मप्र की राजकीय मछली महासीर (टोर टोर): संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयास
महेंद्र सिंह, डॉ. माधुरी शर्मा
डॉ. राजेश चौधरी, डॉ.उत्तम कुमार सरकार
1. मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, ना. दे. प. चि. वि. वि., जबलपुर, मध्य प्रदेश
2. डॉ. राजेश चौधरी, मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ, भोपाल
2. आई.सी.ए.आर.- राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
ईमेल: drmadhurig8@yahoo.co.in
परिचय- महासीर (टोर टोर) मध्य प्रदेश की राजकीय मछली है। “महासीर” को भारत की उत्कृष्ट खेल और खाद्य मछली के रूप में जाना जाता है, जो कि मध्यप्रदेश कीजीवनरेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी में प्रमुख रूप से पाई जाती है, महासीरमछली क्रिस्टल साफ़ मीठे पानी और उच्च ऑक्सीजन के साथ तेज़ बहने वाली चट्टानी धाराओं को पसंद करती है। महासीर की भोजनप्रकृति सर्वाहारी है और आम तौर पर मांसाहारी से सर्वाहारी में अपने भोजन की आदत को बदल देती है। लिंग अलग-अलग होते हैं। निषेचन बाहरी होता है, मादा गहरे चट्टानी तालाबों में अंडे देती है और नर झुंड में मिल्ट्स छोड़ता है। महसीर उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत की अत्यंत बेशकीमती और प्रतिष्ठित मछलियों में से एक है, यह भारत में गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, राप्ती, शारदा, रामगंगा, कोसी, सोन, रिहंद, चंबल,केन, बेतवा, महानदी, नर्मदा, ताप्ती, माही, ब्रह्मपुत्र-बराक नदी प्रणाली, सिंधु, सतलुज और व्यास नदी सहित उप-हिमालयी श्रृंखला के साथ कई प्रमुख नदियों में मिलती है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग), असम, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तरांचल राज्यों में फैली हुई है। यह प्रजाति नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन जैसे पड़ोसी देशों में भी पाई जाती है।
वितरण:दुनिया में महासीर की 47 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से भारत में 15 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। महासीर की प्रजाति टोर, टॉर महासीर (टोर टोर); गोल्डन महासीर (टी. पुटिटोरा), डेक्कन महासीर (टी. खुद्री), हंपबैक महासीर (टी. मुसुल्लाह), मोसल महासीर (टी. मोसल), टी. नेली, टी. प्रोजेनीज़, टी. रेमादेवी, टी. कुलकर्णी, चॉकलेट महासीर (नियोलिसोचेलस हेक्सागोनोलेपिस ) पाईजातीहै।
संख्या में कमी के कारण:विभिन्न मानवजनित गतिविधियों ने देश भर में महसीर की आबादी पर बुरा असर डाला है। पिछले सौ वर्षों के दौरान पश्चिमी घाटों में व्यापक वनों की कटाई इसके पतन का एक प्रमुख कारण है । मछली प्रजातियों में गिरावट के प्रमुख कारणों में जलीय प्रणालियों की पारिस्थितिक स्थितियों का ह्रास, बांधों का निर्माण, ब्रूडफ़िश और किशोर मछलियों का अंधाधुंध शिकार, नदी घाटी परियोजनाएँ, औद्योगिक और मानवजनित हस्तक्षेप, विस्फोटकों, ज़हर और बिजली के झटके का उपयोग, विदेशी मछलियोंकीप्रजातियों का प्राकृतिकवातावरणमेंआनाशामिल हैं। दो प्राकृतिक बाधाएं जैसे विलंबित (देरसे) परिपक्वता, कम प्रजनन क्षमताएवं, 24-28 डिग्री सेल्सियस पर 60-80 घंटे की लंबी हैचिंग अवधि और धीमी विकास दर और अत्यधिकशिकार (दोहन)वइस प्रजाति की संख्यामेंकमी के लिए जिम्मेदारप्रमुख कारक हैं । महाशीर में प्रजनन जून-अगस्त में माह होता है, इस अवधि के दौरान मछुआरे बड़ी मछलियों (ब्रूडर) को पकड़ने के लिए पाहू जाल (एक प्रकार का बैरिकेड) लगाते हैं, जब मछलियां प्रजनन के लिए चलती हैं तो वे जाल में फंस जाती हैं और अंडे छोड़ने और प्रजननसे पहले मर जाती हैं। यह नर्मदा नदी में महाशीर की संख्या में कमी के प्रमुख कारणों में से एक है।
संरक्षण के लिए उपाय: महाशीरका संरक्षण आवश्यक है और भारत में इसके संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। नदियों में लुप्तप्राय मछलियों के संरक्षण मुख्य चिंता के कारकों की पहचान की गई, जिस में प्रमुख बीज एवं पूरक आहार की कमी और इसकी धीमी वृद्धि के कारण महाशीर कल्चर जलीय कृषिविदों के बीच लोकप्रिय नहीं है। बड़े पैमाने पर बीज उत्पादन और उचित तकनीकों के साथ फीड निर्माण का उपयोग महाशीर की घटती जनसंख्या की समस्या से निपटने मेंसहायकहोसकताहै। इस बहुमूल्य मछली के संरक्षण और सुरक्षा के लिए राज्य सरकार और मध्य प्रदेश मत्स्य संघ द्वारा कई प्रयास किए गएहैं। होशंगाबाद के पास डोंगरवाड़ा घाट और बरगी के पास टेमर नदी (नर्मदा नदी की सहायक नदी) मध्य प्रदेश के दो ऐसे स्थान हैं जहाँ टोर टोर के बीज अच्छी मात्रा में उपलब्ध रहते है। भोपाल में कोलार बांध में मध्य प्रदेश के अन्य बांधों की तुलना में टोरटोर की अच्छी संख्या है, जो कि अधिक गहराई और बजरी के तल के कारण प्रजनन औरइनके अस्तित्व के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करता है। आनुवंशिक विविधता का संरक्षण न केवल स्थायी मत्स्य पालन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राष्ट्रीय विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न आणविक मार्करों का उपयोग करके उचित वर्गीकरण एवं पहचान लुप्तप्राय महसीर के संरक्षण की दिशा में एक आवश्यक कदम है। इन-सीटू संरक्षण और जीन बैंकिंग भी महसीर प्रजातियों के संरक्षण के लिए सबसे अच्छे माध्यम के रूप में काम कर सकते हैं। जलीय जर्मप्लाज्म संसाधनों का संरक्षण वैज्ञानिक प्रयास का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और एन.बी.एफ.जी.आर., लखनऊ मछली जर्मप्लाज्म के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। टोरटोर के जर्मप्लाज्म को ब्रूड स्टॉक सुविधा की स्थापना और बीज उत्पादन के लिए विशेष हैचरी विकसित करके बढ़ाया और संरक्षित किया जा सकता है।