वर्षा ऋतु में मुर्गियों का प्रबंधन
> डॉ. लक्ष्मी चौहान
> डॉ. अनिल शिंदे
> डॉ. गिर्राज गोयल
> डॉ. वैशाली खरे
पशुुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर, मप्र
वर्तमान में मुर्गीपालन किसानों के आजीविका का प्रमुख साधन बना है। मुर्गीपालन कम लागत में अधिक आय एवं आसानी से इनका रखरखाव के कारण आज के इस दौर में बड़े व्यवसाय के रूप में उभर रहा है। बेरोजगार युवा और महिला भी इसे आसानी से कर सकते हैं। मुर्गीपालन में तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होती है। जैसे कि अलग-अलग ऋतुओं में मुर्गीपालन में कौन-सी सावधानियां रखना चाहिए, जिससे होने वाली हानि को कम या उससे बचा जा सकता है। बरसात शुरू होने से पहले मुर्गी आवास, आहार की व्यवस्था बनानी चाहिए।
आवास प्रबंधन: सबसे पहले मुर्गी घर की मरम्मत कर लेनी चाहिए जैसे कि छत की मरम्मत, दाना घर की मरम्मत आदि। मुर्गियों का शेड ऊंची एवं समतल जगह होना चाहिए और बारिश के दिनों में बारिश का पानी अंदर नहीं जाना चाहिए। बारिश का पानी शेड के आसपास एकत्रित नहीं होना चाहिए क्योंकि उसमें जीवाणु, विषाणु पनपते हैं और वह कई रोगों का कारण बन सकते हैं। यदि मुर्गी का शेड साधारण बना हो और ऊपर से खुला हो तो ऊपर से प्लास्टिक या पॉलिथिन बिछानी चाहिए ताकि बारिश का पानी अंदर प्रवेश न कर सकें। जाली की तरफ से पानी अंदर न जाए इसलिए पॉलिथिन से बंद करना चाहिए और धूप निकलते या बारिश बंद होने पर उसे खोलना भी चाहिए।
बिछावन/बुरादा प्रबंधन: बारिश के दिनों मे बुरादे का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है। बरसात शुरू होने से पहले मुर्गी घर का बुरादा बदल देना चाहिए और बाद में अगर बारिश में गिला हो जाए तब सूखा बुरादा मिलाते रहना चाहिए या उसमें सफेद चुना 1 किग्रा/1 वर्ग मी. जगह के बुरादे में मिला देना चाहिए जिससे गिले बुरादे की नमी कम हो जाए। बुरादे में 20-25 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। ज्यादा नमी होने पर कई तरह के रोगों को निमंत्रण मिलता है। जैसे कि कॉक्सीडीओसिस और अन्य फफूंद संक्रामक रोग। बिछावन के लिए मुख्यत: लकड़ी एवं धान का भूसा प्रयोग किया जाता है। बरसात के दिनों में विशेषत: लकड़ी का बुरादा प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से नमी को सोख लेता है।
आहार प्रबंधन: बरसात में दाने के भंडारण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर दाने में 10 प्रतिशत से अधिक नमी हो तो उसमें फफूंंद लगने की संभावना बढ़ जाती है और बीमारियां शुरू हो जाती है। इसलिए दाने का भंडारण सूखी और जमीन से ऊंची जगह पर करना चाहिए एवं छत से उस पर पानी नहीं टपकना चाहिए। मुर्गियों को साफ-सुथरा पानी पीने के लिए देना चाहिए एवं पानी के स्त्रोतों को जैसे कि कुओं एवं तालाबों में नि:संक्रामक का छिड़काव कर देना चाहिए और इसके साथ-साथ अनावश्यक पानी के गड्डों की मरम्मत कर देनी चाहिए।
स्वास्थ्य प्रबंधन: बरसात में दिन के मौसम में कई तरह के बदलाव आते हैं। कभी बारिश, ठंड और गर्मी भी लगने लगती है। इसी कारण से मुगिज़्यों में कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है। विशेषत: कॉक्सीडीओसिस (खून के दस्त) जो कि बुरादे की नमी के कारण होते हैं और इसमें मृत्यु दर भी काफी बढ़ जाती है। इस बीमारी से बचाव के लिए बुरादा सूखा रहना जरूरी होता है एवं मुर्गियों के दानों में कॉक्सीडीओस्टेट मिला सकते हैं या बीमार मुर्गियों को एम्प्रोजोल नामक दवाई पशु चिकित्सक के निर्देशानुसार पिलानी चाहिए।
मुर्गियों में बरसात के दिनों में परजीवी विशेषत: आंतरिक परजीवी का प्रकोप दिखता है। ऐसे में 21 दिनों के अंतराल से मुर्गियों को दो बार आंतरिक परजीवीनाशक दवाई पिलानी चाहिए। कई बार घर के पिछवाड़े में पलने वाली मुर्गियों में बारिश का पानी पीने की वजह से जीवाणु जन्य रोगों के लक्षण जैसे- दस्त लगना, कमजोर होना, सर्दी-जुकाम आदि दिखाई दें तब उन्हें सही एन्टीबॉयोटिक दवाई पानी में घोलकर पिलानी चाहिए। अंत में बरसात में आवास, बिछावन, आहार एवं स्वास्थ्य का प्रबंधन किया जाए तो निश्चित ही मुर्गी पालन एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है।