मछलियों का पोषण में महत्व
> डॉ. माधुरी शर्मा
> डॉ. विमल प्रसन्ना मोहंती
> महेंद्र सिंह
1. मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, नादेपचिविवि, जबलपुर मप्र.
2 पूर्व एडीजी, अंतर्देशीय मत्स्य पालन, आईसीएआर, नई दिल्ली
दुनिया पर निरन्तर बढ़ रहे जनसंख्या दबाव से निपटने के लिए खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाना तो आवश्यक है, परन्तु इसके साथ-साथ दिन-प्रतिदिन बढ़ रही कुपोषण एवं बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी अत्यन्त आवश्यक हो गया है। इन समस्याओं को सुलझाने का एक तरीका यह है कि प्राकृतिक संसाधनों से अधिक से अधिक मछलियां पकड़ी जायें और दूसरा तरीका है कि इन मछलियों का पालन करके अधिक-से अधिक उत्पादन किया जाए।
मछली पालन को बढ़ाने के लिए भारत सरकार की कई योजनाएं हैं जिनके माध्यम से लोगों को मछली पालन के लिए जागरूक व प्रेरित किया जा रहा है। मछली पालन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों को बढ़ाने क लिए मई 2020 कें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना प्रांरभ की गई है। यह योजना अब तक की सबसे बड़ी योजना है, जिसमें 20050 करोड़ रुपये का बजट 5 वर्षों के लिए दिया गया है। मछलियों का प्रयोग मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही भोजन के रूप में किया जा रहा है। भोजन की पौटिकता के अतिरिक्त मछलियों का माँस स्वादिष्ट एवं सुपाच्य होती है। ताजी अवस्था के अतिरिक्त परिरक्षित अवस्था में भी मछलियों की खपत भोजन के रूप सुपाच्य होता है। कृषि के अन्य आयामों की तुलाना में मत्स्य उत्पादन हेतु न केवल कम ऊर्जा की खपत होती है, अपितु लागत भी अपेक्षाकृत कम आती है।
मछलियों का मांस पोषक, स्वादिष्ट एवं सुपाच्य होता है। भारतीयों के लिए तो मछलियॉ सर्वोत्तम संपूरक भोजन का कार्य करती हैं, जिनमें प्रोटिन, वसा, विटामिन ।ए क्ए म् तथा ज्ञ के अतिरिक्त कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा लौह जैसे खनिजों की उपयोगी मात्रा पायी जाती है। मछलियों के माँस में कार्बोहाइड्रेड की मात्रा बहुत कम पायी जाती है। मछलियों के माँस दस अनिवार्य अमीनो अम्ल पाये जाते हैं, जिनमें लाइसिन अमीनो अमल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। हिस्टिडीन अमीनो अम्ल की प्रचुर मा़त्रा इनके माँस इनके माँस को विशिष्ट माँसल सुंगध प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त मछलियों में पायी जाने वाली वसा में बहुअसंतृप्त अमीनो अम्लों की प्रचुर मात्रा पायी जाती है, जो इसे वनस्पाति की तुलना में अधिक उपयोगी बनाती है। भारत जल संसाधनों एवं जैव विविधता से समृध्य है। नेषनल व्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिर्सोसिस के डाटा वेस के अनुसार भारत में 2,508 देशज (इंडिजनेस) मछलियों की प्रजातियॉ पाथी जाती है जिसमें 877 स्वच्छ जलीय 113 वे्रकिश (खारे) पानी की तथा 1,518 समुदी जल की प्रजातियॉ सम्मिलित है। इसके साथ 291 विदेशी प्रजातियों की मछलियॉ भी पायी जाती है। इसके साथ 2934 क्रस्टेऊसिया वर्ग की प्रजातियॉ पायी जाती हैं जिसमें 2430 समुद्री व 504 स्वच्छ जलीय प्रजातियॉ सम्मिलित हैं इसके अतिरिक्त 5070 प्रजातियां मोलस्का संघ की पायी जाती हैं जिसमें 3,370 समुद्री व 1,700 स्वच्छ जलीय प्रजातियॉ है।
भाकृअनुप के मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थानों ने विभिन्न आवासों की खाद्य मछलियों की पोण संरचना के बारे में जानकारी का खजाना तैयार की है। इनके द्वारा 115 से अधिक प्रजातियों के लिए पोषण संबंधी जानकारी तैयार की गई है और यह जानकारी ओपन एक्सेस के तहत उपलब्ध हैं। न्यूट्रीफिष इंडिया नाम का डेटाबेस संक्षेप में इसे न्यूट्रीफिशइन भी कहते हैं। इस डेटाबेस में महत्वपूर्ण खाद्य मछलियों की समीपस्थ संरचना, अमीनो एसिड, फैटी एसिड और सूक्ष्म पोकृक / घटक तत्वों की जानकारी षामिल है। यह जानकारी उपभोक्ताओं, उत्पादकों, उद्यमियों, आहार विशेषज्ञों, चिकित्सकों और योजना बनाने वालों के लिए उपयोगी है।
न्यूट्रिस्मार्ट प्रजातियां वे प्रजातियां है, जो ओमेगा-3 पॉली अनसेचुरेटेड फैटीएसिड (पीयूएफए), खनिज और मिनरल जैसे कई पोषक तत्वों से भरपूर होती है। मछली गुणवत्ता वाली पशु प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है। मछली में प्रोटीन की मात्रा 13 से 22 प्रतिशत के बीच होती है। समुद्री मछलियाँ विषेष रूप से ओमेगा-3 पीयूएफए (ईपीए और डीएचए) से भरपूर होती है। ठंडे पानी की प्रजातियां भी पीयूएफए से भरपूर होती हैं। अध्ययन की गई सभी प्रजातियों-हिल्सा और आइल सार्डिन में तेल की उच्चतम मात्रा क्रमश: 10.2 और 8.5 प्रतिशत है। मीठे पानी की प्रजातियों में, कोई (अनाबास टेस्टुडिनियस) और पेंगवा (ओस्टियोब्रोमा बेलंगेरी) में उच्च मात्रा में तेल होता है। छोटी देशी मछलियों में सूक्ष्म पोषक तत्व अच्छी मा़त्रा में मिलते हैं, जैसे मोला और पुंटि (पुंटियस सोफोरे) वसा में घुलनशील विटामिन और कई ट्रेस तत्व भरपूर मात्रा में पाये जाते है ।