पद्मश्री बाबूलाल दहिया ने घर पर बनाया पुराने देसी कृषि यंत्रों का म्यूजियम, जानिए क्या है खास

पद्मश्री बाबूलाल दहिया ने घर पर बनाया पुराने देसी कृषि यंत्रों का म्यूजियम, जानिए क्या है खास

सतना: सतना में एक ऐसा म्यूजियम है, जहां कई साल पुराने उपकरण मौजूद हैं। इसमें भारत के उस दौर के उपकरण मौजूद हैं, जो हमारे देश की संस्कृति को दर्शाते हैं। इसमें ऐसे उपकरण भी हैं जो पुराने जमाने में रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल हुआ करता थे। जिला मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर पिथौराबाद ग्राम निवासी पद्मश्री बाबूलाल दहिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने भी इनके कार्यों की सराहना की थी। बाबूलाल दहिया ने घर पर ढाई सौ से अधिक दुर्लभ धान की कई किस्मों के बीज, गेहूं एवं मोटे अनाज सहित सब्जियों के बीज संजो कर रखे हैं।

करीब डेढ़ से दो सौ वर्ष पुराने कृषि यंत्रों एवं उपकरणों का संग्रह 
उन्होंने उन्होंने घर पर ही देसी म्यूजियम बना डाला है। इस देसी म्यूजियम में करीब डेढ़ से दो सौ वर्ष पुराने कृषि यंत्रों एवं उपकरणों का संग्रह है। इस संग्रह में कुछ ऐसे कृषि यंत्र हैं, जो अब दिखाई भी नहीं देते। लोग जब इन यंत्रों को देखने जाते हैं तो बाबूलाल इनके बारे में विस्तार से जानकारी भी देते हैं। प्राचीन और विलुप्त हो रहे कृषि उपकरणों के अलावा सालों पुरानी नायाब वस्तुओं का संग्रह कर रखा है। यह देसी म्यूजियम इतना खास है कि यहां पर आपको वर्षों पुरानी ढाई सौ से अधिक दुर्लभ वस्तुएं देखने को मिल जाएंगी।

देसी म्यूजियम में सबसे खास चीज ठाकुर रणमत सिंह की तलवार भी 
अपने देसी म्यूजियम में बाबूलाल दहिया ने करीब ढाई सौ प्रकार के पुराने कृषि यंत्रों एवं उपकरणों को शामिल किया है। उनके पास लकड़ी व लोहे के उपकरण, मिट्टी, बांस, धातु और पत्थर के बर्तन भी हैं। इसके अलावा चर्म वस्तुओं समेत करीब ढाई सौ अनोखी चीजें हैं। ये सभी लोगों को एक छत के नीचे ही देखने को मिल रही हैं। इस देसी म्यूजियम में सबसे खास चीज ठाकुर रणमत सिंह की तलवार भी है।

वर्षों पुरानी परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर: पद्मश्री दहिया
पद्मश्री दहिया का कहना है कि करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मशीनों का युग नहीं था, तब लोग प्राकृतिक और स्वयं के द्वारा तैयार किए गए उपकरणों के माध्यम से खेती करते थे। उस जमाने में लोग खुद इंजीनियर होते थे, जैसे लोहार, बढ़ाई, तेली, कुम्हार चर्मकार, बंशकार, धातु शिल्पकार, पत्थर शिल्पकार आदि। इन देसी इंजीनियरों ने कहीं पर किसी से ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन उस दौर में भी बखूबी खेती किसानी करते थे। वर्षों पुरानी परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में पूर्वजों की इस धरोहर को संजोने के लिए यह देसी म्यूजियम बनाया है।

लगभग ढाई सौ उपकरण ऐसे रखे हुए हैं जो चलन से बाहर हो गए हैं
इस बारे में म्यूजियम संचालक बाबूलाल दाहिया ने बताया कि," यह हमारा कृषि यंत्रों उपकरणों का एक म्यूजियम है, जिसमें लगभग ढाई सौ उपकरण ऐसे रखे हुए हैं जो चलन से बाहर हो गए हैं। आज के इस युग में खेती की पद्धति बदल जाने से ये चलन से बाहर हो गए हैं। हम ऐसे उपकरणों का एक इतिहास बना रहे हैं। इस म्यूजियम को बनाने का उद्देश्य यही है की हमारे पूर्वजों के द्वारा किन कृषि उपयंत्र बर्तन का उपयोग किया जा रह था, और उसके बारे में लोग यहां आकर जान सकते हैं और समझ सकते हैं"।

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