कान्हा- पेंच वन्यजीव गलियारा: बाघ-मानव सहअस्तित्व

कान्हा- पेंच वन्यजीव गलियारा: बाघ-मानव सहअस्तित्व

संदीप चौकसे
वरिष्ठ परियोजना अधिकारी, 
सेंट्रल इंडिया लैंडस्केप, डब्लू डब्लू ऍफ़ – इंडिया

वन्यजीव गलियारा या वाइल्डलाइफ कॉरिडोर,  विशेष प्रकार के प्राकृतिक मार्ग जो दो या अधिक प्राकृतिक आवासों या संरक्षित क्षेत्रों को आपस में जोड़ते हैं। वन्यजीवों को बिना किसी बाधा या जोखिम के एक आवास क्षेत्र से दूसरे आवास क्षेत्र में सुरक्षित एवं स्वतंत्र रूप से आवागमन करने में सहायता प्रदान करते हैं। वन्यजीव गलियारों की जैव विविधता को बनाए रखने, जीन प्रवाह को बढ़ाने, और वन्यजीवों के बीच संपर्क स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है, ये गलियारे वन्यजीवों के लिए भोजन, पानी, और प्रजनन के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर उन्हें मानव-जनित बाधाओं जैसे सड़क, बाढ़ और शहरीकरण से सुरक्षा देने के साथ जैविक संतुलन को बनाए रखते हैं एवं जीवों को विलुप्ति के खतरे से बचा कर पारिस्थितिक तंत्र में स्थिरता को बनाये रखने का काम करते हैं। 
मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिज़र्व (टा.रि.) और पेंच टाइगर रिज़र्व (टा.रि.) की देश भर में अपनी बाघों की संख्या और बेहतर वन्यजीव प्रबंधन के लिए एक अलग ही पहचान है। हाल ही में वर्ष 2022 में हुए देश व्यापी बाघ आंकलन के अनुसार 2074.31 वर्ग कि. मी. में फैले कान्हा टा. रि. एवं 1179.63 वर्ग कि. मी. में फैले पेंच टा. रि. में क्रमशः कुल 105 एवं 77 बाघ हैं।1 इसके अलावा दूसरे बड़े मांसाहारी वन्यप्राणी जैसे की तेंदुए, जंगली कुत्ते, भेड़िये एवं सियार और शाकाहारी वन्यप्राणी जैसे की गौर, सांबर चीतल एवं नीलगाय भी बहुतायत में हैं, इसके अलावा कान्हा में तो मध्य प्रदेश का राजकीय पशु बारासिंघा भी पाया जाता है। 
 

वन्यप्राणियों की इन संरक्षित क्षेत्रों में लगातार बढ़ती संख्या को रहने के लिए ज्यादा जगह, भोजन एवं पानी की आवश्यकता होती है और तो और बाघों का तो अपना अलग इलाका होता है जिसका साझा वो किसी और बाघ से नहीं करते हैं एवं आवास की कमी के कारण इलाके की तलाश में उनके बीच टकराव की स्तिथि निर्मित हो जाती है। ऐसी स्थिति में संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के वनक्षेत्र वन्यप्राणियों को एक उपयुक्त आश्रय स्थल प्रदान करते हैं, कान्हा एवं पेंच टा. रि. को आपस में जोड़ने वाला वनक्षेत्र इसका एक सटीक उदाहरण है, जिसे हम कान्हा - पेंच वन्यजीव गलियारा/ कॉरिडोर  के नाम से जानते हैं।
लगभग 5925 वर्ग कि मी में फैला कान्हा-पेंच कॉरिडोर का वनक्षेत्र मध्य प्रदेश के मंडला, सिवनी और बालाघाट जिले में आता है। सिवनी जिसका अपना एक अलग इतिहास है, सर रुडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब ''जंगल बुक'' का मुख्य किरदार ''मोगली'' भी सिवनी के जंगलों का ही निवासी था जिसका मुख्य रहवास स्थान कान्हीवाड़ा भी इसी कॉरिडोर का एक भाग है, जहा हिर्री और बैनगंगा नदी के चट्टानी किनारे व झरने देख कर कोई भी जिसने जंगल बुक पढ़ा है, सहज ही इस बात का अंदाजा लगा सकता है। इस कॉरिडोर का ज्यादातर भाग मध्य प्रदेश का सबसे पुराना जिला बालाघाट में समाहित है। जिसमें बैहर तहसील के पठार से लेकर बालाघाट के निचले पहाड़ी ढलान शामिल हैं। 
कान्हा-पेंच वन्यजीव गलियारा के वनक्षेत्र में 7 वनप्रभाग समाहित हैं, जिसमें दक्षिण सिवनी, उत्तर एवं दक्षिण बालाघाट और पश्चिम मंडला सामान्य वनमंडल हैं, इसके अलावा बरघाट, लामता और मोहगांव वन मंडल वनविकास निगम के अधिनियत हैं। कॉरिडोर में अधिकांशतः शुष्क पर्णपाती, मिश्रित पर्णपाती और कहीं-कहीं सागौन एवं बांस के सघन वन पाए जाते हैं। यह वनक्षेत्र कई तरह के वन्यप्राणियों का आश्रय स्थल हैं। अखिल भारतीय बाघ आंकलन 2022 में हुई गणना में इस वन्यजीव गलियारा में बाघों की संख्या 97 दर्ज की गयी है, जो पेंच टा. रि. से भी ज्यादा है।1 बाघों की यह संख्या इस बात का संकेत है की कॉरिडोर के घने जंगल बाघों को रहने के लिए एक उपयुक्त आवास तो प्रदान कर ही रहें हैं, साथ ही इन जंगलों में बाघों के भोजन, शाकाहारी वन्यप्राणियों की भी प्रचुरता है। 

कान्हा-पेंच वन्यजीव गलियारा / कॉरिडोर को दिखाता एक मानचित्र (साभार: डब्लू डब्लू ऍफ़ - इंडिया)

कॉरिडोर में बढ़ती बाघों एवं अन्य वन्यजीवों की यह संख्या ख़ुशी के साथ-साथ चिंता का भी विषय है। कॉरिडोर एवं इसके आसपास के इलाकों में लगभग 715 गांव स्थित हैं, जिनमें काफी संख्या में मानव आबादी निवास करती है,2 और ये स्थानीय लोग  प्रत्यक् और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों से जुड़े हुए हैं, जिससे अकसर वन्यजीवों एवं मनुष्य के बीच आपसी टकराव बना रहता है। बाघ और दूसरे मांसाहारी वन्यप्राणी अकसर गांव वालों के पालतू मवेशियों को मार देते हैं, कभी-कभी तो ये मनुष्यों पर भी हमला कर देते हैं। इस तरह की घटनाएं बाघ एवं मनुष्यों के बीच आपसी संघर्ष पैदा करती हैं। मध्य प्रदेश वनविभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 से 2022 तक पांच वर्षों में इस कॉरिडोर में मांसाहारी वन्यप्राणियों द्वारा लगभग 6376 मवेशी मारे गए हैं (तालिका 1)।3 और हर वर्ष बाघों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ यह आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा  है।  
तालिका 1: कान्हा-पेंच कॉरिडोर में मांसाहारी वन्यप्राणियों द्वारा मारे गए पालतू मवेशियों की संख्या।

वर्ष वनमंडल /वनप्रभाग

उत्तर बालाघाट दक्षिण बालाघाट दक्षिण सिवनी पश्चिम मंडला बरघाट परियोजना लामता परियोजना मोहगांव परियोजना कुल योग
    
2018 198 305 264 14 271 201 14 1156    
2019 110 304 364 0 325 208 3 1203    
2020 108 241 516 0 402 157 45 1379    
2021 127 317 372 0 466 246 62 1493    
2022 96 503 199 0 411 NA 57 1145    

कुल योग  6376  

तरह 355 जन घायल और 17 जनहानि की घटनायें हुई हैं, और यह घटनायें निरंतर बढ़ती जा रही हैं।3 साल २०२३ में सितम्बर से नवंबर के बीच तीन माह में ही बाघों द्वारा 6 मौते दर्ज की गयी थी। इन बढ़ती घटनाओं से यहाँ के निवासियों में वन्यजीवों एवं वनविभाग के प्रति नकारात्मकता की भावना बढ़ती है, और गांव वाले कभी-कभी हिंसात्मक भी हो जाते हैं। कभी-कभी तो बाघों और तेंदुओं द्वारा मारे गए मवेशियों के शवों में जहर मिला दिया जाता है, जिससे उनको खाने वालेवन्यप्राणियों को भारी नुकसान पहुँचता है।  
हालाकिं बाघों की इतनी संख्या होने के बाद भी कान्हा-पेंच वन्यजीव गलियारा में इस तरह की नकारात्मक घटनाएं कम ही सामने आयी हैं, इसका कारण शायद स्थानीय निवासियों की बाघों एवं वन्यजीवों के प्रति श्रद्धा, सहनशीलता और धार्मिक मान्यताएं हैं, जो मानती हैं, की अगर जंगल में बाघ है, तो प्रकृति का संतुलन बना रहेगा और लोग सुरक्षित रहेंगे।  
कान्हा-पेंच वन्यजीव गलियारा में मानव-बाघ द्वन्द एक चिंता का विषय है, जो भविष्य में एक विकराल रूप ले सकता है। मध्य प्रदेश वन विभाग इन नकारात्मक परिस्थितियों से निपटने के लिए हरसंभव प्रयासरत है। बाघों या अन्य मांसाहारी वन्यप्राणी द्वारा किसी मवेशी के मारे जाने पर वन विभाग द्वारा मवेशी मालिक को मुआवजे की व्यवस्था की गयी है। जिसमें वन्यप्राणी द्वारा मवेशी के मारे जाने पर अधिकतम 30000 रुपए तक प्रदाय किये जाते हैं। इसके अलावा वन्यप्राणी द्वारा किसी व्यक्ति के मारे जाने पर रु. 8 लाख एवं घायल को रु. 50 हजार से रु. 2 लाख तक की राशि मुआवजे के तौर पर दी जाती है। 

वन्यप्राणी संरक्षण में कार्य करने वाली संस्था डब्लू डब्लू ऍफ़- इंडिया भी इस कॉरिडोर में मानव-बाघ द्वन्द (मानव-वन्यप्राणी संघर्ष) को कम करने के लिए प्रयासरत है। डब्लू डब्लू ऍफ़- इंडिया ने वर्ष 2010 में इस कॉरिडोर में IRS, इंटरिम रिलीफ स्कीम (आई.आर.एस) की शुरआत की थी। जिसके अंतर्गत वन्यप्राणी द्वारा किसी मवेशी के मारे जाने पर मवेशी मालिक को संस्था के द्वारा रु. 1200 की त्वरित आर्थिक सहायता प्रदाय की जाती है, ताकि तत्काल उनके आर्थिक नुकसान की कुछ भरपाई हो सके और उनकी नाराजगी और गुस्से को कुछ हद तक कम किया जा सके। इसके अलावा संस्था के प्रतिनिधियों द्वारा जंगल में ट्रैप कैमरा लगाकर बाघों की गतिविधि पर भी नजर रखी जाती है, अगर बाघ या अन्य जानवर गांव या आबादी के आसपास देखे जाते हैं तो वनविभाग को सूचित कर दिया जाता है, जिससे स्थानीय लोगों को सावधान किया जा सके और किसी अप्रत्याशित घटना को रोका जा सके।  
 

कॉरिडोर क्षेत्र मैं कैमरा ट्रैप में दर्ज हुई बाघिन और उसके 4 शावक (साभार: डब्लू डब्लू ऍफ़ - इंडिया)।   

कान्हा- पेंच वन्यजीव गलियारा का अधिकांश हिस्सा मध्य प्रदेश वन विकास निगम के अधीन है। इन क्षेत्रों में वर्ष भर लगातार वन-संवर्धन कार्य किये जाते हैं, जिनमें चयनित कूपों से लकड़ी एवं बांस कटाई का कार्य किया जाता है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होते हैं। साथ ही विभाग द्वारा पास के संरक्षित क्षेत्रों से चीतलों को कॉरिडोर के क्षेत्रों में छोड़ा जा रहा है, ताकि बाघों एवं अन्य मांसाहारी प्राणियों के लिए शिकार की बहुतायत हो सके और पालतू मवेशियों में उनकी निर्भरता कम हो। साथ ही वनविभाग एवं अन्य पर्यावरणीय संस्थाओं के द्वारा स्थानीय लोगों में वन्यप्राणियों के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि मानव-बाघ द्वन्द (मानव-वन्यजीव संघर्ष) को कम किया जा सके और मनुष्य-बाघ एवं अन्य प्राणियों के साथ आपसी सामंजस्य के साथ रह सके। 

जैव विविधता से भरपूर कान्हा-पेंच वन्यजीव गलियारा के वनक्षेत्र इस बात का संकेत हैं की यह सिर्फ एक गलियारा/कॉरिडोर बस नहीं है, अपने आप में सभी संसाधनों से भरपूर वन्यप्राणियों के लिए एक उपयुक्त आवास क्षेत्र है। परन्तु मनुष्य की बढ़ती आबादी और जरूरतों के कारण इन जंगलों में भी काफी दबाब बढ़ गया है। सड़कों के चौड़ीकरण एवं रेलवे के दोहरीकरण की मार इन जंगलों पर भी पड़ी है। परिणामस्वरुप निर्दोष वन्यप्राणी वाहनों की दुर्घटना में मारे जा रहे हैं। हालांकि नैनपुर से लामता रेलवे ट्रैक के बीच वनक्षेत्र में रेलवे के द्वारा इन दुर्घटनाए को कम करने के लिए वन्यप्राणी अंडरपास भी बनाये गए हैं। 

नैनपुर-लामता रेल मार्ग में निर्मित वन्यप्राणी पास (फोटो: संदीप चौकसे।  

कॉरिडोर में वन्यप्राणियों के शिकार की सम्भावनाओ को भी नहीं नाकारा जा सकता है, आये दिन कहीं न कहीं से बाघों और अन्य वन्यप्राणियों के शिकार की सूचनाएं प्राप्त होती रहती हैं। वर्ष 2023 में कॉरिडोर क्षेत्र के पांडिया छपारा में स्थित दूठी डैम के पास एक बाघ शावक को रेस्क्यू किया गया था, जिसकी माँ के शिकार होने का अंदेशा वनविभाग द्वारा व्यक्त किया गया था। इन सबके अलावा मांस खाने के लिए छोटे जानवरों का भी शिकार किया जाता है।  शाकाहारी वन्यप्राणियों जैसे जंगली सूअर, चीतल एवं सांबर हिरण खेतों में लगी फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे नाराज किसानों द्वारा इनको रोकने के लिए खेतों में बिजली के तारों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें कभी-कभी बाघ व तेंदुए भी फस कर अपनी जान गवां बैठते हैं। और कभी-कभी तो इंसान भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। 
 

कॉरिडोर क्षेत्र से रेस्क्यू किये गए बाघ शावक का फोटो (साभार: राकेश कुमरे/ डब्लू डब्लू ऍफ़ -इंडिया)।

भारत के जंगलों में लगने वाली अधिकांश आग मानव जनित है, खेतों की सफाई के लिए या महुआ बीनते समय लगाई गयी आग विकराल रूप लेकर जंगलों में फ़ैल जाती है और कॉरिडोर के जंगल एवं वन्यप्राणियों को भी काफी नुकसान पहुंचाती है।
कान्हा-पेंच गलियारे में बाघों और मानव के बीच संघर्ष एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। बाघों एवं अन्य वन्यप्राणियों की बढ़ती संख्या को संरक्षित करने के लिए कॉरिडोर को संरक्षित करना होगा जो इन्हें एक सुरक्षित और अनुकूल आवास प्रदान करते हैं। स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना कॉरिडोर का संरक्षण नहीं किया जा सकता। स्थानीय समुदायों को बाघ संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना और उन्हें इस प्रयास में शामिल करना आवश्यक है। इसके लिए विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यशालाओं के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित कर आर्थिक रूप से शसक्त बनाना, वैकल्पिक आजीविका के साधन प्रदान करना, ताकि वे वन्यजीवों पर निर्भर न रहें और उचित मुआवजा प्रदान करना भी महत्वपूर्ण है, जिससे उनके नुकसान की भरपाई हो सके। 
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका भी कान्हा-पेंच गलियारे के दीर्घकालिक संरक्षण में महत्वपूर्ण है। आधुनिक तकनीकों जैसे कि कैमरा ट्रैप, ड्रोन और ऐ.आई. (AI) तकनीकों के माध्यम से वन्यप्राणियों एवं जंगलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को वन्यजीवों के महत्व और उनके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में बताकर कान्हा-पेंच गलियारे में बाघों और मानव के बीच संघर्ष को हल करने के लिए एक संतुलित और समग्र दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। जिससे बाघों के संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की सुरक्षा और विकास को भी सुनिश्चित कर मानव-बाघ सहअस्तित्व की परिकल्पना की जा सकती है।   

सन्दर्भ :
कमर कुरैशी, यादवेन्द्रदेव वी. झाला, सत्या पी. यादव और अमित मल्लिक (एड्स). 2023. स्टेटस ऑफ़ टाइगर्स, को-प्रिडेटर्स एंड प्रेय इन इंडिया, 2022. नेशनल टाइगर कन्सेर्वटिव अथॉरिटी, गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया, न्यू दिल्ली, एंड वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, देहरादून।
अदिति पाटिल, आदित्य जोशी, अमृता नीकंठन, अनिरुद्ध धमोरिकर, तारा राजेंद्रन, अर्पित देवमुरारी, प्राची थट्टे. 2023. कान्हा -पेंच कॉरिडोर प्रोफाइल. कोएलिशन फॉर वाइल्डलाइफ कोर्रिडोर्स। 
मध्य प्रदेश शासन वनविभाग (अप्रकाशित) ।  

सोशल मीडिया पर देखें खेती-किसानी और अपने आसपास की खबरें, क्लिक करें...

- देश-दुनिया तथा खेत-खलिहान, गांव और किसान के ताजा समाचार पढने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म गूगल न्यूजगूगल न्यूज, फेसबुक, फेसबुक 1, फेसबुक 2,  टेलीग्राम,  टेलीग्राम 1, लिंकडिन, लिंकडिन 1, लिंकडिन 2टवीटर, टवीटर 1इंस्टाग्राम, इंस्टाग्राम 1कू ऐप  यूटयूब चैनल से जुडें- और पाएं हर पल की अपडेट