किसानों को सहयोग देने में जिला कृषि-मौसम कार्यालयों की भूमिका
ऋषिका पारदीकर
स्वतंत्र, पर्यावरण पत्रकार
शरद पवार समूह की राज्यसभा सांसद फौजिया खान ने 6 अगस्त, 2024 को मानसून सत्र के दौरान 199 जिला कृषि-मौसम इकाइयों को बंद करने के निर्णय की और ध्यान आकर्षित किया। डा. खान के अनुसार, 'स्वधानित प्रणालियों मानवीय भागीदारी की जगह नहीं से सकती हैं तथा स्थानीय सहकारों के अद्वितीय मूल्यों को खत्म नहीं किया जा सकता।
29 अगस्त, 2024 को पे्रस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (1949 से भारत की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद समाचार एजेंसी) ने बताया कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ग्रामीण कृषि मौसम सेवा योजना के तहत जिला कृषि मौसम इकाइयों को पुनर्जीवित करने की योजना बना रहा है।
आईएमडी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से 2018 में 199 डीएएमयूएस की स्थापना की। इसका उद्देश्य विकासखण्ड स्तर पर मौसम के आंकडों का उपयोग कर कृषि सलाह तैयार कर प्रसारित करना था। मार्च, 2024 में आईएमडी द्वारा जारी एक आदेश के बाद डीएएमयूएस को बंद कर दिया गया।
क्यों महत्वपूर्ण हैं कृषि-मौसम इकाइयां?
भारत में नरशय 70प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत है। वे दशकों से चले आ रहे कृषि संकट की पृष्ठभूमि में बड़े पैमाने पर वर्षा आधारित खेती करते हैं, जो अब जलवायु परिवर्तन से संबंधित मौसम परिवर्तनशीलता से प्रभावित है। जानवायु बदान रही है। मानसून की शुरुआत और वापसी की तिथियों बदल गई हैं। हम लंबे समय तक भूखे और भारी बारिश के दौर भी देखते हैं। किसानों को यह जानकारी होनी चाहिए क्योंकि इससे पहले प्रकाशित होती है पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माध्वन राजीवन ने द हिंदू को बताया। डीएएमयूएस कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) में स्थित थे। मौसम विज्ञान और कृषि में प्रतिक्षित वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को डीएएमयूएस स्टाफ के रूप में भर्ती किया गया था। उन्होंने डीएएमयूएस द्वारा उपलब्ध करार गए मौसम के आंकड़ों जैसे कि वर्षा, तापमान और हवा की गति का उपयोग बुवाई और कटाई, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग, सिंचाई आदि से संबंधित कृषि समाह तैयार करने के लिए किया। ये सलाह पूरे देश में लाखों किसानों को स्थानीय भाषाओं में सप्ताह में दो बार नि:शुल्क भेजी जाती थी। इन्हें टेक्स्ट मैसेज, व्हाट्सएप ग्रुप, समाचार पत्रों और डीएएमयूएस कर्मचारियों और केवीके अधिकारियों के व्यक्तिगत संचार के माध्यम से भी साझा किया जाता था। चूंकि ये सलाह मौसम की जानकारी पहले से ही दे देती थी, इसलिए इससे किसानों को सिंचाई जैसी गतिविधियों की योजना बनाने में मदद मिलती थी। ये सबाह सूखे और भारी बारिश जैसी चरम पटनाओं के लिए भी प्रारंभिक चेतावनी के रूप में काम करती थी। पिछले कुछ वर्षों में किए गए कई अध्ययनों ने कृषि-मौसम सजाइ के जाओं पर जोर दिया है।
डीएएमयूएस को क्यों बंद कर दिया गया?: आर्टिकल 14 की रिपोर्ट के अनुसार, नीति आयोग ने डीएएमयूएस की भूमिका को गलत तरीके से पेश किया और निजीकरण की भी मांग की। नीति आयोग ने झूटर दावा किया कि कृषि-मौसम डेटा स्वचालित है. जिससे डीएएमयूएस कर्मचारियों की भूमिका कम हो गई। वास्तव में डीएएमयूएस कर्मचारियों ने डीएएमयूएस द्वारा मौसम के आंकड़ों के आधार पर कृषि सलाह तैयार करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। ये सलाह जिलों में विकासखण्ड स्तर पर तैयार की गई और फिर स्थानीय भाषाओं में किसानों को बताई गई। नीति आयोग ने ऐसी सेवाओं के मुद्रीकरण की भी मांग की, जबकि मौजूदा योजना के अनुसार सभी किसानों को कृषि-मौसम की जानकारी मुफ्त में दी जाती है।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय बैंगलोर (कर्नाटक) के प्रोफेसर डा. एमएन थिम्मेगौड़ा जी ने कहा, डीएएमयूएस को बंद करना कोई बुद्धिमानी भरा निर्णय नहीं था। देश भर के किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए योजना को मजबूत किया जाना चाहिए था।
फरवरी में गुजरात स्थित एसोसिएशन ऑफ एग्रोमेटोरोलाजिस्ट ने प्रधानमंत्री जी को पत्र निखकर कृषि-मौसम इकाइयों को बंद करने के निर्णय के बारे में गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की, साथ ही इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे डीएएमयूएस में कृषक समुदाय के बीच जलवायु लचीलापन बनाने में मदद की। उसी महीने, केंद्रीय मंत्री नितिन बडकरी जी ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में वर्तमान राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह को पत्र लिखकर सेवाओं को जारी रखने की मांग की।
निजी कंपनियों के बारे में क्या?
वर्तमान में, मौसम संबंधी सलाह देने वाले क्षेत्र में मु_ी भर निजी कंपनियां हैं। लेकिन ऐसी सेवाओं की वहनीयता के बारे में गंभीर चिंताएं हैं। डॉ थिम्मेगौड़ा ने कहा, 'निजी कंपनियों लाभ के उद्देश्य से काम करती हैं एवं छोटे और सीमांत किसानों के लिए कीमतें बहुत ज्यादा हो जाती हैं. जो कि बहुसंख्यक हैं। उदाहरण के लिए, विचार करें कि कैसे कुछ कंपनियों वर्तमान में अपनी सप्ताह के लिए वार्षिक सदस्यता के लिए प्रति फसल 10,000 रुपये का शुल्क लेती हंै। इसका मतलब है कि सब्जियां और अनाज उगाने वाले कई किसानों के लिए 20,000-40,000 रुपये का निवेश होगा। कुछ कंपनियों कृषि संबंधी समाह के लिए वार्षिक सदस्यता के लिए 60,000-80,000 रूपये तक की उच्च दर भी लेती हैं।
इसके अलावा, डॉ थिम्भेगौड़ा ने बताया कि उर्वरकों आदि के उपयोग से संबंधित कृषि-मौसम संबंधी सलाह में पक्षपात हो सकता है। 'उवज़र््रको और कीटनाहकों में उनकी सिफारिशें कुछ ब्रांडों के प्रति पक्षपाती हो सकती हैं।
> भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से आईएमडी ने 2018 में 199 जिला कृषि-मौसम इकाइयों की स्थापना की। इसका उद्देश्य आईएमडी से मौसम डेटा का उपयोग करके विकासखण्ड स्तर पर कृषि सलाह तैयार कर प्रसारित करना था।
> डीएएमयू स्टाफ ने आईएमडी द्वारा उपलब्ध कराए गए मौसम संबंधी आंकड़ों जैसे वर्षा, तापमान और हवा की गति केन उपयोग बुवाई और कटाई, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग, सिंचाई आदि से संबंधित कृषि सलाह तैयार करने के लिए किया।
> वर्तमान में मौसम संबंधी समाह देने के क्षेत्र में मु_ी भर निजी कंपनियां काम कर रही हैं। लेकिन ऐसी सेवाओं की वहनीयता को लेकर गंभीर चिंताएं है।
> अभी वर्तमान में जिमा कृषि मौसम इकाइयों के सभी कर्मचारी माननीय उच्च न्यायालय की शरण में है एवं नियमित रूप से (प्रत्येक मंगलवार एवं शुक्रवार) कृषकों को मौहम आधारित कृषि सलाह प्रदान करने के साथ ही आकस्मिक मौसम परिवर्तन समाह भी प्रदान कर रहे हैं।
> 29 अगस्त, 2024 को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (1949 से भारत की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद समाचार एजेंसी) ने बताया कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ग्रामीण कृषि मौसम सेवा योजना के तहत जिला कृषि-मौसम इकाइयों को पुनजीवित करने की योजना बना रहा है। इस संदर्भ में आज दिनांक तक भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा आधिकारिक पुष्टि प्राप्त नहीं हुई है।