इंडो-जर्मन कॉरपोरेशन ने शुरू किया पायलट प्रॉजेक्ट, यूरोप जाएगा लखनऊ का आम
लखनऊ, अभी तक उप्र के आम का निर्यात यूरोपीय देशों में नहीं किया जाता है। काफी प्रयास के बावजूद सपफलता नहीं मिल पाई, अब उप्र से आम का निर्यात करने की राह आसान होगी। इसके लिए इसके लिए केंद्र सरकार ने जर्मनी के साथ मिलकर पहल की है। इंडो-जर्मन कॉरपोरेशन ने एफपीओ के जरिए इस साल लखनऊ के किसानों के साथ पायलट प्रॉजेक्ट शुरू किया है। यूरोप के बाजार को ध्यान में रखते हुए बागवानों से आम की फसल तैयार करवाई जाएगी। इन देशों की मांग के अनुसार उसके ट्रीटमेंट से लेकर निर्यात तक मदद की जाएगी।
उत्पादन की तुलना में निर्यात मात्र 0.015%
अभी उप्र से बहुत कम आम का निर्यात होता है। साल 2019 में अब तक का सबसे ज्यादा निर्यात हुआ जो कि 841.38 मीट्रिक टन था। प्रदेश में आम का उत्पादन लगभग 58 लाख मीट्रिक टन है। उत्पादन की तुलना में निर्यात मात्र 0.015% है। इसमें भी ज्यादातर निर्यात सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, ओमान और मस्कट जैसे खाड़ी देशों में होता है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में निर्यात नहीं होता। इसके लिए कापफी प्रयास भी किए गए, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है।
क्या है प्रॉजेक्ट
केंद्र सरकारद ने फल और सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कुछ राज्यों को पायलट प्रॉजेक्ट दिए हैं। इसी कड़ी में जर्मनी के सहयोग से आम के लिए इंडो-जर्मन कॉरपोरेशन ने एग्रीकल्चर मार्केट डेवलेपमेंट प्रॉजेक्ट उप्र सरकार को दिया है। इसमें बागवानों को ग्लोबल एग्रीकल्चर प्रैक्टिसेज के तहत प्रशिक्षित किया जाएगा। बागवानों को जोड़ने के लिए इसमें एफपीओ इरादा फाउंडेशन का सहयोग लिया है। इरादा फाउंडेशन के डायरेक्टर दया शंकर बताते हैं कि इस साल लखनऊ के 10 बागवानों का रजिस्ट्रेशन ग्लोबर गैप नंबर के लिए करवाया गया है।
बागवानों और आम का ब्योरा इस गैप नंबर से कहीं से भी हासिल किया जा सकेगा। यही नहीं, यह भी पता चल सकेगा कि इन्होंने अच्छी एग्रीकल्चर प्रैक्टिस अपनाई या नहीं। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है। इन बागवानों को यूरोप के मार्केट के अनुसार आम की फसल तैयार करने के लिए कहा गया है। इनको बताया जा रहा है कि किस तरह वे कम से कम व ऐसे कीटनाशक इस्तेमाल किए जाएं जिनका दुष्प्रभाव न होता हो। उन्हें आम तोड़ने, रखने, धुलाई और सहेजने तक की जानकारी दी जा रही है।
आम के निर्यात से पहले ट्रीटमेंट भी जरूरी
यूरोप के देशों में आम के निर्यात से पहले ट्रीटमेंट भी जरूरी है। यूरोप कई देश वेपर हॉट ट्रीटमेंट(वीएचटी) और इरीडेशन जैसे ट्रीटमेंट की मांग करते हैं, तभी वहां पर आम बेचा जा सकता है। प्रॉजेक्ट में चुने गए नबीपनाह के किसान उपेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके बागों का निरक्षण कर लिया गया है। अब तय मानकों के अनुसार ही आगे आम की फसल तैयार करने को कहा गया है। उप निदेशक कृषि विपणन एवं कृषि विदेश व्यापार डॉ। सुग्रीव शुक्ला कहते हैं कि प्रॉजेक्ट का मकसद यही है कि यूरोप के देशों में यूपी का आम निर्यात हो, जिससे बागवानों को ज्यादा लाभ मिल सके।