महुआ गरीबों के पोषण के लिये सबसे सस्ती और उत्तम फसल, जानिए इसके फायदे

महुआ गरीबों के पोषण के लिये सबसे सस्ती और उत्तम फसल, जानिए इसके फायदे

फार्मेसी और खाद्य उद्योग के लिए वरदान

डॉ. आर.के. प्रजापति,

वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ (म.प्र.)

बुन्देलखण्ड को प्रकृति ने सूखे से लड़ने के लिये तीन पेड़ दिये थे बेर, पलाश और महुआ। सूखे इलाकों में महुआ गरीबों के पोषण के लिये सबसे सस्ती और उत्तम फसल है। महुए की फसल सुखाकर रख ली जाये तो सात साल तक ख़राब नहीं होती। सूखे के सालों मे महुए का इस्तेमाल किया जा सकता है। बुन्देलखण्ड में कई ऐसे पौध प्रजातियाँ हैं, जो किसान की परम्परागत फसलें नहीं है जैसे फिकारा कुसुम आदि। प्रक्रति ने बुन्देलखण्ड को ये वरदान दिया था कि जब-जब सूखा पड़ेगा तब ये तीन पेड़ ज्यादा फलेंगे फूलेंगे और सूखे का रामबाण समाधान उपलब्ध करायेंगे। इससे एक बात समझ में आती है कि परम्परागत अनाजों के अलावा अपरम्परागत आदिवासी खाद्य परम्पराओं का इस्तेमाल बुन्देलखण्ड में होता रहा है जोकि बुन्देलखण्ड का समाज भूल चुका है जिसकी वजह से सूखे में भुखमरी की मार तीखी और गहरी हो जाती है।

महुआ (मधुका लोंगिफोलिया) सपोटेसी परिवार से संबंधित है, जो अपने मीठे फूलों के लिए जाना जाता है, महुआ भारतवर्ष के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर तीन हजार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। इसकी पत्तियाँ पाँच सात अंगुल चौड़ी, दस बारह अंगुल लंबी और दोनों ओर नुकीली होती हैं। पत्तियों का ऊपरी भाग हलके रंग का और पीठ भूरे रंग की होती है। हिमालय की तराई तथा पंजाब के अतिरिक्त सारे उत्तरीय भारत तथा दक्षिण में इसके जंगल पाए जाते हैं जिनमें वह स्वच्छंद रूप से उगता है। पर पंजाब में यह सिवाय बागों के, जहाँ लोग इसे लगाते हैं और कहीं नहीं पाया जाता। इसका पेड़ ऊँचा और छतनार होता है और डालियाँ चारों और फैलती है। यह पेड़ तीस-चालीस हाथ ऊँचा होता है और सब प्रकार की भूमि पर होता है। इसके फूल, फल, बीज लकड़ी सभी चीजें काम में आती है। इसका पेड़ बीस-पचीस वर्ष में फूलने और फलने लगता और सैकडों वर्ष तक फूलता फलता है। महुआ विभिन्न किण्वित और गैर-किण्वित खाद्य उत्पादों के विकास के लिए आदिवासी लोगों के बीच बहुत सारे जातीय मूल्य हैं। गैर-किण्वित उत्पादों में हलवा, मीठी पुरी, बर्फी शामिल हैं जबकि किण्वित उत्पादों में महुआ दारू या महुली शामिल हैं।

इसके कई फाइटोकेमिकल गुणों के कारण पारंपरिक रूप से इसका उपयोग सिरदर्द, दस्त, त्वचा और आंखों की बीमारियों सहित कई बीमारियों के लिए दवा के रूप में भी किया जाता है। वर्तमान में  रोजगार की बढ़ती संभावनाओं के साथ किसानो के  आजीविका में सुधार के लिए इसके भविष्य की संभावनाओं के साथ संरचना (सूखे और ताजे फूल), उपयोगिता, औषधीय और पोषक तत्वों की वजय से इसकी बहुत ज़रूरी है की महुवा के  पौध रोपण को बढाया  जाय । प्रकृति ने हमें सजावट, फूल, फल और औषधीय आदि जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले विविध पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ बड़े पैमाने पर आशीर्वाद दिया है। वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए कई पौधों के औषधीय उपयोगों को अपनाने और उपयोग करना अधिकांश लोगों के बीच एक उभरती हुई प्रवृत्ति बन गई है और क्योंकि उसमें से, पारंपरिक रूप से उपयोग किए जा रहे कम उपयोग वाले पौधों ने शोधकर्ताओं और उद्योग के लोगों द्वारा संभावित ध्यान आकर्षित किया है। भारत ऐसे पौधों की व्यापक विविधता के लिए जाना जाता है, जिनका पारंपरिक रूप से उपयोग किया जाता है और महुआ, रोडोडेंड्रोन , कचनार, मोरिंगा, गुलमोहर, पलाश, आदि महुआ जैसे व्यवसायिक होने का महत्व है।यह उन पौधों में से एक है जो पारंपरिक लोगों के जातीय और आर्थिक जीवन में नए स्थान पर कब्जा कर रहा है।

भारत को विभिन्न औषधीय और सुगंधित पौधों की प्रजातियों का खजाना माना जाता है जिनका उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है। के अनुसार दुनिया की लगभग 65% आबादी उपचार के लिए औषधीय पौधे को एकीकृत करती है। महुआ प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पौधों में से एक है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। आदिवासी लोग महुआ के फूलों का उपयोग त्वचा रोग, सिरदर्द, पित्त और ब्रोंकाइटिस के इलाज के लिए करते हैं। स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्तन के दूध की वृद्धि के लिए फूलों का रस दिया जाता है। सीमित स्थानों पर कम समय के लिए उपलब्धता और इस फूल की अत्यधिक खराब होने वाली प्रकृति के कारण, इसके मूल्यवर्धन के लिए कुछ को छोड़कर शोधकर्ताओं और खाद्य वैज्ञानिकों द्वारा अभी तक इसकी खोज नहीं की गई है। इसलिए महुआ के फूलों के भोजन और दवा के रूप में उपयोग में हाल की प्रगति और इसके मूल्यवर्धन के संबंध में भविष्य की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा ना चाहिये।

क्षेत्र और उत्पादन

महुआ एक ठंढ प्रतिरोधी प्रजाति है जो भारत में 1200-1800 मीटर की ऊंचाई तक शुष्क उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों के सीमांत क्षेत्रों में बढ़ सकती है। इसके लिए औसत वार्षिक तापमान 2-46 डिग्री  औसत वार्षिक वर्षा 550-1500 मिमी और औसत वार्षिक आर्द्रता 40-90 प्रतिशत की आवश्यकता होती है।  महुआ के पेड़ भारत से अन्य एशियाई देशों जैसे फिलीपींस, पाकिस्तान, श्रीलंका से ऑस्ट्रेलिया तक वितरित किए जाते हैं।  यह मध्य भारत में चरागाह भूमि में, और अर्ध-सदाबहार जंगलों में नदी के किनारों पर बिखरा हुआ पाया जा सकता है।  भारत में, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान राज्यों में बड़ी मात्रा में महुआ के पेड़ पाए जाते हैं और महुआ फूलों का वार्षिक उत्पादन के दौरान 45000 मिलियन टन है।  महुआ के फूलों  की उपज प्रति पेड़ 80-320 किलोग्राम तक होती है।  मध्य प्रदेश 5,730 मीट्रिक टन की औसत व्यापार मात्रा और लगभग 8.4 मिलियन भारतीय रुपये के साथ सबसे आश्चर्यजनक महुआ विकासशील राज्य है। 

फूल की रचना

महुआ के फूल शर्करा के समृद्ध स्रोत हैं जो इसके मीठे स्वाद के लिए जिम्मेदार है और इसका उपयोग स्वदेशी या आधुनिक मादक पेय बनाने के लिए किया जा सकता है। महुआ के फूलों में अच्छी मात्रा में विटामिन-सी होता है जो इसकी एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि के लिए जिम्मेदार होता है। महुआ के फूल में कैरोटीन होता है जो विटामिन-ए का अग्रदूत है। फूलों में कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिजों की भी अच्छी मात्रा होती है। महुआ के फूलों में कुछ मात्रा में प्रोटीन और वसा भी मौजूद होता है । महुआ फूल की संक्षिप्त रचना तालिका 1 में दी गई है। महुआ के औषधीय गुणों का पता लगाने के लिए विभिन्न शोध किए गए हैंफूल जैसे कृमिनाशक, जीवाणुरोधी, एनाल्जेसिक, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीऑक्सिडेंट और एंटीकैंसर के लिए उपयोगी है।  

किस्में

भारत में इसकी बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं। दक्षिणी भारत में इसकी लगभग 12 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें 'ऋषिकेश', 'अश्विनकेश', 'जटायु पुष्प' प्रमुख हैं। ये महुआ के मुकाबले बहुत ही कम उम्र में 4-5 वर्ष में ही फल-फूल देने लगते हैं। इसका उपयोग सवगंघ बनाने के लिए लाया जाता है तथा इसके पेड़ महुआ के मुकाबले कम उचाई के होते हैं।

इतिहास

ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था में भी महुआ के पेड़ों की अहम भूमिका थी। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के कुल राजस्व का एक चौथाई दवाओं और नशीले पदार्थों से आता था, जिसमें महुआ के फूल भी शामिल थे। चूंकि महुआ के फूलों से बनने वाली अवैध शराब के कारण राजस्व को नुकसान होने लगा, इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने इसके संग्रह पर प्रतिबंध लगाने के भरपूर प्रयास किए। सरकार शराब के अवैध उत्पादन पर अंकुश लगाने के लिए तत्पर थी, इसलिए महुआ के पेड़ उखाड़ने का प्रस्ताव रखा गया। सन 1882 में बंबई विधान परिषद में म्होवरा बिल लाया गया जिसका भारतीय राष्ट्रवादियों ने पुरजोर विरोध किया, क्योंकि महुआ के फूल लोगों के लिए भोजन का एक स्रोत भी थे। हालांकि, अंततः वर्ष 1892 में बिल को पारित करा लिया गया था।

महुआ में तत्व

महुआ के फल और फूल में फायदा देने वाला फैट, विटामिन-सी, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, कार्बोहाइड्रेट जैसे तत्व पाए जाते हैं. कई बीमारियों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है. फूल और फल के साथ-साथ इन पेड़ की पत्तियां और छालों का इस्तेमाल औषधि के तौर पर होता है
फल-इसका फल परवल के आकार का होता है और 'कलेन्दी' कहलाता है। इसे छीलकर, उबालकर और बीज निकालकर तरकारी (सब्जी ) भी बनाई जाती है।

बीज

फल के बीच में एक बीज होता है जिससे तेल निकलता है। वैद्यक में महुए के फूल को मधुर, शीतल, धातु-वर्धक तथा दाह, पित्त और बात का नाशक, हृदय को हितकर औऱ भारी लिखा है। इसके फल को शीतल, शुक्रजनक, धातु और बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करनेवाला माना है। छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है। इसके तेल को कफ, पित्त और दाहनाशक और सार को भूत-बाधा-निवारक लिखा है। महुआ के बीज स्वस्थ वसा (हैल्दी फैट) का अच्छा स्रोत हैं। इसका इस्तेमाल मक्खन बनाने के लिए किया जाता उपयोग है

उपयोग

महुआ के हर हिस्से में विभिन्न पोषक तत्व मौजूद हैं। गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती इसके स्निग्ध (तैलीय) बीजों, फूलों और लकड़ी के लिये की जाती है। कच्चे फलों की सब्जी भी बनती है। पके हुए फलों का गूदा खाने में मीठा होता है। प्रति वृक्ष उसकी आयु के अनुसार सालाना 20 से 200 किलो के बीच बीजों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके तेल का प्रयोग (जो सामान्य तापमान पर जम जाता है) त्वचा की देखभाल, साबुन या डिटर्जेंट का निर्माण करने के लिए और वनस्पति मक्खन के रूप में किया जाता है। ईंधन तेल के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तेल निकलने के बाद बचे इसके खल का प्रयोग जानवरों के खाने और उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसके सूखे फूलों का प्रयोग मेवे के रूप में किया जा सकता है। इसके फूलों का उपयोग भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शराब के उत्पादन के लिए भी किया जाता है। कई भागों में पेड़ को उसके औषधीय गुणों के लिए उपयोग किया जाता है, इसकी छाल को औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। कई आदिवासी समुदायों में इसकी उपयोगिता की वजह से इसे पवित्र माना जाता है।

1.एनीम‍या में महुआ के फूलों का सेवन करेंगे-महुआ के फूल से शरीर में हीमोग्‍लोबि‍न का स्‍तर बढ़ता है। जिन महीलाओ को ब्रेस्‍ट फीडिंग कराने में दिक्‍कत होती हो उन्‍हें भी महुआ के फूलों का सेवन दूध के साथ करना चाहिये। 

2.पेट में अल्‍सर की समस्‍या दूर करता है महुआ का फूल-जिन लोगों के पेट में अल्‍सर की समस्‍या या पेट में छाले होते हैं उनका डाइजेस्‍ट‍िव सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं करता। महुआ के फूल से पेट में अम्ल (एसिड) बनने की समस्‍या दूर होती है। पेट में अल्‍सर की समस्‍या दूर करने के लिये महुआ के फूलों को पानी में उबालें और उस पानी का सेवन सुबह-शाम करें। 

3.बुखार में इस्‍तेमाल करें महुआ का फूल- महुआ के फल को 2 कप पानी में उबाल लें, जब पानी आधा हो जाए तो उसे एक कप में निकलकर पियें और उसमें शहद और नींबू भी डाल सकते हैं। महुआ के रस से बुखार, फ्लू जैसी बीमार‍याँ भी दूर होती हैं।

4.ब्रोंकाइटिस में करें महुआ के फूल का इस्‍तेमाल-सांस से जुड़ी बीमारी को ब्रोंकाइटिस कहते हैं। महुआ के फूलों को पीस लें, एक गिलास में छान लें, जो रस बचेगा उसका सेवन करें तो ब्रोंकाइटिस  की बीमारी में राहत मिलेगी और गले की सूजन कम हो जाएगी।

6.महुआ का तेल बढ़ाता है बालों की उम्र-अगर आपको मजबूत, सिल्की और लंबे बाल चाहिए तो आपको महुआ का तेल इस्तेमाल करना चाहिए. रोजमैरी के तेल में महुआ के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर बालों में लगाने से यह काफी फायदा पहुंचाता है. हफ्ते में एक बार इस तेल के इस्तेमाल से बाल काफी मजबूत हो सकते हैं

7. महुआ का तेल मिटाए जोड़ों का दर्द-महुआ में सूजन मिटाने का गुण होता है. यह शरीर को किसी दर्द से छुटकारा दिला सकता है और इंफेक्शन से भी बचाता है. अगर आपके जोड़ों में दर्द है तो आप महुआ के तेल की मालिश करें, इससे राहत मिल सकता है.

8.सिरदर्द से मिलेगी राहत-सिर दर्द की समस्या से छुटकारा दिलाने में महुआ का तेल काफी फायदेमंद साबित होता है. इस तेल के इस्तेमाल से किसी भी तरह से सिरदर्द से राहत मिल जाती है. इतना ही नहीं माइग्रेन की समस्या में भी इस तेल का फायदा मिल सकता है. 

9.मुहांसे या दाग-धब्बों से छुटकारा-महुआ का तेल स्किन के लिए रामबाण साबित होता है. इसे इस्तेमाल करने से मुहांसे या स्किन पर दाग-धब्बों की समस्या सॉल्व हो जाती है. इस स्किन को सॉफ्ट बनाता है.  केमिकल मुक्त होने के चलते इसके साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं.

10.कीड़े काटने से मिलेगी राहत-अगर कभी भी किसी को कीड़े काट ले और लाल दाने होने लगे तो उस पर तत्काल महुआ का तेल लगाने से राहत मिल जाती है. इसका इस्तेमाल ज्यादातर छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज करता है.

11. मच्छरों से सुरक्षा कोने-कोने तक- महुआ का तेल मच्छरों को भगाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इससे लंग्स में समस्याएं भी नहीं होती. ओडिशा के कई ग्रामीण इलाकों में लोग मच्छर को भगाने के लिए महुआ के तेल को जलाते हैं.

12. महुए का फूल, फल, बीज, छाल, पत्तियाँ सभी का आयुर्वेद में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है।

13. महुए का धार्मिक महत्व भी है। रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष है

14.महुए के बीज से तेल निकालने के बाद वह खली के रूप में पशुओं को खिलायी जाती है।

15. महुए के ताजे और सूखे फल से 'महुअरी' (महुए की रोटी) बनायी जाती है जो अत्यन्त स्वादिष्ट होती है।

16.महुए का फल पकने के बाद उसे खाया जाता है। कच्चे फल में से की तरकारी बनायी जाती है।

17.बायोडीजल या एथेनॉल के लिए 

18.महुआ से जैम बनाया जा सकता है।

19.हस्त पवित्रीकरण (हैण्ड सेनेटाइजर) के रूप में 

20. टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता है-फूलों के रस में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसका उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है।

21.चर्म रोग दूर करे-फूलों के रस को त्वचा पर मलने से खुजली दूर होती है

22.नेत्र रोग दूर करें-फूलों के रस का उपयोग नेत्र रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।

23.रक्तपित्त का इलाज-रक्तस्राव को रोकने के लिए फूलों के रस का उपयोग किया जाता है"पित्त" के कारण होने वाले सिरदर्द का इलाज फूलों के रस का उपयोग नाक की बूंदों के रूप में किया जाता है

24.डायरिया और कोलाइटिस को ठीक करें फूल का चूर्ण-दस्त और कोलाइटिस को ठीक करने के लिए फूल एक कसैले के रूप में कार्य करता है

25.कच्चे फूल एक गैलेक्टोगॉज के रूप में कार्य करते हैं जो स्तन के दूध को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

26.खांसी और ब्रोंकाइटिस का इलाज-भुने हुए फूल 

26.नपुंसकता और सामान्य दुर्बलता को दूर करें दूध में मिला हुआ फूल

27.बवासीर ठीक करे घी में तले हुए फूल महुआ का फूल बवासीर को ठीक करने के लिए कूलिंग एजेंट के रूप में काम करता है  

महुआ के फूलों के औषधीय गुण

हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण- लीवर पर उपयोगी परिणाम देने वाली दवा को हेपेटोप्रोटेक्टिव दवा के रूप में समझा जाता है। दूसरी ओर, लीवर पर विषाक्त प्रभाव डालने वाली दवाओं को हेपेटोटॉक्सिक ड्रग्स कहा जाता है। महुवा के फूल के मेथनॉलिक रस  में मौजूद प्रोटीन और एल्ब्यूमिन लीवर के  सीरम स्तर को बढ़ाकर नियंत्रण करता है। कृमिनाशक गुण-मेथनॉलिक और इथेनॉलिक दोनों फूल के रसायन पेट में कीड़ों के खिलाफ अच्छा काम करता है। जीवाणुरोधी गतिविधि-फूल में पाये जाने वाले रसायन जैसे –मेथनॉलिक बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया -बैसिलस सबटिलिस और क्लेबसिएला निमोनिया के नियंत्रण करता है, एनाल्जेसिक (. वेदनाहर या पीड़ापहारक) गुण भी महुवा के फूल रस में मौजूद है, प्रतिउपचारक गतिविधि(एंटीबायोटिक्स)- फूलों के रस में मौजूद एस्कॉर्बिक एसिड की वजह से होती है जो मानुस में एंटीऑक्सीडेंट शक्ति को बढाता है। एंटीकैंसर गतिविधि- फूलों के रस में मौजूद तत्व में क्षमता है। महुआ का फूल आने का समय मार्च-अप्रैल है, क्योंकि यह एक वार्षिक फल देने वाला वृक्ष है। भोर में परिपक्व होने पर फूल झड़ जाता है। ताजा महुआ के फूल स्वाद में मीठे होते हैं और इनमें विभिन्न फाइटोकेमिकल्स होते हैं। परंपरागत रूप से, ताजे फूलों को एकत्र किया जाता है और 2-3 दिनों के लिए सीधे धूप में सुखाया जाता है और सामान्य वातावरण में जूट की थैलियों में संग्रहित किया जाता है।

खाद्य उत्पादन में उपयोगिता

चीनी (सुक्रोज, ग्लूकोज, फ्रुक्टोज, अरेबिनोज, माल्टोज और रमनोज की कुछ मात्रा) की उच्च सामग्री के कारण आदिवासी लोग महुआ के फूलों का उपयोग कई स्थानीय और पारंपरिक व्यंजनों जैसे हलवा, मीठी पुरी, खीर और बर्फी में मिठास देने वाले एजेंट के रूप में कर रहे हैं। केक तैयार करने के लिए आदिवासी लोग कुछ अनाज (चावल, रागी, ज्वार) या मूल फसल (शकरकंद) के साथ महुआ के फूलों का भी उपयोग कर रहे हैं । सूखे फूलों को इमली और साल के बीजों के साथ उबाला जाता है, जिसे गरीब आदिवासी लोगों द्वारा अनाज के स्टेपल के विकल्प के रूप में लिया जाता है।  इसके अलावा, फूलों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है जो मवेशियों के स्वास्थ्य में सुधार और दूध उत्पादन में वृद्धि करने में मदद करता है। 

किण्वित उत्पादों के रूप में फूलों का उपयोग- शराब और मादक पेय पदार्थों के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। उत्तर-पश्चिम भारत के स्थानीय लोग “ महुआ दारू ” बनाने के लिए महुआ के फूलों को इकट्ठा करके सुखाते थे, जिसमें 20-40 (%) अल्कोहल होता है। 22 महुआ के फूलों को पानी में मिलाकर किण्वन के लिए अलग रख दिया जाता है। किण्वन के दौरान नवशर (अमोनियम क्लोराइड) और गुड़ मिलाया जाता है। कभी-कभी तेज तीखा स्वाद विकसित करने के लिए काली मिर्च मिलाई जाती है। किण्वन के बाद, मिश्रण को पारंपरिक आसवन सेटअप वाले कंटेनर में रखा जाता है। बताया जाता है कि इस विधि से एक किलोग्राम सूखे फूलों से 300-400 मिली दारू प्राप्त होता है। 

महुआ के फूलों का उपयोग

किण्वित पारंपरिक उत्पाद-आदिवासी लोग महुली नामक देशी शराब बनाने के लिए भी करते हैं।किण्वित फूलों को आसवन के लिए रखा जाता है और आसवन में अल्कोहल की मात्रा लगभग 30-40 (%) पाई जाती है। 

गैर-किण्वित फूल

स्वीटनर के रूप में-महुआ के फूल का इस्तेमाल हलवा, मीठी पूरी, बर्फी जैसे कई व्यंजनों में मिठास के तौर पर किया जाता है।उच्च मात्रा में शर्करा (सुक्रोज, फ्रुक्टोज, अरेबिनोज, माल्टोज, रमनोज) की उपस्थिति के कारण। केक की तैयारी इसे महुआ के फूल चावल या अन्य अनाज या मूल फसलों से बनाया जाता है।पहले से भीगे हुए चावल और महुआ के फूलों को मिलाकर पीस लिया जाता है, पेस्ट को साल के पत्तों से ढक दिया जाता है और केक बनाने के लिए आग पर जला दिया जाता है। प्रधान अनाज के विकल्प के रूप में यह आमतौर पर गरीब आदिवासी लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है।सूखे फूलों को इमली और साल के बीजों के साथ उबाला जाता है और भंडारित किया जाता है। मवेशियों के चारे के रूप में,फूल (किण्वन और आसवन के बाद छोड़े गए फूल) का उपयोग किया जाता है।मुरझाए हुए फूल मवेशियों को खिलाए जाते हैं, मवेशियों के स्वास्थ्य में सुधार और दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए। 

औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग

आयुर्वेद में, महुआ के फूलों को शीतलक, वातनाशक, गैलेक्टागॉग और कसैले माना जाता है। दिल, त्वचा और आंखों की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद बताया गया है। महुआ के फूलों का पारंपरिक रूप से आदिवासी लोगों द्वारा कई बीमारियों के उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। फूलों का ताजा रस टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है और "पित्त" के कारण त्वचा रोग, नेत्र रोग, रक्तपित्त और सिरदर्द को भी ठीक करता है, आदिवासी लोग स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके स्तनपान को बढ़ाने के लिए कच्चे फूल चढ़ाते हैं। स्थानीय लोगों द्वारा खांसी और ब्रोंकाइटिस को ठीक करने के लिए भुने हुए फूलों का सेवन किया जाता है। महुआ के फूलों का दूध के साथ सेवन करने से नपुंसकता और सामान्य दुर्बलता दूर होती है। घी में तले हुए फूल कूलिंग एजेंट के रूप में काम करते हैं और बवासीर को ठीक करने में मदद करते हैं। 

महुआ के फूलों का मूल्यवर्धन

आजकल शोधकर्ता और खाद्य प्रोसेसर नए उत्पादों के विकास के लिए कम उपयोग वाली फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस वजह से महुआ के फूलों से भी कुछ उत्पाद तैयार किए जाते हैं। लेकिन ये सीमित शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों और उद्योगों में बहुत सीमित हैं, 

महुवा की बागवानी

महुआ के पेड़ के अच्छे विकास के लिए शुष्क उष्ण कटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके लिए 20 से 46 डिग्री तापमान की आवकश्यता पड़ती है. तथा 550 से 1500 मि० मी० वार्षिक वर्षा की जरुरत होती है. इसके लिए सूर्य का प्रकाश अत्यंत प्रिय होता है.महुआ की बागवानी  लगभग सभी मिट्टियों में की जा सकती है. लेकिन अच्छी उपज के लिए गहरी चिकनी बलुई या रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. इसके अलावा इसे पथरीली, मटियार, खारी व क्षारीय मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. महुआ के पौधे का प्रवर्धन बीजों एक कलमों द्वारा किया जा सकता है. जून और अगस्त महीने में इसके बीजों का संग्रहण कर लेना चाहिए. इसके उपरांत बीजों की बुवाई कर देनी चाहिए. बीजों की बुवाई से पहले इस बात का ध्यान रखे बीजों को गर्म पानी (80 से 100 सेंटीग्रेड) में डालकर उसे शीघ्र ठंडा कर लेना चाहिए. फिर उसे 24 घंटे तक उसी में डुबोकर रख देना चाहिए. महुआ की पौधे क्यारियों में बरसात के दिनों में तैयार की जाती है. इसके लिए उपचारित बीजो को 2 सेमी० गहराई पर लाइनों में 10 सेमी० X 10 सेमी० के अंतराल पर नाली बनाकर बोना चाहिए. बुवाई के उपरांत क्यारियों की सिंचाई करनी चाहिए. बुवाई के 10 से 15 दिन बाद अंकुरण प्रारंभ हो जाता है. महुआ की पोलीथिन थैलियों में नर्सरी तैयार करने के लिए 15 सेमी० X 25 सेमी० आकार की थैलियाँ लि जाती है. इन थैलियों में मिट्टी, खाद बालू की मात्रा उपयुक्त अनुपात 3 : 1 : 1 के मिश्रण से भरकर नर्सरी बेड में जमा कर देना चाहिए. उपचारित बीजों को इन थैलियों में 2 सेमी० की गहराई पर बुवाई कर देनी चाहिये. जब अंकुरण हो जाय तो 2 से 3 दिन बाद सिंचाई कर देना चाहिए. महुआ के पौधों की रोपाई गर्मी के मौसम के मई-जून माह में की जाती है. इसके लिए 60 सेमी० X 60 सेमी० X 60 सेमी० आकार के कतार से कतार 7 मीटर व पौधे से पौधे की 7 मीटर दूरी रखते हुए गड्ढे खोद लेना चाहिए. इसके उपरान्त इन गड्ढों को धूप में खुला छोड़ देना चाहिए. पोलीथिन में तैयार किये गए महुआ पौधों का रोपण जुलाई से सितम्बर माह तक तैयार गड्ढों में किया जाता है. महुआ के पौधों के अच्छे विकास के लिए खाद एवं उर्वरक की उपयुक्त देनी पड़ती है. इसके एक वर्ष के पौधों को 10 किलों गोबर की खाद, 200 ग्राम यूरिया, 300 ग्राम सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट एवं 125 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की जरुरत पड़ती है.पौधों के रोपण के समय जुलाई माह में गोबर की खाद सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा में मिलाकर गड्ढों में भर देनी चाहिए. यूरिया की मात्रा दो बराबर हिस्सों में बांटकर 100 ग्राम यूरिया रोपण के एक माह बाद एवं 100 ग्राम यूरिया रोपण के दो माह बाद पौधों के पास डालना चाहिए. बताई गयी उर्वरकों की मात्रा 10 वर्षों तक इसी प्रकार देना चाहिए. महुआ के पौधों में अगल-अलग समय पर सिंचाई की जाती है. जैसे सुषुप्ता अवस्था, यानि की पत्तियों का झाड़ना, फूल का आना शुरू होना (मार्च से अप्रैल) एएवं फल का लगना शुरू होना (मई) में की जानी चहिये. यदि इन अवस्थाओं में सिंचाई की जाय तो उपज में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है. फिर भी महुआ में शुरू के 2 से 3 वर्षों तक पहली 4 सिंचाई नवम्बर से मार्च तक 5 दिनों के अंतराल पर तथा मार्च के बाद 30 दिनों के अंतराल पर 3 सिचाई करने से पौधों व जड़ों की बढ़वार समुचित रूप से होती है. महुआ के पौधों में पुष्पन पतझड़ के बाद फरवरी से मार्च के बीच होता है. इसके एक गुच्छे में 10 से 60 फूल लगते है. कम परागण की वजह से 8 से 13 प्रतिशत ही फल बन पाते है. तथा अन्य फूल जमीन पर गिर जाते है. इसके फल पकने का समय मई के तीसरे सप्ताह से जून के अंत तक होता है. इन फलों से एक सप्ताह के अंदर फोड़कर बीज निकाल लिए जाते है. अन्यथा बीज अन्दर ही अंकुरित हो जाते है. इसके बीजों में से गिरी निकाल ली जाती है. और जूट के बोरो में लगभग 6 प्रतिशत नमी पर सग्रहित कर ली जाती है. बाद में इस गिरी से तेल निकाल लिया जाता है.महुआ के एक पेड़ से हर साल मीठे फल सूखे हुए 100 से 150 किलोग्राम प्राप्त हो जाते है. अगर तेल प्राप्त करने के लिए बीजों की बात की जाय तो एक पेड़ से हर साल लगभग 60 किग्रा बीज प्राप्त हो जाते है.
महुवा के बहुउद्देश्यीय उपयोग के कारण यह अपने महत्वपूर्ण घटकों और उस विशेष क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के कारण 3-F (Food, Fuel and Fodder) यानी भोजन, ईधन और चारा और के रूप में बुंदेलखंड के ग्रामीण और किसानो. की मूलभूत आवश्यकता को पूरा कर रहा है। लेकिन सीमित स्थानों पर सीमित समय के लिए इसकी सीमित उपलब्धता के कारण यह अभी भी उन स्थानों और विशेष समय के साथ-साथ वैज्ञानिक, शोधकर्ताओं, सरकारी पालिसी  और उपभोक्ताओं से अछूता है। वर्तमान जानकारी के आधार पर ये पता चलता है की महुवा का संरक्षण आदिवासी लोगों या पुरानी पीढ़ियों, राजा या नवाबों द्वारा इसको किया गया, वर्तमान में बढाती आधुनिकता, औधोगिकिरण के दौर में ज़लवायु परिवर्तन के दौर में भविष्य में बड़ते तापमान और मौसम परिवर्तन होने से आज महुवा की उपयोगता के लिए ज़रूरी है की इस की खेती पर्यावरण संतुलन, कुपोषण एवं  विभिन्न मूल्यवान खाद्य उत्पादों के विकास के लिए उन्नत तकनीकों के साथ-साथ वर्ष भर उनकी उपलब्धता के साथ-साथ इस फूल के व्यावसायिक उपयोग की प्रबल आवश्यकता है। जो निश्चित रूप से किसानो के लिए एवं ग्रामीण लोगों की अर्थव्यवस्था के उत्थान और उनके सतत विकास में मदद करेगा। कुशल प्रौद्योगिकियों और जागरूकता का विकास निश्चित रूप से फूल की गुणवत्ता विशेषताओं में सुधार करने में मदद करेगा जो उन समाजों के रोजगार और आय में वृद्धि करने में मदद कर सकता है। – डॉ. आर. के. प्रजापति, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञानं केंद्र, टीकमगढ़। 

इनका कहना है

कु.अंतरा ओझा जो बुंदेलखंड में महुवा पे सह-उत्पाद बनाने वाली एक परियोजना में टीकमगढ़ के कृषि महाविद्यालय में खाद्य प्रोसेसिंग पर चल रही थी पे काम कर रही थी कहती है की-महुवे के गैर-किण्वित फूल से प्यूरी और सॉस,ताज़ा फूल से रस लेके बेकरी और कन्फेक्शनरी में स्वीटनर के रूप में उपयोग जा सकता है महुवा से जाम- (पके फूलों के गूदा से),जेली (महुआ फूल की कसैलेपन को कम करने के लिए अमरूद के साथ मिलाकर।),मुरब्बा (सिट्रस के छिलकों को मिलाकर),कैंडिड फूल(सूखे फूल) और महुआ कैंडी,महुआ टॉफी, महुआ केक,महुआ स्क्वैश,महुआ लड्डू,महुआ आर.टी.एस10(%) अदरक के अर्क के साथ मिश्रित करके। या एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर पेय(महुआ का फूल और आंवले का रस मिलके बनाये जाने की परियोजना में काम किया है जो भविष्य में भारत के देसी पेड़ों की उपयोगता को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

कु. अंतरा ओझा

बुंदेलखंड की ज़लवायु एवं स्थानीय लोगों की संस्कृति,जीवन एवं परम्परों किद्वान्तियों में रचा बसा महुवा आज उपेछा का शिकार जैसे हो गया हो इसमें पायी जाने वाली मौसम अनुकूलन परिस्थितियों को देखते हुई इसके महत्व को बढने के लिए जिले में पौध रोपण जैसे प्रोग्राम में इसकी भागीदारी कृषि विज्ञानं केंद्र द्वारा किया जाएगा जिससे महुवा के प्रति लोगों में जगुरुकता लाये जा सके और आने वाले समय में महुवा का अधिक से  अधिक पौध रोपड़ जिले में हो सके तथा महुवा की आधुनिक खेती, खाद्य प्रसंशा करण, फूल कलेक्शन तकनीकियों पे ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाएगा।  

– डॉ. बी. एस. किरार, प्रधान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञानं केंद्र, टीकमगढ़

महुवा बुंदेलखंड के लिए उत्तम बागवानी का पेड़ है जिसके लिए महुवा की कम दिन में फल देने वाली विकसित किस्मों को जिले में नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय, फैजाबाद .उ.प्र.  से लाया जायेगा जिनकी कम उचाई पे ही 3- वर्षों में किसानो को फल प्रति पौधा 15 किलोग्राम प्राप्ति हो सकेगा और छोटे उचाई के करण महुवा की बागवानी के साथ अन्तेर्वर्ती फसलों की खेती करके किसानो को प्रति एकड़ अधिक आर्थिक लाभ मिल सकेगा ,अधिक आर्थिक लाभ मिलेगा तथा कृषि विज्ञानं केंद्र टीकमगढ़ द्वारा जिले में प्रचार प्रसार महुवा की बगवानी का किया आएगा।

–डॉ. वी.के. सिंह., डीन कृषि महाविदालय टीकमगढ़

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