ट्राइकोडर्मा फसल और जमीन के लिए बरदान, जानिए तैयार करने और उपयोग की विधि
भोपाल, जैविक खेती में बीजों से लेकर दवाइयों भी प्राकृतिक ढंग से तैयार किए गए चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं दवाओं में ट्राइकोडर्मा का विशेष महत्व है। ट्राइकोडर्मा खेतों में रोगकारक जीवों की वृद्धि को रोककर या उन्हें मारकर पौधों को रोगमुक्त करता है। इतना ही नहीं ट्राइकोडर्मा पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को भी परिवर्तित कर पौधों में रोग रोधी क्षमता को बढ़ाता है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा एसपी सिंह ने बताया कि यह एक तरह का फफूंद होता है जो खेत की मिट्टी एवं पौधों के लिए बहुत लाभदायक है। ट्राइकोडर्मा को मित्र फफूंद भी कहा जाता है। ट्राइकोडर्मा पौधों के जड़ विन्यास क्षेत्र (राइजोस्फियर) में खामोशी से अनवरत कार्य करने वाला सूक्ष्म कार्यकर्ता है। यह एक अरोगकारक मृदोपजीवी कवक है जो प्रायः कार्बनिक अवशेषों पर पाया जाता है। इसलिए मिट्टी में फफूदों के द्वारा उत्पन्न होने वाले कई प्रकार की फसल बिमारीयों के प्रबंधन के लिए यह एक महत्वपूर्ण फफूदीं है।
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यह मृदा में पनपता है एवं वृध्दि करता है तथा जड़ क्षेत्र के पास पौधों की तथा फसल की नर्सरी अवस्था से ही रक्षा करता है। ट्राईकोडर्मा की लगभग 6 स्पीसीज ज्ञात हैं लेकिन केवल दो ही ट्राईकोडर्मा विरिडी व ट्राईकोडर्मा हर्जीयानम मिट्टी में बहुतायत मिलता है।
ट्राइकोडर्मा उत्पादन विधि
ट्राइकोडर्मा के उत्पादन की ग्रामीण घरेलू विधि में कण्डों (गोबर के उपलों) का प्रयोग करते हैं। खेत में छायादार स्थान पर उपलों को कूट- कूट कर बारिक कर देते हैं। इसमें 28 किलो ग्राम या लगभग 85 सूखे कण्डे रहते हैं। इनमें पानी मिला कर हाथों से भली भांति मिलाया जाता है। जिससे कि कण्डे का ढेर गाढ़ा भूरा दिखाई पड़ने लगे।
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अब उच्च कोटी का ट्राइकोडर्मा शुद्ध कल्चर 60 ग्राम इस ढेर में मिला देते हैं। इस ढेर को पुराने जूट के बोरे से अच्छी तरह ढक देते है और फिर बोरे को ऊपर से पानी से भिगो देते हैं। समय-समय पर पानी का छिड़काब बोरे के ऊपर करने से उचित नमी बनी रहती है।
12 से 16 दिनों के बाद ढ़ेर को फावडे से नीचे तक अच्छी तरह से मिलाते हैं। और पुनः बोरे से ढ़क देते है। फिर पानी का छिड़काव समय-समय पर करते रहते हैं। लगभग 18 से 20 दिनों के बाद हरे रंग की फफूंद ढ़ेर पर दिखाई देने लगती है। लगभग 28 से 30 दिनों में ढे़र पूर्णतया हरा दिखाई देने लगता है। अब इस ढे़र का उपयोग मृदा उपचार के लिए कर सकते हैं ।
इस प्रकार अपने घर पर सरल, सस्ते व उच्च गुणवत्ता युक्त ट्राइकोडर्मा का उत्पादन कर सकते है। नया ढे़र पुनः तैयार करने के लिए पहले से तैयार ट्राइकोडर्मा का कुछ भाग बचा कर सुरक्षित रख सकते हैं और इस प्रकार इसका प्रयोग नये ढे़र के लिए मदर कल्चर के रूप में कर सकते हैं। जिससे बार बार हमें मदर कल्चर बाहर से नही लेना पडेगा।
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बिना नुकसान ट्राइकोडर्मा रोगों पर नियंत्रण में सहायक
ट्राइकोडर्मा फसलों के लिए हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के विभिन्न रोगों पर नियंत्रण में सहायक हैं। आपको बता दें, रासायनिक कवकनाशी के कई दुष्प्रभाव होते हैं, लेकिन ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से फसलों पर किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।
कई प्रकार के होते हैं ट्राइकोडर्मा के प्रकार
ट्राइकोडर्मा कई प्रकार के होते हैं। ट्राइकोडर्मा के विभिन्न किस्मों में ट्राइकोडर्मा विरिडी और ट्राइकोडर्मा हर्जियानम सबसे ज्यादा प्रचलित है। यह फसलों के लिए हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के विभिन्न रोगों पर नियंत्रण में सहायक हैं।
कैसे करें प्रयोग
ट्राइकोडर्मा को विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जाता है। इससे बीज उपचार, मिट्टी का उपचार, जड़ के उपचार के साथ फसलों में छिड़काव भी कर सकते हैं।
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क्या-क्या है फायदे
यह फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम, स्कलैरोटिनिया, आदि फफूंदों को नष्ट करता है। जिससे पौधे विभिन्न रोगों की चपेट में आने से बचते हैं। खेत तैयार करते समय इसका इस्तेमाल करने से मिट्टी में पहले से मौजूद हानिकारक कवक नष्ट हो जाते हैं। बीज एवं जड़ों को उपचारित करने से पौधों को कई घातक रोगों से बचाया जा सकता है। इसके प्रयोग से फसलों पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव भी नहीं होता है। इसमें किसी तरह के हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए इसके प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता पर विपरीत प्रभाव नहीं होता है।
इससे बुआई से पहले बीज उपचारित किया जाता है
विभिन्न कृषि कार्यों में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किया जाता है। खेत तैयार करते समय मिट्टी उपचारित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इससे बुआई से पहले बीज उपचारित किया जाता है। मुख्य खेत में रोपाई से पहले नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित किया जाता है। खड़ी फसलों में भी विभिन्न रोगों पर नियंत्रण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
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बीज उपचारित करने की विधि
बुआई से पहले प्रति किलोग्राम बीज में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को समान रूप से मिलाएं। इससे बीज की बुआई के बाद ट्राइकोडर्मा फफूंद भी मिट्टी में बढ़ने लगता है और हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के फसलों को रोगों से बचाता है। यदि बीज को कीटनाशक से भी उपचारित करना है तो पहले कीटनाशक से उपचारित करें। उसके बाद इसका प्रयोग करें।
मिट्टी उपचारित करने की विधि
मिट्टी को उपचारित करने के लिए खेत तैयार करते समय 25 किलोग्राम गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर प्रति एकड़ खेत में समान रूप से मिलाएं। इस विधि से नर्सरी की मिट्टी भी उपचारित की जा सकती है।
जड़ उपचारित करने की विधि
यदि बीज उपचारित नहीं किया गया है तो मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से पहले 15 लीटर पानी में 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर घोल तैयार करें। इस घोल में पौधों की जड़ों को करीब 30 मिनट तक डूबो कर रखें। इसके बाद पौधों की रोपाई करें।
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छिड़काव की विधि
फसलों में मृदा जनित या फफूंद जनित रोगों के लक्षण नजर आने पर प्रति लीटर पानी में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर छिड़काव करें।
इन बातों का रखें ध्यान
अच्छे परिणाम के लिए किसी प्रमाणित संस्थान या कंपनी से ट्राइकोडर्मा खरीदें। ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को धूप में न रखें। तेज धूप से इसमें मौजूद लाभदायक फफूंद नष्ट हो सकते हैं। ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को किसी तरह के फफूंदनाशक एवं कीट नाशक से उपचारित न करें। यदि बीज को फफूंदनाशक या कीट नाशक से उपचारित करना है तो फफूंदनाशक या कीट नाशक सेव बीज उपचारित करने के कुछ समय बाद ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें। ट्राइकोडर्मा में मौजूद फफूंद के विकास के लिए नमी की आवश्यकता होती है। इसलिए सूखी मिट्टी में इसका प्रयोग करने से बचें। इसके प्रयोग के बाद 4-5 दिनों तक खेत में रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें। गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने के बाद इसे अधिक समय तक न रखें।