कार्य योजना उपयुक्त हो तो कम वर्षा भी बन सकती है वरदान: डॉ. मेघा दुबे

कार्य योजना उपयुक्त हो तो कम वर्षा भी बन सकती है वरदान: डॉ. मेघा दुबे

डॉ. आरडी बारपेटे
डॉ. मेघा दुबे
भारतीय मौसम विभाग ने अध्ययन के अनुसार इस वर्ष खरीफ 2023 में मध्य भारत के अधिकांष क्षेत्रों में 20 से 40 प्रतिषत तक वर्षा में कमी की आषंका व्यक्त की गई। जून एवं जुलाई के माह में सामान्य से कम (20 से 40 प्रतिशत) वर्षा का अनुमान है। मप्र के अधिकांश जिलों में सोयाबीन, मक्का एवं धान खरीफ के मौसम में 90 प्रति. तक क्षेत्राच्छादन करती हैं। मौसम विभाग की भविष्यवाणी को ध्यान में रख खरीफ कार्य योजना में निम्न प्रौद्योगिकी को अपनाएं तो कम वर्षा भी हमारे शुद्ध लाभ को कम नहीं कर पाएगी।

फसलों का चयन: खरीफ की कार्य योजना बनाते समय कम पानी में पकने वाली फसलों को प्राथमिकता देवें। कम से कम 20-25 प्रतिशत क्षेत्र में ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, सांवा, मूंग, उड़द, आदि में से कोई दो या तीन फसलों को स्थान देवें। ये फसलें न सिर्फ कम पानी में उत्पादित होती हैं, बल्कि फसल चक्र के लाभ भी प्रदान करती हैं। इन सभी फसलों की उत्पादन लागत भी सोयाबीन, मक्का, धान आदि से कम हैं। अतएव ये शुद्ध लाभ को बढ़ाएंगी।

प्रजातियों का चयन: प्रमुख फसलें जैसे सोयाबीन की शीघ्र पकने वाली प्रजाति जे.एस. 20-34, जे.एस. 95-60 आदि, मक्का की हायेसेल, जे.एम.-216, आदि, धान की दंतेष्वरी, बी.व्ही.डी. 109 आदि को स्थान दें। ये प्रजातियां अल्प वर्षा की स्थिति में भी लाभदायक रहती हैं।

बोने की विधि: सोयाबीन एवं मक्का को अनिवार्य रूप से मेडऩाली पद्धति से बुवाई करें। मेडऩाली पद्धति से बोनी करने पर अतिवृष्टि में जल निकास एवं अल्पवृष्टि में नमी संरक्षण होता है। धान की भी रोपाई विधि के स्थान पर सीधी बोनी करें। इस तकनीकी में भी कम पानी की आवष्यकता होती है। मक्का, धान, ज्वार आदि की मानसून पूर्व शुष्क बोनी करें। मानसून के आगमन पर पैनी नजर रखें एवं आगमन की संभावना होने पर शुष्क बोनी करें। कुटकी, सांवा आदि फसलों को भी छिटकवा विधि से न बोयें एवं कतार में बोनी करें। लम्बी बतर की स्थिति में इन फसलों में भी कोल्पे चलाकर नमी का संरक्षण किया जा सकता है।

खरपतवार प्रबंधन: खरीफ फसलों में खरपतवारों से सर्वाधिक हानि होती है। वर्तमान समय में अंकुरण के पश्चात् प्रयुक्त होने वाले खरपतवारनाषियों का बहुतायत से प्रयोग हो रहा है। इन रसायनों को नमी की अवस्था में ही उपयोग कर सकते हैं और अल्पवर्षा की स्थिति में इन रसायनों का प्रयोग कठिन हो जायेगा। अत: बोनी के पश्चात् एवं अंकुरण के पूर्व प्रयोग होने वाले पेंडीमिथेलिन (1 लीटर प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करें। जिन फसलों की शुष्क बोनी की हैं, उन फसलों में वर्षा होने पर अगले 3 दिन के अंदर इस दवाई का या ज्वार, मक्का में अट्राजिन 2.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें। रासायनिक खरपतवार प्रबंधन के अलावा कोल्पे चलाने की तैयारी भी रखें। यह कार्य खरपतवार प्रबंधन के साथ-साथ नमी संरक्षण भी करेगा।

उर्वरक प्रबंधन: खरीफ फसलों में पोषक तत्त्वों की संपूर्ण मात्रा रासायनिक उर्वरक से न दें। संपूर्ण पोषक तत्त्व रासायनिक उर्वरक से देने के पश्चात् यदि नमी की कमी हुई तो फसलों को अधिक हानि होती है और लागत भी अधिक होती है। अत: आधी मात्रा रासायनिक उर्वरकों से एवं आधी मात्रा जैविक उर्वरकों से या केंचुआ खाद, गोबर की खाद के माध्यम से देवें। ये जैव/कार्बनिक खाद भूमि की जैविक, रासायनिक एवं भौतिक दषा को ठीक करते हैं तथा नमी संरक्षण के साथ हवा का संचार सुधारते हैं जिससे विपरीत परिस्थिति में भी उत्पादन हानि कम होती है।

सोशल मीडिया पर देखें खेती-किसानी और अपने आसपास की खबरें, क्लिक करें...

- देश-दुनिया तथा खेत-खलिहान, गांव और किसान के ताजा समाचार पढने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म गूगल न्यूजगूगल न्यूज, फेसबुक, फेसबुक 1, फेसबुक 2,  टेलीग्राम,  टेलीग्राम 1, लिंकडिन, लिंकडिन 1, लिंकडिन 2टवीटर, टवीटर 1इंस्टाग्राम, इंस्टाग्राम 1कू ऐप से जुडें- और पाएं हर पल की अपडेट