लहरी बाई, मोटे अनाज के अनमोल खजाने की मालकिन, जिनके पीएम मोदी भी हुए मुरीद

लहरी बाई, मोटे अनाज के अनमोल खजाने की मालकिन, जिनके पीएम मोदी भी हुए मुरीद

भोपाल/डिंडौरी, मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मिलेट्स उत्पादक जिला डिंडौरी है। जिले के सिलपीड़ी गांव में रहतीं हैं लहरी बाई, जो आज पूरे देश में चर्चा का विषय बनीं हैं। ये गांव जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर है। लहरी बाई की उम्र 27 साल हैं। लहरी बाई के पास मोटे अनाज की उन किस्मों के बीज हैं, जो विलुप्तप्राय हो चुके हैं। लहरी बाई के पास इन दुर्लभ बीजों का दुर्लभ कलेक्शन  है।

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पीएम मोदी ने ट्वीट कर लहरी बाई को लोगों की प्रेरणा बताया 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लहरी बाई और उनके बीज बैंक की तारीफ की है। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को ट्वीट कर लहरी बाई को लोगों की प्रेरणा बताया है। PM ने एक वीडियो को रीट्वीट करते हुए लिखा- लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है। उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे। मिलेट्स उत्पादन में मध्यप्रदेश अभी देश में दूसरे नंबर पर है। पहला नंबर है छत्तीसगढ़ का, छत्तीसगढ़ की सीमा से ही लगा है MP का डिंडौरी जिला। ये जिला मिलेट्स उत्पादन में प्रदेश में पहले नंबर पर है।

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लहरी बाई  ने प्रदेश का गौरव बढ़ाया: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि डिण्डौरी जिले की निवासी बहन लहरी बाई द्वारा मोटे अनाज "श्री अन्न" के संरक्षण के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों ने प्रदेश का गौरव बढ़ाया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी के मार्गदर्शन में "श्री अन्न" अर्थात मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने के प्रयासों को सफलता मिल रही है। प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा लाहरी बाई के प्रयासों की सराहना उनकी संवदेनशीलता का परिचायक है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सोशल मीडिया के माध्यम से यह बात कही। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ट्वीट कर डिण्डौरी जिले की लाहरी बाई द्वारा "श्री अन्न" के संरक्षण के लिए उत्साहपूर्वक किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए लिखा है कि - 'लाहरी बाई के प्रयास अन्य लोगों को भी "श्री अन्न" के संरक्षण और उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।'

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लहरी बाई के पास ऐसे मोटे अनाजों के बीज, जिन्हें जानने वाले ही कम बचे हैं
लहरी बाई के इस बीज बैंक में 30 से ज्यादा ऐसी किस्म के मोटे अनाज के बीज हैं, जिनका नाम जानने वाले भी अब बहुत कम लोग ही हैं। मोटे अनाज के नाम पर ज्यादातर लोग सिर्फ ज्वार, बाजरा के नाम ही जानते हैं। अपने इस अनोखे बैंक के बारे में बताते हुए लहरी बाई के चेहरे की चमक देखते ही बनती है। ये सिर्फ बीजों की पूंजी नहीं है, बल्कि लहरी बाई के जीवन भर की कमाई है। इसे अपने तक सीमित रखने की बजाय वो इसे इलाके में बांट भी रही हैं ताकि दोबारा लोग मोटे अनाज की खेती की ओर लौटें। यही वजह है कि करीब एक माह पहले कलेक्टर विकास मिश्रा ने अपने मातहतों को यहां तक कह दिया कि लहरी बाई लोगों को मिलेट्स लगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं और हम यहां सो रहे हैं।

पेशानियां बहुत आईं, पर हार नहीं मानीं
लहरी बाई बताती है कि खेती से ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर मे लोग मोटे अनाज की खेती करना धीरे-धीरे बंद करने लगे और हम बचपन से ही मोटे अनाज खाते आ रहे हैं। मुझे लगने लगा कि अब ये बीज विलुप्त हो जाएंगे। मैं उन्हें अपने घर पर इकट्ठा करने लगी। उसके लिए मुझे सुबह से आसपास के गांव में जाना पड़ता। कई लोगों की बात सुनती, लेकिन मैंने हार नही मानी। मैंने बीज लाकर पहले खुद अपने खेत में लगाया और जब बीज ज्यादा हो गया तो उसे बीज बैंक में रखती गई। लोगों को घर-घर जा जाकर समझाती कि मोटे अनाज खाने से शरीर ठीक रहता है। ताकत मिलती है। उसके फायदे बताए तो फिर धीरे-धीरे लोग मुझसे ही बीज मांगने लगे।

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जितना बीज देतीं है उत्पादन के बाद ए किलो बढा कर वापस लेतीं हैं
लहरी बाई बताती है कि मैं गांव-गांव जाकर बीज बांटने लगी। धीरे-धीरे ग्रामीणों को भी समझ में आ रहा है और उसकी खेती फिर शुरू कर रहे हैं। जब कोई किसान बीज लेता है तो फसल कटाई के बाद जब अनाज घर लेकर आता है तो उससे जितना बीज दिया उससे एक किलो बढ़कर अनाज लेती हूं।

खनिजों का समृद्ध स्रोत होते हैं मोटे अनाज 
मोटे अनाज कैल्शियम, आयरन, जिंक, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे खनिजों का समृद्ध स्रोत होते हैं। इसमें आहार फाइबर और विटामिन जैसे फोलिक एसिड, विटामिन बी-6, बीटा कैरोटीन और नियासिन पर्याप्त मात्रा में होती है। उच्च मात्रा में लेसिथिन की उपलब्धता तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने के लिए उपयोगी होती है।

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जानिए लहरी बाई के बैंक में कौन कौन से बीज हैं
लहरी बाई के बीज बैंक में 30 से ज्यादा प्रजाति के बीज हैं। इनमें कांग की चार प्रजाति हैं। भुरसा कांग, सफेद कलकी कांग, लाल कलकी कांग, करिया कलकी कांग है।
मढिया की प्रजाति- चावर मढिया, लाल मढिया, गोद पारी मढिया, मरामुठ मढिया।
सलहार की तीन प्रजाति- बैगा सलहार, काटा सलहार, ऐंठी सलहार।
साभा की प्रजाति- भालू सांभा, कुशवा सांभा, छिदरी सांभा।
कोदो के प्रजाति- बड़े कोदो, लदरी कोदो, बहेरी कोदो, छोटी कोदो।
कुटकी की प्रजाति- बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाहि कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया बीज।
दलहनी फसल- बिदरी रवास, झुंझुरु, सुतरु, हिरवा, बैगा राहर के बीज।

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कोदो-कुटकी के लिए राज्य आजीविका मिशन ने 4 जिलों में बनाए उत्पादक समूह
प्रदेश के डिंडौरी, मंडला, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, सीधी, सिंगरौली, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मुरैना, भिंड जिले में कोटो-कुटकी, बाजरा और ज्वार की खेती होती है। सरकार बाजरा 2 हजार 350 और ज्वार 2 हजार 970 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर खरीद रही है। पर कोदो-कुटकी के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसका समर्थन मूल्य भी नहीं है। किसान उपज बेचने में परेशान न हो, इसलिए राज्य आजीविका मिशन ने कोदो-कुटकी के लिए मंडला, डिडौंरी, सीधी और सिंगरौली में उत्पादक समूह बनाए हैं। वहीं, बाजरा के लिए छिंदवाड़ा और मुरैना में समूह बने हैं।

कम पानी में भी हो ताहै मोटा अनाज
मिलेट्स या श्रीअन्न की फसलों को कम पानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए जहां गन्ने के पौधे को 2100 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है। वहीं, बाजरा के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में केवल 350 मिलीमीटर पानी ही चाहिए होता है। जहां, बाकी फसलें पानी की कमी होने पर बर्बाद हो जाती हैं। वहीं, मोटा अनाज की फसल अगर खराब भी हो जाती है तो वह पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं।

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