इस मौसम में करें औषधीय फसल कलिहारी की खेती, हो सकता है अच्छा मुनाफा

इस मौसम में करें औषधीय फसल कलिहारी की खेती, हो सकता है अच्छा मुनाफा

भोपाल, किसानों का रूझान पारंपरिक खेती से हटकर औषधीय खेती की तरफ हो रहा है, जिसमें अच्छा मुनाफा भी देखने को मिल रहा है। सही समय और पूरी जानकारी के अनुसार यदि औषधीय फसलों की खेती की जाए तो अच्छा मुनाफा हो सकता है। कुछ औषधीय फसलें हैं, जिनकी बुवाई अगस्त में आसानी से की जा सकती है। इससे उत्पादक सही समय पर गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त कर सकते हैं। जैसे....

कलिहारी की खेती

भारत में कलिहारी की खेती के लिए लाल दोमट और रेतीली मिट्टी उत्तम मानी जाती है। वहीं इसकी खेती सख्त मिट्टी में नहीं करना चाहिए। जबकि मिट्टी का क्षारीय और अम्लीय पीएचमान 5.5 से 7 तक होना चाहिए।
रोपाई से पहले खेत की तैयारी
सबसे पहले खेत की दो तीन अच्छी जुताई कर लें। इसके बाद मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए रोटावेटर से जुताई करें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। इसके बाद ही कलिहारी की गांठों की रोपाई करें। ध्यान रहे खेत में जल निकासी के उचित प्रबंध कर लेना चाहिए।

प्रमुख किस्में

Gloriosa Superba- इस किस्म की खेती अफ्रीका और भारत उष्णीय क्षेत्रों में प्रमुखता से की जाती है। इसके पौधे की ऊंचाई डेढ़ मीटर तक होती है। इसके पत्ते अंडाकार और फूल सीधे, लंबे और लाल पीले रंग के होते हैं।

Gloriosa Rathschildiana- इस किस्म की बेल काफी लंबी होती है। यह अफ्रीका के उष्णीय क्षेत्रों में पाई जाती है। इसकी पत्तियां चौड़ी और तीखी होती है। वहीं इसके फूल लंबे और पीले सफेद रंग के होते हैं।

कैसे करें

इसकी खेती जुलाई और अगस्त महीने में उत्तम होती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखना चाहिए। पौधे को 6 से 8 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाए। बता दें कि कलिहारी खेती के लिए पिछली फसल की गांठों को या फिर तैयार बीजों से पनीरी तैयार करके रोपाई की जाती है।

कलिहारी की खेती के लिए बीज मात्रा

यदि आप एक एकड़ में कलिहारी की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए 10 से 12 क्विंटल गांठों की जरूरत पड़ती है। रोपाई से पहले गांठों को अच्छी तरह से उपचारित कर लेना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

अच्छी पैदावार के लिए प्रति एकड़ नाइट्रोजन 48 किलो ग्राम, फास्फोरस 20 किलो ग्राम और पोटाश 28 किलो डालना चाहिए। शुरूआत में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा डालना चाहिए। इसके बाद यूरिया की दो खुराक 30 और 60 दिन के अंतराल पर डालें।

सिंचाई प्रबंधन

इसकी खेती में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन फल पकने के समय दो बार सिंचाई जरूर करना चाहिए। वहीं कटाई से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

कटाई

इसकी खेती 170 से 180 दिनों की होती है। जब इसके फल हल्के हरे और गहरे रंग के हो जाए तब तुड़ाई करना चाहिए। यदि आप बीज प्राप्त करना चाहते हैं तो फल को अच्छी तरह से पकने के बाद तोड़ना चाहिए।