विश्व मधुमक्खी दिवस पर मधुमक्खियों के महत्व पर हुई चर्चा
डॉ शशिकान्त सिंह
आजमगढ़। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र कोटवा पर विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर मधुमक्खी पालकों, किसानों एवं कृषि छात्रों से चर्चा की गई। मीठी क्रांति के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यक जानकारी व मधुमक्खियों के पर्यावरण संरक्षण और खाद्य सुरक्षा में योगदान के बारे में विस्तार से बताया गया।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में मधुमक्खी पालन के लिए माह मई से लेकर सितम्बर तक का समय मुश्किलों से भरा होता है। धान - गेंहूँ फसल प्रणाली बहुतायत में लिए जाने के कारण मई से सितम्बर तक मधुमक्खियों के लिए पुष्पीय पौधों की उपलब्धता सीमित रहती है। पुष्प रस व पराग पर्याप्त मात्रा में न मिल पाने के कारण मौन वंश बुरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं। रानी मक्खी अण्डे देना कम कर देती है तथा कभी कभी छत्ते को छोड़कर भी भाग जाती है। श्रमिक मक्खियों की संख्या अत्यंत कम हो जाती है। इस दौरान मधुमक्खी पालन व्यवसाय पर अत्यंत दुष्प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियों का हमारे जीवन में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कितना महत्व है यह हम सभी जानते हैं।
मधुमक्खी पालन से हमें मधु, मोम, बी वेनम, बी प्रोपोलिस, रायल जेली, पोलन आदि की प्राप्ति के अलावा फसलों के पर - परागण और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में भी इसका अत्यधिक महत्व है। इसके महत्व को देखते हुए केन्द्र सरकार ने अपने बजट में मधुमक्खी पालन के विकास पर 500 करोड़ का बजट स्वीकृत किया है।
राष्ट्रीय बी बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग आयोग, राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण संस्थान, पूना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केन्द्र, राज्य स्तर पर उद्यान विभाग आदि मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण, प्रदर्शन, उत्पादों के उत्पादन, विपणन आदि कार्यों में लगे हुए हैं। मौन वंशों का विभिन्न ऋतुओं के अनुसार प्रबंधन भी अत्यंत आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु प्रबंधन में मौन वंशों का निरीक्षण, कृत्रिम भोजन, स्वच्छ पानी की व्यवस्था, छायादार स्थान व मौन गृहों पर सुबह शाम जूट की बोरी पानी में भिगो कर ऊपर से रखना चाहिए। वैसे सफल मधुमक्खी पालन उद्योग के लिए मौन वंशों को वर्ष भर पुष्पीय पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु पुष्पीय पौधों वाले क्षेत्रों की पहचान और उन स्थानों पर मौन वंशों का स्थानांतरण आवश्यक है। परन्तु छोटे मधुमक्खी पालक यह काम नहीं कर पाते जिससे उनके मौन वंशों का नुकसान हो जाता है। यदि स्वयं सहायता समूह के सदस्य, स्वयं सेवी संस्थाएं अथवा किसान उत्पादक कम्पनी इस कार्य को उद्यम के रूप में ले, तो परिणाम सकारात्मक आने की उम्मीद है।
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के अधीन संचालित केवीके आजमगढ़ के प्रभारी अधिकारी डॉ डी के सिंह ने बताया कि केन्द्र द्वारा किसानों की आय बढाने के लिए मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण व प्रदर्शन आदि कार्य कराए जा रहे हैं। मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुद्र प्रताप सिंह ने केन्द्र पर स्थापित मधुमक्खी पालन इकाई पर मौन वंशों के ग्रीष्म ऋतु प्रबंधन के अन्तर्गत वंशों का निरीक्षण कर कृत्रिम भोजन देने हेतु प्रयोगात्मक कौशल दिया।