जबलपुर में मृतकों की याद को पेड़-पौधों के रूप में संजोया जा रहा

जबलपुर में मृतकों की याद को पेड़-पौधों के रूप में संजोया जा रहा

पेड़ के रूप में अपनों को जिंदा रखने की खुशी

मुहिम से जुड़कर अब तक जबलपुर में 100 पौधे रोपित किए जा चुके 

praveen namdev
जबलपुर, न कब्र न मुक्तिधाम! क्योंकि वो मृत्यु के बाद भी जिंदा हैं। लोगों को सुनने-पढऩे में आश्चर्य जरूर होगा कि आखिर मौत के बाद भी कोई कैसे जिंदा रह सकता है। इस सवाल का जवाब संस्कारधानी जबलपुर की एक सामाजिक संस्था कदम ने खोज निकाला है। ये संस्था मृतक की राख में नए पौध लगवाकर उसकी यादों और अंश को जीवित रख रही है। संस्था की मुहिम से अब तक सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं। वो अपनों को खोने के बाद भी उन्हें पेड़ के रूप में जिंदा रखे हुए हैं। यह बात तो साबित हो चुकी है कि पेड़-पौधों में भी इंसानों की तरह ही जान होती है। वह भी सांस लेते हैं वह भी धीरे-धीरे बढ़ते हैं, तो फिर इंसान और पौधों में क्या अंतर। इसी विज्ञान को साथ लेकर संस्था ने अंश रोपण अभियान की शुरुआत 10 साल पहले की थी। उनकी इस मुहिम से जुड़कर अब तक जबलपुर में 100 से ज्यादा ऐसे पौधे रोपित किए जा चुके हैं। 

अंश रोपण अभियान से ना सिर्फ अपनों को अपने बीच महसूस किया जा सकता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी यह एक सराहनीय कदम है।

बेटा आज भी उनके बीच...

कुछ ऐसी ही कहानी यहां रहने वाले लोधी परिवार की भी है। 4 साल पहले उनका नौजवान बेटा बीमारी के कारण चल बसा। अपने बेटे के जाने के गम में पूरा परिवार सदमे में था। फिर उन्हें संस्था से जानकारी मिली कि अंश रोपण के जरिए वह अपने बेटे को अपने बीच बनाए रख सकते हैं। लोधी परिवार ने अपने बेटे की राख का इस्तेमाल कर बेल का पौधा लगाया। आज वो पेड़ बन चुका है और पूरा परिवार उसे अपने बेटे की तरह दुलार करता है।

पेड़ के रूप में सिर पर पिता का साया

जबलपुर के रामचरण कनोजिया की मृत्यु 3 साल पहले हो चुकी है। रामचरण के पुत्र अनिल बताते हैं कि उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां और उनके पूरे परिवार का सहारा छिन गया था। तभी उन्हें जानकारी लगी की अंश रोपण के जरिए वह अपने पिता को अपनों के बीच हमेशा बनाए रख सकते हैं, तो उन्होंने अंतिम संस्कार के बाद अपने पिता की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के बाद कुछ राख अपने पास रख ली और उसका इस्तेमाल कर अपने घर में इलायची का एक पौधा लगा लिया। 3 साल में आज वह पौधा एक पेड़ का रूप ले रहा है। रोजाना पूरा परिवार इस पौधे की सेवा करता है। त्योहारों में पौधे के पास समय व्यतीत किया करता है। इससे उन्हें महसूस होता है कि उनके पिता का आशीर्वाद उनके ऊपर बना हुआ है।