पशुओं में फैसिओलोसिस रोग का खतरा, जानिए कैसे करें बचाव

पशुओं में फैसिओलोसिस रोग का खतरा, जानिए कैसे करें बचाव

गगन बेडरे, पूजा दीक्षित, अमित साहू,

बालेश्वरी दीक्षित एवं आलोक कुमार दीक्षित

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन 
महाविद्यालय, रीवा (मप्र)  

यह मवेशियों में होने वाली बीमारी है, जो फैसिओला नाम के परजीवी से होती है। इस परजीवी की दो प्रजातियां होती हैं, पहला फैसिओला जाइजेंटिका और दूसरा फैसिओला हेपेटिका। हमारे देश में ज्यादातर संक्रमण फैसिओला जाइजेंटिका से होता है। मवेशियों में ये बीमारी घोंघों से फैलती है। यह बीमारी गाय, भैंस, भेड़ और बकरी में होती है। आमतौर पर यह बीमारी तालाब या पानी के स्त्रोत  वाले इलाकों में ज्यादा पाई जाती है क्योंकि फैसिओला परजीवी अपना जीवन चक्र संपन्न करने के लिए घोंघों पर निर्भर होता है। यह बीमारी दो प्रकार की  हो सकती है। 1. तीव्र. 2. जीर्ण।

तीव्र :  यह प्रकार भेड़ में ज्यादा पाया जाता है। पशु की अचानक मृत्यु इस प्रकार की विशेषता है। आमतौर पर यह प्रकार गर्मी और शरद ऋतु में देखी जाती है। जिगर के नष्ट होने पर लीवर फेल होने के लक्षण दिखते हैं। इस प्रकार में वजन में कमी, पीली श्लेष्मा झिल्ली, देखने को मिलती है।
जीर्ण: यह प्रकार कई हफ्ते या महीने के बाद दिखता है। इस प्रकार में वजऩ में कमी, दूध उत्पादन में कमी, खून की कमी और जबड़े की सूजन देखने को इस प्रकार में है।

रोगजनन: तीव्र प्रकार में, परजीवी जिगर को छलनी कर देता है जिससे जिगर के काम करने की शक्ति कम हो जाती है । वही जीर्ण रूप में विकसित परजीवी पित्त नलिका में पाये जाते हैं और अंडे देते हैं जो की पशु के मल के रास्ते से निकलते रहते हैं।

निदान: निदान के लिए बीमारी के लक्षण, चराई का इतिहास और मौसमी स्थिति को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा पशु के मल में फैसिओला के अंडे पाये जाने से भी निदान हो सकता है जो कि बीमारी होने के 13 हफ्ते बाद ही मल में मिलते हैं। शव परीक्षण में जिगर का रूप मिट्टी के पाइप जैसा हो जाता है। एलिज़ा तकनीक का उपयोग करके इस बीमारी का निदान दो हफ्तों में किया जा सकता है।

नियंत्रण: इस बीमारी की रोकथाम तीन मुख्य कारकों पर आधारित है। 

घोंघों का नियंत्रण : घोंघे को खत्म करने  के लिए कॉपर सल्फेट का उपयोग बेहद कारगर साबित  होता  है। इसके अलावा डीसीपीएच तीन से पांच पीपीएम के उपयोग  से भी घोंघे को नियंत्रित कर सकते  हैं। जिन जगहों पर ज्यादा  पानी एक_ा होता है या घोंघे रहते हैं वहां जानवरों को पानी पिलाने या चराने ना ले जाएं। तालाबों के आस पास बागड़ लगाकर भी पशुओं को रोका जा सकता है। इसके अलावा तालाबों में बतख या मेंढक पालकर भी घोंघों का नियंत्रण किया जा सकता है।  
बीमार पशुओं का इलाज : बीमार पशुओं के इलाज के लिए निम्नलिखित दवाइयों का उपयोग किया जा सकता है।
ट्राईक्ल बेंडाजोल: यह दवाई फैसिओला के नवजात एवम व्यस्क सभी अवस्थाओं में कारगर है। 
- भेड़ में 10 एमजी प्रति किलो पशु के वजन के हिसाब से।
- गाय में 12 एमजी प्रति किलो पशु के वजन के हिसाब से।

ऑक्सीक्लोजानाइड:  गाय में 15 एमजी प्रति किलो पशु के वजन के हिसाब से विकसित परजीवी को मारने में सक्षम है।

एल्बेंडाजोल: गाय में 10 एमजी प्रति  किलो पशु के वजन के हिसाब से विकसित परजीवी को मारने में सक्षम है जबकि भेड़ों में 7.5 एमजी प्रति  किलो पशु के वजन के हिसाब से दिया जाता है।
नाइट्रॉक्सिनिल: इस दवाई को चमड़ी के नीचे इंजेक्शन के रूप में 10 एमजी प्रति  किलो पशु के वजन के हिसाब से देने पर यह परजीवी को मारने में सक्षम है ।
क्लोसेंटल: 10 एमजी प्रति किलो पशु के वजन के हिसाब से दिया जाता है। इसके अलावा अगर जानवरों में खून की कमी है तो उसका उपचार भी करना चाहिये, जिसके लिए आयरन का इंजेक्शन या गोली दी जा सकती है। द्रव चिकित्सा दिया जा सकती है।
जंगली जानवरों की रोकथाम: जंगली या आवारा पशु संक्रमण के स्रोत का काम करते हैं, जिसके कारण पालतू जानवरों को संक्रमण का खतरा बना रहता है।

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