नीम से बनाएं कीटनाशक, केमिकल फ्री खेती और पैसे की भी बचत, जानें बनाने और प्रयोग की विधि

नीम से बनाएं कीटनाशक, केमिकल फ्री खेती और पैसे की भी बचत, जानें बनाने और प्रयोग की विधि

भोपाल, फसल को कीट और रोगों से बचाकर रखना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए किसान कई तरह के रासायनिक तरीके भी अपनाते हैं। इन रसायनों के उपयोग से खेत की ज़मीन, भूमिगत जल, मानव स्वास्थ्य, फसल की गुणवत्ता और पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को जैविक विधि से खेती करनी चाहिए। इस विधि में अगर नीम के पत्ते, नीम की खल्ली और नीम के तेल का प्रयोग करेंगे, तो किसान अपनी फसल को कीटों के प्रकोप से बचा सकते हैं। इस तरह फसल से काफी शुद्ध अन्न की उपज प्राप्त होगी, साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक होगी।  
नीम से कीटनाशक बनाने की विधि
नीम से घरेलू कीटनाशक (जैविक कीटनाशक)। सबसे पहले 10 लीटर पानी लें। इसमें पांच किलोग्राम नीम की हरी या सूखी पत्तियां और बारीक पीसी हुई नीम की निंबोली, दस किलोग्राम छाछ और दो किलोग्राम गोमूत्र, एक किलोग्राम पीसा हुआ लहसुन इन सबको मिश्रित कर लें। एक लकडी से इनको अच्छी तरह से मिलाएं। इसके बाद पांच दिनों तक किसी बडे बर्तन में रख दें। यह भी ध्यान रखें कि हर दिन पांच दिनों तक दिन में दो से तीन बार इस घोल को अच्छी तरह लकडी से मिलाते रहें। जब इसका रंग दूधिया हो जाए तो इस घोल में 200 मिलीग्राम साबुन और 80 मिलीग्राम टीपोल मिला लें। बस हो तैयार हो गया आपका प्राकृतिक कीटनाशक। इसे अन्य कीटनाशकों की तरह से ही फसलों पर स्प्रे करें। फिर देखें कैसे होता है इसका कमाल। फसलों पर लगे कीट नष्ट हो जाएंगे। 

सब्जियों वाली फसलों और कपास में सबसे ज्यादा प्रयोग 
रासायनिक कीटनाशकों का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है सभी प्रकार की सब्जियों की फसलों और कपास की खेती में। कपास की फसल में शुरू से लेकर डोडियां आने तक कई-कई बार कीटनाशी दवाओं का छिडकाव किया जाता है। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि कपास की फसल को बॉलवार्म के संक्रमण से बचाने के लिए व्यापक स्तर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जाता है। इनके इस्तेमाल के वैज्ञानिक तरीकों का किसानों को आज भी प्रशिक्षण दिए जाने की व्यवस्था नहीं है। देखा यह गया है कि किसान समय के अभाव के चलते फटाफट बाजारों से रासायनिक कीटनाशक खरीद लाते हैं। यदि किसान समय से पहले ही अपने घरों पर देसी कीटनाशक तैयार करना शुरू कर दें तो हजारों रूपये की बचत भी होगी और रासायनिक कीटनाशकों के घातक असर से भी दूर रहेंगे। 

नीमास्त्र
जैविक खेती में कीटों की रोकथाम के लिए नीम से बनने वाले कीटनाशकों को नीमास्त्र कहा जाता है। जो रस चूसने वाले छोटे कीड़े, छोटी सुंडी, इल्लियों को नियंत्रित करता है। नीमास्त्र के छिड़काव से गंध के कारण बनरोज फसल को नहीं खाते हैं। नीमास्त्र को तैयार करने के बाद छिड़काव के लिए उसमें उसके अनुपात का 15 गुना पानी मिलाया जाता है। जिससे छिड़काव से पहले कपड़ से छानना होता है।

जानिए कैसे तैयार किया जाता है नीमास्त्र
जैविक खेती करने वाला कोई भी किसान कीटों की रोकथाम के लिए स्वयं से घर पर ही नीमास्त्र तैयार कर सकता है। इसके लिए 5 किलो की पत्ती या फली, 5 किलो देशी गाय का गोबर और 5 किलो मूत्र की जरूरत होती है। इस सामग्री को एकत्रित करने के बाद नीमास्त्र बनाने के लिए सबसे पहले नीम के पत्तों और सूखे फलों को कूटा जाता है। इसके बाद इसे पानी में मिलाने की जरूरत होती है। जिससे नीम के चूर्ण पानी तैयार हो जाता है। इसमें फिर गाय का गोबर और गौमूत्र मिलाया जाता है।
सभी मिश्रण को ठीक से घोलने के बाद 48 घंटे तक एक बोरे से ढ़ककर छाया में रखना होता है। इस बीच मिश्रण को सुबह और शाम लकड़ी से हिलाने की जरूरत होती है। छाया में रखे हुए 48 घंटे पूरे हो जाने के बाद नीमास्त्र तैयार हो जाता है। जिसमें 15 गुना मिलाने की जरूरत होती है। इसे छिड़काव से पहले छानना पड़ता है। यह नीमास्त्र किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है। जिससे किसानों के पैसों की बचत भी होती है, तो वहीं उनकी जैविक उपज से भी अधिक उत्पादन होता है।

फलीछेदक कीट के नियंत्रण में प्रभावकारी
फलीछेदक कीट के नियंत्रण के लिए फूल आने से पहले छिड़काव शुरू करें।  यह छिड़काव 10 – 15 दिनों के अंतराल पर फसल पर करते रहें।  जब तक फल आ रहे हों, मिट्टी में पाये जाने वाले हानिकारक कीटों जैसे – दीमक, सफेद लट एवं सूत्र कृमि जैसे सूक्ष्मजीवों के नियंत्रण में नीम खली का प्रयोग किया जाता है । 

जानिए कहां और कैसे करें प्रयोग
टमाटर, बैंगन तथा मिर्च के खेत में नीम खली (1000 – 1200 किलोग्राम / हैक्टेयर) भूमि उपचार के रूप में प्रयोग करने से सूत्र कृमि का प्रभावी नियंत्रण होता है। इस प्रकार अगर किसान नीम पत्तियों व निम्बोली का प्रयोग कीट नियंत्रण में करेंगे तो फसल पर कीटों का प्रकोप होने से रोक सकते हैं। इसके छिड़काव से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है |
चने की फसल में फलीछेदक के नियंत्रण के लिए निम्बोली के घोल के तिन छिड़काव जरुरी तथा पहला फसल उगने के 20 दिनों बाद , दूसरा 40 दिनों बाद तथा तीसरा छिड़काव फूल आने पर

सरसों में एफिड (माहू) के नियंत्रण नीम के बीज , पत्तियों, खली एवं तेल से किया संभव और 1 – 2 किलोग्राम निम्बोली पाउडर के छिड़काव से प्रति किवंटल गेहूं, ज्वार और मक्का का 4 से 12 महीनों तक ट्रोगोनेमा कीट से बचाव
1 किलोग्राम निम्बोली पाउडर प्रति किवंटल चना, मटर एवं अन्य दलों में मिलाकर रखने पर 6 महीने से 12 महीने तक सभी संग्रहित अनाज के कीटों से सुरक्षा

इसके तेल (500 मि।ली। / किवंटल) को चने में मिलाकर रखने पर 6 महीने तक प्लस बीटल से सुरक्षा
नीम की 2 , 4, 8 और 10 प्रतिशत सुखी पत्तियों को गेहूं, ज्वार (अनाजों) में मिलाने पर सभी प्रकार के संग्रहित अनाज के कीटों से 135 दिनों तक अनाज की सुरक्षा

रसायनिक टीकनाशकों के प्रभाव से मुक्त होगी खेती
नीम एक ऐसा अद्भुत पेड है जिसे वैद्य की संज्ञा दी जाती है। इसकी पत्तियों से लेकर तने पर उभरे सूखे छिलके, निबोली यहां तक की पत्तियों के तिनकों में भी औषधीय गुण छुपे रहते हैं। इससे  किसान भाई आसानी से बहुत कम लागत में घरेलू नीम कीटनाशक बना सकते हैं।