वर्मीकम्पोस्ट स्टार्टअप से कमाती हैं लाखों सलाना
किसानों छात्रों एवं महिलाओ को जैविक खेती एवं वर्मीकम्पोस्ट का देती हैं प्रशिक्षण
डॉ शशिकान्त सिंह
इंदौर। इंदौर मध्यप्रदेश की पूजा यादव ने कंप्यूटर साइंस में बी-एससी किया हैं। मुम्बई में ग्यारह साल के आई टी करियर में तीन साल बहुत अच्छे पद पर रहीं हैं। कुछ व्यक्तिगत परिवारिक कारणों से उनको वेब डिजाइनर की नौकरी छोड़ इंदौर लौटना पड़ा। इसी बीच उनके पिता को कैंसर हो गया जो तीसरे स्टेज पर था। वो अपने पिता को जल्द से जल्द स्वस्थ देखना चाहती थी। इस कारण से अच्छे इलाज के साथ साथ डॉक्टर से अपने पिताजी के लिए डाइट की जानकारी ली। डाक्टर ने जैविक और पौष्टिक भोजन कराने की सलाह दी। पूजा ने जब बाजार में पता किया तो पता चला जैविक भोज्य पदार्थों की लूट मची है। 50 रूपये की वस्तु 200 रूपये में मिल रही है। तब खुद से अपने घर पर ही जैविक सब्जियाँ और फल उगाने का निर्णय लिया। जिससे अपने परिवार को शुद्ध भोजन उपलब्ध करा सके। अपनी बालकनी से शुरू कर धीरे धीरे आधे बीघा जमीन पर सब्जियाँ लगाया और पौधों के पोषण के लिए गोबर के खाद का प्रयोग किया। उसमें सफलता भी मिली किया। अब अपने शिक्षा एवं कार्य के अनुरूप गूगल पर गोबर की खाद के लिए जानकारी एकत्र करना शुरू किया। तब पता चला की वर्मीकम्पोस्ट इससे अच्छा है।
पूजा बताती है कि सबसे पहले अपने प्रयोग के लिए वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया और अपने कुछ मित्रों को भी दिया। परिणाम बहुत अच्छा रहा। इस परिणाम ने इस कार्य को अब व्यवसायिक स्तर पर करने के लिए उनको प्रेरित किया। आगे बताती है कि जो एक वर्मीकम्पोस्ट बेड अपने निजी प्रयोग के लिए तैयार किया था। उसमें तीन वर्मीकम्पोस्ट बेड के लिए केंचुआ तैयार हो गया था। तीन से छ: और फिर बारह इसी तरह यह सिलसिला बढते बढते एक सौ पच्चीस बेड तक पहुँच गया। अब पूजा केवल वर्मी कम्पोस्ट ही नहीं केंचुआ भी बेचती है। एक बार चल पडे उनके पैर यही नहीं रुके। वो हर किसान तक पहुँच कर जैविक खेती और उसके लाभ को समझना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने ने सोशल मीडिया के प्रयोग को अपना हथियार बनाया और इसके लिए Being Organic नाम से एक यूट्यूब चैनल बनाया। जिसके द्वारा वह किसानों को जैविक खेती कैसे करें और उसके महत्व को बताने लगी। इसके साथ ही मध्य प्रदेश मे जहाँ भी कुछ किसान भाई समूह मे इकठ्ठा होते हैं और जैविक खेती करने की इच्छा जताते हैं। वहाँ अपनी टीम के साथ जाती है और उन्हें जैविक खेती की सम्पूर्ण जानकारी देती है। वो उन्हें समझाती है कि कैसे वो अपने जैविक उत्पादन को अच्छे दामों पर बेच सकते हैं। पूजा अभी लगभग 2500 सौ किसानों के साथ जुडी हुई है। इसके साथ ही वह स्कूल कालेजों एवं में जा कर छात्रों को भी आर्गेनिक फार्मिंग एवं वर्मीकम्पोस्ट के लाभ को बताती है। पूजा कहती है कि उनका लक्ष्य जैविक खेती को बढ़ाना और किसानों को सजग करना है।
पूजा आगे बताती है कि वर्मीकम्पोस्ट एक संतुलित खाद है। इसमें नत्रजन फासफोरस तथा पोटाश की मात्रा गोबर की खाद से अधिक होती है। इसके अलावा सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे तांबा कैल्शियम गंधक कोबाल्ट भी मिलते हैं। केंचुआ खाद में पौधों के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व पर्याप्त एवं सन्तुलित मात्रा में मौजूद होते हैं। जो पौधों को सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं अतः वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है।वर्मीकम्पोस्ट जलग्राही होता है। जो वातावरण से नमी व सिचाई के रूप में पौधों को दिये गये पानी को सोख कर भूमि से वाष्पीकरण तथा निक्षालन द्वारा पानी के नष्ट होने को रोकती है अतः वर्मीकम्पोस्ट का खेत में उपयोग करने पर पौधों में बार-बार पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है।वर्मीकम्पोस्ट में अनेक तरह के सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु, फास्फोरस घोलक जीवाणु, पौधों की बढवार में वृद्धि करने वाले जीवाणु, एक्टीनोमाइसिटीज, फफूंद और सैलूलोज व लिगनिन को विघटित करने वाले पाॅलीमर्स भारी संख्या में मौजूद रहते है। ये सूक्ष्म जीव भूमि में मौजूद पेड पौधों के अवशेष तथा अन्य जैविक कचरे को सड़ाने व पौधों की बढवार में सहायक होते है। वर्मीकम्पोस्ट में उपस्थित एक्टीनोमाइसिटीज एन्टीबायोटिक पदार्थों का सृजन करते हैं। जिनसे पौधों में कीटों से बचाव की क्षमता बढ़ जाती है। वर्मीकम्पोस्ट में सात गुना एक्टीनोमाइसिटीज होता है। जो घुलनशील है और पौधों को तुरन्त प्राप्त हो जातें हैं। केचुआ गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खाकर उसे लाभदायक ह्ममूस में परिवर्तित कर देते हैं। इसमें खरपतवारों के बीज नहीं होते हैं। अतः खेत में इसका प्रयोग करने पर किसी भी तरह के खरपतवारों की समस्या नहीं होती है। जबकि गोबर के खाद या कम्पोस्ट के उपयोग से खेत में खरपतवार अधिक उगते है।वर्मीकम्पोस्ट में मानव तथा पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी तरह के जीवाणु नहीं होतें है।
वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के भौतिक गुणों जैसे रन्ध्रावकाश, जलधारण क्षमता, मृदा संरचना, सूक्ष्म जलवायु, तत्वों को रोकने व पोषण क्षमता एवं रासायनिक गुणों जैसे- कार्बन: नाइट्रोजन के अनुपात में कमी कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सुधार और जैविक गुणों जैसे- नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस एक्टीनोमाइसिटीज आदि की संख्या में पर्याप्त सुधार होता है परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता लम्बे समय तक बनीं रहती है। वर्मीकम्पोस्ट में विद्दुत आवेशित कण होता है। जो पौड़ी को मृदा से पोषक तत्व लेने में सहायता करता है। वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के तापमान, नमी, स्वास्थ्य, तथा संचरण एवं माईक्रोक्लाइमेट की एकरूपता के लिए अनुकूलता पैदा होती है। वर्मीकम्पोस्ट के कणों पर पेराट्रोपिक झिल्ली होती है।जिससे कम्पोस्ट में मौजूद नमीं का शीघ्रता से वाष्पीकरण द्वारा ह्रास नहीं होता और भूमि में दिए गये पानी को अधिक समय तक रोकने में मदद मिलती है। वर्मीकम्पोस्ट खाद के कणों पर म्युकस जैसा पदार्थ लिपटा हुआ होना के कारण यह मृदा में हवा का आवागमन एवं जलधारण क्षमता बढाता है तथा भारी मिट्टीयों में जल निकास सुधार करता है। वर्मीकम्पोस्ट में आॅक्जिन्स, जिब्रैलिन्स साइटोकाइनिन्स, विटामिन, अमीनोअम्ल आदि अनेक तरह के जैव-सक्रिय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। जिनसे पौधों में संतुलित बढवार तथा अधिक उपज देने की क्षमता का विकास होता है।
केचुए के शरीर से कई प्रकार के एन्जाइम जैसे पैप्टेज-प्रोटीन पाचन के लिए, एमाइलेज-स्टार्च व ग्लाईकोजन पाचन के लिए, लाइपेज-वसा पाचन के लिए, सेलूलेज- सेलूलेज पाचन के लिए, इनवर्टेज- शर्करा पाचन के लिए, तथा कैटाइनेज- काइटिन पाचन के लिए कार्य करता है अतः स्राव के रूप में उत्पादित एंजाइमों से केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव होता है। केंचुओं के शरीर का 85 प्रतिशत भाग पानी से बना होता है। इसलिए सूखे की स्थिति में अपने शरीर का 60 प्रतिशत पानी का ह्रास हो जाये तो भी केंचुआ जिन्दा रह सकता है। मरने के बाद भी उनके शरीर से भूमि को सीधे नत्रजन मिलता है।
वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता आदि में सुधार आता है परिणामस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की भंडारण क्षमता एवं अधिक मूल्य पर बिक्री होने से आय में भारी वृद्धि होती है। वर्मीकम्पोस्ट का मूल्य कम होने के कारण खेती में इसके उपयोग से फसलों के उत्पादन लागत में कमी आती है तथा केंचुआ पालन से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिलती है। अब सवाल उठता है, कैसे तैयार करें। इसके लिए पूजा बताती है। वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के कई तरीके हैं। इनमें बेड सिस्टम सबसे आसान है। इसमें तीन से चार फीट चौड़ा और जरूरत के हिसाब से लंबा बेड बनाया जाता है। इसके लिए आप सीमेंट का एक बेड बना सकते हैं। ये नहीं करना है तो जमीन पर प्लास्टिक डाल दे और फिर उसके चारों तरफ ईंट से बाउंड्री बना देना है। बेड बनाने के बाद उसमें गोबर डालकर उसे अच्छी तरह से फैला दिया जाता है। उसके बाद केंचुए डालकर ऊपर से पुआल या घास-फूस डालकर ढंक दिया जाता है। फिर उस पर नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाता है।
एक फीट लंबे बेड के लिए 50 किलो गोबर की जरूरत होती है। अब अगर हम तीस फीट लंबा बेड बना रहे हैं तो हमें 1500 किलो गोबर और तीस किलो केंचुआ चाहिए। केंचुआ कम हों तो भी काम चल जाएगा। बस खाद तैयार होने में समय थोड़ा ज्यादा लगेगा। पूजा मानती है जितने अधिक केंचुए होंगे उतनी जल्दी खाद तैयार होगी।