KVK टीकमगढ़ द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन

KVK  टीकमगढ़ द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन

टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ़ द्वारा 16 वां गाजरघास जागरूकता सप्ताह 16 अगस्त से 22 अगस्त 2021 तक आयोजित कर किसानों को गाजरघास के दुष्प्रभाव से अवगत कराया जायेगा । कार्यक्रम में डा. बी. एस. किरार, डा. एस. के. सिंह, डा. आर. के. प्रजापति, डा. एस.के. खरे, डाॅ. यू. एस. धाकड़, हंसनाथ  खान, जयपाल छिगारहा, मनोहर चढ़ार एवं अन्य किसान उपस्थित रहे।

गाजरघास यानी पार्थेनियम को देष के विभिन्न भागो में अलग-अलग नामो जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है । हमारे देष में 1955 में दुष्टिगोचर होने के बाद यह विदेषी खरपतवार लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है यह मुख्यतः खाली स्थानो, अनुपयोगी भूमियों औधौगिक क्षेत्रो, बगीचो, पार्को, स्कूलो, रहवासी क्षेत्रो, सड़को तथा रेल्वे लाइन के किनारो आदि पर बहुतायत में पायी जाती है । गाजरघास का प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यान फसलो, सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है वैसे तो गाजरघास पानी मिलने पर वर्ष भर फल-फूल सकती है, गाजरघास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है इस प्रकार एक वर्ष में इस घास की 3-4 पीढ़िया पूरी हो जाती है, गाजरघास से मनुष्यों में त्वचा संम्बधी रोग, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बिमारियांॅ हो जाती है। यह पशुओ के लिये भी अत्याधिक विषाक्त होता है जैव विविधता के लिये गाजरघास एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट बनाया जा सकता है । इसे रोकने के लिये वर्षा आधारित क्षेत्रो में शीघ्र बढ़ने वाली फसले ढैंचा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि फसले लेना चाहिये।