बांस से बन रही खूबसूरत रेशमी साड़ी, 10 साल तक नहीं होती खराब

बांस से बन रही खूबसूरत रेशमी साड़ी, 10 साल तक नहीं होती खराब

इंदौर। एक वक्त था जब रेशम का धागा रेशम के कीड़े को मारकर प्राप्त किया जाता था। इसलिए कई लोग रेशमी वस्त्र नहीं पहनते थे क्योंकि इसके पीछे मत यह था कि इस वस्त्र के निर्माण में हिंसा हुई है। तकनीक बदली और सोच भी। अब रेशमी वस्त्र तैयार हो रहे हैं और उसमें किसी प्रकार की हिंसा नहीं हो रही है। 

अहिंसा सिल्क पर पिछवाई चित्रकारी

जब कीड़ा अपने घर को छोड़ देता है तो उससे रेशमी धागा तैयार कर वस्त्र निर्माण किया जा रहा है और उसे अहिंसा सिल्क कहा जा रहा है। इस अहिंसा सिल्क पर पिछवाई चित्रकारी से प्रभावित होकर कढ़ाई हो रही है। दिलचस्प बात तो यह है कि पिछवाई की डोर आंध्रप्रदेश के कलाकार थामे हुए हैं। नवाचार के ऐसे और भी कई नायाब वस्त्रों के कारण इन दिनों शहर में लगी प्रदर्शनी चर्चा का विषय बनी हुई है। सिल्क एक्सपो- इंदौर के बास्केटबाल कांप्लेक्स में लगा उमंग काटन व सिल्क एक्सपो ऐसे ही कई तरह के धागों से बने वस्त्रों से सजा हुआ है। रेशम की तरह ही नजर आने वाला एक और कपड़ा है जिसे बांस का कपड़ा कहा जाता है। यह कपड़ा असम में तैयार होता है। इस कपड़े से बनने वाली साड़ी पर वहां के जनजीवन की छटा देखी जा सकती है। यह साड़ी असम से शुभम दास लेकर आए हैं।

आंध्रप्रदेश पहुंची राजस्थान की पिछवाई  

गोरखपुर से आए बुनकर विजय चौधरी अपने साथ महाराष्ट्र और आंधप्रदेश की वे साडिय़ां लेकर आए हैं, जो आज भी परंपरा को सहेजे हुए है। राजस्थान के नाथद्वारा में की जाने वाली पिछवाई चित्रकारी अब अहिंसा सिल्क से तैयार साड़ी पर की जाने लगी है। विजय बताते हैं कि यह साड़ी आंध्रप्रदेश के कर्णा शहर के कलाकार तैयार कर रहे हैं। इसमें पिछवाई चित्रकारी के मोटिव्स सुई-धागे की मदद से बनाए जाते हैं। पशु-पक्षी, वृक्ष, लता, पुष्प का अंकन उसी शैली में होता है जैसा पिछवाई चित्र में किया जाता है। यह कार्य पुरुष कलाकार ही करते हैं। कार्य इतना महीन होता है कि करीब छह माह में एक साड़ी तैयार हो पाती है।

महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी की रंगत बदली

इसी तरह अब महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी की रंगत भी बदल गई है। इसमें पारंपरिक डिजाइन के साथ नई डिजाइन बनने लगी है जो पल्ला-बार्डर ही नहीं बल्कि पूरी साड़ी पर बन रही है। इसे भी कढ़ाई की मदद से तैयार किया जाता है। असम से आए बुनकर सुमन मूंगा सिल्क और लिनन के ताने-बाने वाली साड़ी लाए हैं। इस साड़ी की खास बात यह है कि इसमें राजस्थान का अजरक प्रिंट और गुजरात का बांधनी भी शामिल है। सब्जी को उबालकर उससे निकले रंग में कुछ रसायनों को मिलाकर जो रंग तैयार होता है उससे यह साड़ी रंगी जाती है।

साड़ी की बुनाई में लगता है करीब दो माह

शुभम बताते हैं कि साढ़े छह मीटर की साड़ी महज दो बांस से तैयार हो जाती है। बांस को तोड़कर उसे डेढ़ माह तक पानी में भिगोकर रखा जाता है और फिर उस बांस से मशीन की मदद से धागा तैयार किया जाता है। इस धागे से बनने वाली साड़ी का बेस बांस के मूल रंग का ही होता है लेकिन उसपर बनने वाली डिजाइन रंगीन धागे से बनती है। हथकरघा से तैयार होने वाली इस साड़ी की बुनाई में भी करीब दो माह लगते हैं। यह कपड़ा करीब 10 वर्ष तक खराब नहीं होता।

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