोबर की अच्छी पकी खाद का उपयोग करें

गोबर व कम्पोस्ट खाद उपयोग में सावधानी रखना आवश्यक है। यह ध्यान रखें कि खाद पूर्ण रूप से पकी व पची होना चाहिए अन्यथा बाद में खरपतवार के बीज आ जायेंगे, जिसमें फल विपरीत रूप से प्रभावित होगी खाद के साथ नुकसानदायक जीवाणु व दीमक आदि आने की संभावना भी बनी रहती है। अत: भूमि में इमिडाक्लोप्रिड अथवा फिब्रोनिल बोनी पूर्व मिट्टी में मिला देना चाहिए।

बीजोपचार एक जरूरी आवश्यकता है

कुछ बीजजन्य रोग जैसे बीज सडऩ, जड़ सडऩ, पदगलन पत्तों का धब्बा झुलसन तथा कण्डुआ आदि रोग बीज के द्वारा ही फैलकर फसल वृद्धि तथा उत्पादकता को प्रभावित  करते हैं। इन फफूंदों से बीज को सुरक्षित करने हेतु फफूंदनाशक औषधियों से बीजोपचार करना बहुत जरूरी है। यह गीले व सूखे दोनों तरीकों से किया जा सकता है। सूखी विधि में उपयुक्त बीज मात्रा तथा फफूंदनाशक दवा की सिफारिश मात्रा सोड ट्रीटिंग ड्रम में डालकर 10 मिनिट तक घुमाने से दवा बीजों पर परत रूप में चढ़ जाती है फिर यह बीज बुवाई के लिए उपयोग करें। इस ड्रम की अनुपलब्धता में घड़े का उपयोग भी कर सकते हैं। जबकि गोली विधि में फफूंद नाशक दवा का पानी में घोल बनाकर सिफारिश बीज मात्रा को इस घोल में 10 मिनट डुबोकर निकालें और फिर बोनी करें।

विजातीय पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें

बीज की शुद्धता बनाए रखने हेतु खेत में समय-समय पर भ्रमण के दौरान फसल में उगते हुए विजातीय पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
समय-समय पर निंदाई गुड़ाई करें: कृषकों को खेत का नियमित निंदाई, गुड़ाई करते रहना चाहिए। जिससे कि अवांछित पौध नष्ट हो जाएगे साथ ही साथ भूमि में जड़ों के पास उचित वायु संचार होता है। इससे भूमि में उपस्थित जल कोशिकाएं भी टूट जाती हैं फलस्वरूप भूमि में अनावश्यक जल वाष्पन भी रुकता है।

आवश्यक पौध संरक्षण उपाय अपनाएं

अधिकांशत: कृषक कीट व्याधियों की रोकथाम हेतु पूर्व से ही सतर्क नहीं रहते हैं। इनका प्रकोप होने के पश्चात् उनकी रोकथाम हेतु उपाय ढूंढते हैं। तब तक बीज रोग ग्रस्त या कीटों द्वारा प्रभावित हो चुका होता है। इससे प्राप्त बीज की गुणवत्ता में प्रतिकूल रूप असर होता है। अत: कृषक बीजोत्पादन में कीट व्याधियों का विशेष ध्यान रखें। जैसे ही इनका प्रारम्भिक प्रकोप दिखे तब तुरन्त ही आवश्यक पौध संरक्षण उपाय अपनाते हुए उन्हें नियंत्रित करें।

कटाई पर ध्यान देना बहुत आवश्यक

फसल में बीज जब पूर्ण रूपेण परिपक्व हो जाए तभी सही समय व उचित नमी स्तर पर कटाई करें उसके पहिले या बाद में नहीं। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि कटाई में पौधे जड़ सहित न उखड़ आए, वर्ना बीजों में मिट्टी भी आ जाती है जिस पर बाद में सफाई हेतु अनावश्यक व्यय होता है।

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