नीम: एक महत्वपूर्ण जैविक कीटनाशी औषधीय वृक्ष

नीम: एक महत्वपूर्ण जैविक कीटनाशी औषधीय वृक्ष

डॉ. रिया ठाकुर
डॉ. चंचल भार्गव
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय , कृषि विज्ञान केंद्र छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश
नीम एक महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष है, जिसका भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में विशेष स्थान है। इसके पेड़ के पत्ते, छाल, फल, और तेल, सब उपयोगी है। नीम में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो इसे त्वचा रोग, दंत समस्याओं, और संक्रमण के इलाज में प्रभावी बनाते हैं। इसका उपयोग मलेरिया, डायबिटीज, और पाचन तंत्र के रोगों में भी होता है। कृषि में नीम का तेल जैविक कीटनाशक के रूप में प्रयुक्त होता है, जो फसलों को हानिकारक कीटों से बचाता है। नीम का पेड़ पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि यह वायु को शुद्ध करता है।
नीम कीटनाशियों के गुण: पौधों, पशुओं, स्तनधारियों, पानी, मिट्टी व पर्यावरण के लिये पूर्ण सुरक्षित होते हैं। इनमें जैव क्रियाशीलता धीमी, टिकाऊ व बिना अवशेषी प्रभाव वाली होती है। सुगमता से उपलब्ध है तथा कम समय में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। कम खर्चीले होते हैं । इनको सुगमता से कच्चे माल से प्राप्त किया जा सकता है। उत्पाद की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी करते हैं तथा उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है। अध्ययनों से यह भी ज्ञात हुआ है कि पौध उत्पाद मित्र कीट व सूक्ष्म जीवाणु पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है। इनको किसान स्वयं तैयार कर सकता है। क्योंकि इसके लिये विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। उत्पादन लागत कम होती है।
हमारे देश में नीम के पौधे विस्तृत रूप से पाये जाते है। जिसके विभिन्न उत्पादों से कीट व्याधियों का नियंत्रण आसानी से किया जाता सकता है। वर्तमान में नीम आधारित बहुत से उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं। देश में ऐसी प्रौधोगिक इकाईयाँ है जो विभिन्न उत्पादों का उत्पादन कर रही है। अब हमारे लिए आवश्यक है कि हम इन्हीं उत्पादों का उपयोग दिनों-दिन अनुसंधानों द्वारा बढ़ायें एवं कृषकों को इनकी उपयोगिता के बारे में विस्तार एवं प्रसार के द्वारा विस्तृत जानकारी दें। जिनके द्वारा कृषक भाई इन नीम एंव नीम के उत्पादों को अपनी खेती की तकनीक में सम्मिलित करना चाहिए। इससे समेकित नाशीजीव प्रबंधन, जैविक खेती एवं पर्यावरण संतुलन के मूल भूत सिद्धातों को बल मिलेगा।
नीम का कीटों पर प्रभाव: नीम के उत्पाद कीटों की विभिन्न अवस्थाओं को प्रभावित करते हैं। नीम के वृक्ष से तैयार किये जाने वाले विभिन्न उत्पाद कीटों के लिये बहुउपयोगी हारमोन्स का - आकार प्रकार पर निर्धारण करते हैं। कीटों का शरीर इन नीम के तत्वों को सोख लेता है। ये हार्मोन्स प्रणाली को सुचारू रूप से चलने में व्यवधान उत्पन्न करते हैं तथा कीटों के स्वभाव एवं शरीर में परिवर्तन पैदा करते हैं। जिससे कीटों का मस्तिष्क एवं प्रजनन कार्य करने के लिये व्यवधान उत्पन्न हो जाता है एवं उनकी संख्या सीमित रह जाती है। यही प्रभाव नीम के सत्व में देखने को मिला। अनुसंधान के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विभिन्न नीम के उत्पादों का उपयोग एवं कार्यक्षमता कीटों के प्रबंधन में विभिन्न रूप से कार्य करती हैं।
1. अण्डों, इल्ली एवं शंखी के वृद्धि को रोकना एवं नष्ट करना। 2. इल्ली में शारीरिक परिवर्तन की क्रिया को प्रतिबंधित करना। 3. मैथून आदान प्रदान के संकेतों में व्यवधान उत्पन्न करना । 4. इल्ली एवं व्यस्क में अलगाव पैदा करना। 5. मादा में अण्डा देने की प्रकृति को अक्षम या कम करना। 6. इल्ली एवं वयस्क में विषैले प्रभाव के द्वारा अक्षमता लाना। 7. वयस्क में नपुंसकता पैदा करना। 8. निगलने की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न करना। 9. भोज्य पदार्थों को ग्रहण करने में परहेज करना। 10. कायटिन नाम पदार्थ के निर्माण में अवरूद्ध पैदा करना।
उत्पादन तकनीकी: फलों को एकत्रित करना: पके हुए फलों को हाथ से चुनकर तोड़ सकते हैं तथा टुटे हुए फलों को एकत्रित कर सकते हैं। यदि पेड़ के नीचे सफाई हो तो झाडू द्वारा भी एकत्रित किया जा सकता है। सड़े गले फलों को हटा देना चाहिए। फलों को रोज प्रात: एकत्रित करना चाहिए।
कीटनाशक के रूप उपयोग विधि: फसलों में नीम का मुख्य उपयोग जैविक कीटनाशक के रूप में किया जाता है।
फसलों पर रस चूसक कीटों से बचाव के लिए वर्टीसिलियम लैकानी 75 ग्राम व नीम तेल 30 मिली का छिड़काव 15 लीटर पानी में मिलाकर करें।
नीम के तेल की 2 प्रतिशत मात्रा को पानी में मिलाकर फसलों में 7 से 10 दिन के अंतराल में छिड़कने से कीट जनित रोग नहीं लगते। इसके अलावा इसके घोल का छिड़काव पौधों पर करने से वायरस जनित पाउडरी मिल्डयू जैसे रोगों से भी छुटकारा मिलाता है। हैं। टिड्डी की रोकथाम के लिये नीम तेल का उपयोग कीट की चौथी अवस्था में किया जाता है तो इसके परिणाम शत प्रतिशत मिले हैं।
रस चुसक कीटों के लिए ताम्बे के पात्र में 10 लीटर छाछ उसमें 500 ग्राम नीम की निबोली कूटकर डालें। 1 किलो धतुरा के पत्ते कूटकर डाले और 15 दिन बाद 1 लीटर को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
नीम की पत्तियों को पानी में 1:2 के अनुपात में मिलाकर मिश्रण बना लें उसके बाद मिश्रण को 10 प्रतिशत पानी बचने तक उबालकर उसका अर्क तैयार कर लें इस अर्क को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कने से भूरा फुदका, रस चूसने वाले कीटों और हरा फुदका जैसे रोग नहीं लगते।

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