घोड़ों में खुजली रोग का उपचार                    

घोड़ों में खुजली रोग का उपचार                    

- डॉ.शिवम सिंह मेहरोत्रा 

- डॉ. आर.के बघेरवाल

- डॉ.हेमंत मेहता

- डॉ. मुकेश शाक्य
(पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय महू)

घोड़ों में खुजली होना आम बात है। घोड़ों में खुजली (जिसे प्रुरिटस भी कहा जाता है) एक सामान्य लक्षण है जो कीड़े के काटने, त्वचा संक्रमण या एलर्जी का संकेत हो सकता है। हालांकि यह कभी-कभार ही जानलेवा होता है, लेकिन खुजली के लिए तुरंत पशु चिकित्सक की मदद की ज़रूरत होती है, क्योंकि खुजली से जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। समय के साथ अनुपचारित संक्रमण और भी बदतर हो सकता है, और घोड़े खुरदरी सतहों पर रगड़कर अपनी त्वचा को और अधिक परेशान या नुकसान पहुंचा सकते हैं, ताकि वे खुद को खरोंचने की कोशिश कर सकें। गंभीर मामलों में, घोड़े अपनी त्वचा को काट सकते हैं, जिससे वे खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं

घोड़ों में खुजली रोग कीटों द्वारा होता है जिसमें त्वचा लाल रंग की हो जाती है। बाल उड जाते हैं तथा चमड़ी मोटी हो जाती है। यह रोग सारकोौष्टिक, सौरोष्टिक तथा कोरियोष्टिक माइट्स द्वारा होता है।

कारण

यह एक प्रकार के बाहय परजीवी खुजली कीट (माइट्स) द्वारा होता है। जो निम्न तीन प्रकार के होते हैं।सारकोप्टिक स्केबियाई , सोरोष्टिक , कोरियोष्टिक ये कीट एक से दूसरे जानवर में सम्पर्क, साफ करने के उपकरण, बिछावन, घर की धूल, झूल, झालन आदि से फैलते हैं।

रोग व्यापकता

प्रायः खुजली रोग घोड़ों में एक दूसरे से संपर्क व सफाई व खुजली करने के उपकरण आदि से भी यह घोड़ों में फैलता है। यह रोग आमतौर पर सभी उम्र के घोड़ों को प्रभावित करता है तथा सभी प्रजाति के घोड़े इससे प्रभावित होते हैं।
लखण
मुख्य रूप से मुंह पर, आंखों के पास, कान में, कान के नीचे, पीठ व टांगों पर खुजली के लक्षण दिखायी देते हैं।
गंभीर खुजली के कारण घोड़ा अधिक जोर से खुजलाता है, जिससे त्वचा पर चोट या क्षति हो सकती है।घोड़े की त्वचा में खुजली होती है वह किसी बाहय कठोर चीज से खुजली करता है व एक दूसरे से भी रगड़ते हैं जिससे त्वचा में चोट लगती है व कभी-कभी वहां से खून भी निकलता है। त्वचा मोटी हो जाती है व प्रभावित त्वचा से बाल उड़ जाते हैं। काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। 
पूंछ रगड़ना खुजली की एक आम प्रतिक्रिया है, जिससे पूंछ घिस सकती है या बाल झड़ सकते हैं। घोड़ों द्वारा वस्तुओं से खुद को खरोंचने से उनके शरीर पर मौजूद बालों के हिस्से भी झड़ सकते हैं या उनके अयाल के हिस्से घिस सकते हैं।

निदान

इस रोग का निदान लक्षणों तथा विकृति से किया जाता है। पूर्ण निदान के लिए त्वचा की छीलन का सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षण किया जाता है जिसमें खुजली कीट को देखा जाता है।
खुजली का विस्तृत इतिहास निदान पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है, जिसमें शामिल हैं
           खुजली कितने समय पहले शुरू हुई थी , यह कितनी नियमितता से होता है , घोड़े के जीवन या पर्यावरण में कोई भी हालिया परिवर्तन, आजमाए गए उपचार या घरेलू उपचार ,इस समय घोड़े के संपर्क में आने वाले जानवर  , अन्य निदान में शामिल हैं: त्वचा खुरचना , सूक्ष्मदर्शी से बालों की जांच ,त्वचा बायोप्सी , जीवाणु या कवक संवर्धन

उपचार

उपचार अंतर्निहित कारण पर निर्भर करता है, और इसमें एलर्जीन इम्यूनोथेरेपी, एंटीबायोटिक्स, एंटीपैरासिटिक दवाएं और खुजली को कम करने के लिए दवा शामिल हो सकती है। अंतर्निहित कारण के आधार पर निवारक उपाय भी सुझाए जा सकते हैं, जैसे कि कीट विकर्षक, घोड़े के वातावरण से एलर्जी को हटाना, या नियमित रूप से कृमिनाशक दवा देना।
            उपचार के लिए कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिसमें 'सैविन' या 'मैलाथियान' या 'पैस्टोवैन' प्रमुख हैं। पानी में दवा का घोल बनाकर ये मशीन से प्रभावित त्वचा पर छिड़काव कर देना चाहिए। वैसे त्वचा में या मांस पेशी में आइवरमैक्टिन का टीका लगाने से भी खुजली में आराम मिलता है।

बचाव व रोकथाम

बचाव के लिए अच्छे घोड़ों को बीमार से अलग रखना चाहिए। 
इनके उपकरण, काम करने वाले व्यक्ति आदि भी अलग रहने चाहिए।
बचाव के लिए आइवरमैक्टिन के टीके लगवाने चाहिए। जिससे बाहृय व अन्तः परजीवी सभी से बचाव हो जायेगा।
घोड़े मलिक को त्वचा की रखरखाव के लिए अच्छे से मालिश (ग्रूमिंग) करनी चाहिए।
घोड़े को अच्छा राशन और साफ सुथरा पीने का जल प्रदान करें।
यह समस्या के लक्षण दिखने पर तुरंत ही पशु चिकित्सक से सलाह अवश्य लेना चाहिए।

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