धार के किसान गौरव जाट केले की खेती ले रहे अच्छा मुनाफा, जानिए कैसे करते हैं खेती
एमपी के केले की सप्लाई अरब देशों में
धार। पारंपरिक खेती छोड़ धार जिले की मनावर तहसील के गांव साततलाई के 42 साल का किसान केले की खेती कर रहा है। इस साल 900 टन केले करीब 97 लाख रुपए में बेचे हैं। इसमें 47 लाख रुपए का मुनाफा हुआ है। किसान का अनुमान है कि अगले दो महीने में करीब 100 टन और केला निकलेगा, जिससे करीब 12 लाख रुपए का प्रॉफिट होगा। जागत गांव हमार के इस अंक में हम अपने पाठकों को बता रहे हैं केले की खेती करने वाले गौरव जाट के बारे में। गौरव ने आट्र्स स्ट्रीम से ग्रेजुएट है। उनके पास 30 एकड़ जमीन है। इसके साथ ही 30 एकड़ भूमि और लीज पर लेकर कुल 60 एकड़ में केले की खेती कर रहे हैं। 20 से 25 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। गौरव जाट को केला किंग के नाम से भी जाना जाता है। इनके पास केले की खेती की जानकारी लेने जिले के साथ-साथ मध्यप्रदेश के दूसरे जिलों से भी किसान आते हैं।
गौरव जाट से ही जानते हैं कैसे हो रही लाखों में आय और कैसे शुरू की खेती
पहले मैं भी पारंपरिक तरीके से गेहूं, चना, कपास और मक्का की खेती करता था, जिसमें लागत के मुकाबले कम बचत होती थी। बारिश और मौसम की मार से नुकसान भी उठाना पड़ता था। फिर मैंने सोचा क्यों ना खेती में ही नया किया जाए। इसी बीच मुझे महाराष्ट्र के जलगांव जाने का मौका मिला। वहां ड्रिप इरिगेशन के साथ टिश्यू कल्चर तकनीक से केला फसल की जानकारी मिली। मनावर लौटने के बाद यहां पहले से केले की खेत कर रहे किसानों से बात की। उन्होंने बताया कि इसमें दूसरे फसलों से अच्छा मुनाफा मिल रहा है। फिर मैं भी अपने 30 बीघा खेत में केले की खेती शुरू की। इसमें मुनाफा होने लगा तो धीरे-धीरे रकबा दिया। अब मैं 60 बीघा में केले की खेती कर रहा हूं। पिछले साल अप्रैल में 30 बीघा में 24 हजार केले के पौधे लगाए थे। महाराष्ट्र के जलगांव लैब से पौधे मंगवाए थे। अभी तक इसमें से करीब 9 सौ टन केला बेच चुका हूं। जिसमें करीब 47 लाख रुपए का इनकम हुआ है। अभी लगभग 100 टन और केला निकलेगा। जिसमें 12 लाख तक मुनाफा हो सकता है। इसमें मुझे करीब 50 लाख रुपए की लागत आई थी। मेरे केले मध्यप्रदेश के बाहर बिकते हैं। रायपुर, दिल्ली, मुंबई के साथ खाड़ी देश इराक, ईरान और दुबई में सप्लाई हो रहा है। तेज-आंधी तूफान से कुछ पेड़ गिर गए थे। इसके बाद मैंने झाड़ों को आंधी-तूफान से बचाने के लिए बांस का सहारा दिया और फिर से खड़ा किया। 25 मई 2024 को 30 बीघा में करीब 15 हजार पौधे लगाए हैं। 8 से 10 महीने बाद उत्पादन शुरू हो जाएंगे। अक्टूबर में 8 हजार और नवबंर में 6 हजार केले पौधे लगाऊंगा। इस तरह पूरे साल भर केले का उत्पादन होता रहता है। फसलों के देखभाल के लिए 35 मजदूर खेत पर तैनात रहते हैं। केले के पौधों की कटाई-छंटाई करने के साथ-साथ खराब पत्तों को काटकर अलग करते हैं। जिससे पौधों का विकास नहीं रुकता है।
देश भर में मशहूर है निमाड़ का केला
केले के बेहतर उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है। तापमान में अधिक कमी या वृद्धि होने पर पौधों की वृद्धि, फलों के विकास एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निमाड़ से देश के विभिन्न हिस्सों में केला पहुंचाया जाता है। समय-समय पर इसका निर्यात विदेशों में होता रहा है।
निमाड़ अंचल नर्मदा से जुड़े होने से उत्पादन के लिए बेहतर
मध्यप्रदेश का निमाड़ अंचल नर्मदा नदी से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यहां की जलवायु ना ज्यादा शुष्क है ना ही ज्यादा गर्म। ऐसे में यह इलाका केले के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए। जिस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा ज्यादा होती है। वहां केले की फसल की क्वालिटी अच्छी होती है। मिट्टी की जांच आप कृषि विभाग से संपर्क कर करवा सकते हैं।
ऐसे करें खेत तैयार
पौधे लगाने से पहले सबसे जरूरी होता है खेत तैयार करना। जहां केले के पौधे लगा रहे हैं। वहां सबसे पहले सफाई कर लें। कम से कम एक महीने पहले खेतों की जुताई हो जानी चाहिए। तीन से चार तिरछी जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लें। आखिरी जुताई के समय गोबर की खाद डालने से फसल और अधिक निकलती है। केले की फसल लगाने के लिए फरवरी से मार्च का महीना सही माना जाता है। खेत की जुताई के बाद अब गड्ढे बना लें। इसके लिए एक ही पंक्ति में लगभग डेढ़ मीटर की दूरी पर गड्ढों का निर्माण करें। पौधे लगाने से पहले इनमें उर्वरक डाल लें। गड्ढे एक फीट गहरे और चौड़े होने चाहिए। तैयार गड्ढों में खाद डालने के बाद उनकी सिंचाई कर लें।
पौधे लगाने के बाद खाद जरूर डालें
बनाने के करीब एक महीने बाद बोवनी की जानी चाहिए। इसके लिए तैयार गड्ढों में छोटा सा गड्ढा बनाकर बिजाई करें। बीज लगाने के एक महीने बाद फसल में खाद डालना जरूरी होता है। बोवनी के तुरंत बाद पहली सिंचाई की आवश्यकता होती है। सर्दियों में एक सप्ताह के अंतराल में सिंचाई जरूरी होती है। वहीं गर्मी के मौसम में हर चौथे दिन सिंचाई की जानी चाहिए। पत्तियों के अलावा पौधों की बढ़ती ऊंचाई का ध्यान रखना भी जरूरी है। जैसे ही पौधे जमीन से एक से डेढ़ मीटर ऊंचाई हासिल कर लें, तो उन्हें बांस का सहारा देकर खड़ा कर देना चाहिए। जिससे आंधी या तेज हवा से पौधों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। खरपतवार और कीटों से फसल को नुकसान होता है। ऐसे में जब भी खरपतवार दिखे तुरंत गुढ़ाई की जानी चाहिए। इसके अलावा समय-समय पर दवाइयों का छिड़काव करना जरूरी है। फसल लगाने के 11 से 12 महीने में केले तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जरूरत के अनुसार भी तुड़ाई की जाती है। चिप्स, सब्जी के लिए कच्चे केलों की आवश्यकता होती है। कहीं थोड़े पके तो कहीं अच्छी तरह पके केलों की मांग होती है। यदि लंबी दूरी पर फसल को भेजना है तो लगभग 80 प्रतिशत पक जाने के बाद ही तुड़ाई कर लेनी चाहिए।