नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का 20 सालों के लिए इफको को मिला पेटेंट
नई दिल्ली। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने अपने नैनो टैक्नोलॉजी आधारित उर्वरक नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के लिए 20 साल के लिए पेटेंट हासिल किया। इफको के एमडी यूएस अवस्थी ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी।
यूरिया और डी-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) देश में बड़े पैमाने पर खपत वाले उर्वरक हैं। इफको ने अपने नैनो उत्पादों के लिए भारत सरकार से 20 साल की अवधि के लिए पेटेंट प्राप्त किया है।
किसानों और पर्यावरण को लाभ पहुंचा रहे अगली पीढ़ी के उर्वरक
इफको के प्रबंध निदेशक यूएस अवस्थी ने कहा, इफको के नैनो यूरिया और नैनो डीएपी अगली पीढ़ी के उर्वरक किसानों और पर्यावरण को लाभ पहुंचा रहे हैं। बयान के अनुसार, ये उत्पाद मिट्टी, वायु और जल प्रदूषण को कम करने में सहायक होंगे।
ये मिट्टी को स्वस्थ भी रखते हैं
अवस्थी ने कहा कि गुणवत्ता वाली फसलों की मात्रा का उत्पादन करने के लिए, इन नए उत्पादों की कम मात्रा की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ ये मिट्टी को स्वस्थ भी रखते हैं। उन्होंने कहा कि यह मिट्टी को रसायनों के अत्यधिक उपयोग से बचाने का एक प्रयास है, जो इफको की दीर्घकालिक सोच और उसकी प्रतिबद्धता है।
कृषि लागत में कमी लाकर मजबूत करेगा पेटेंट
उन्होंने कहा, इफको नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का पेटेंट भारतीय अर्थव्यवस्था को कृषि लागत में कमी लाकर मजबूत करेगा। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने और उनकी प्रेरणा के मुताबिक किसानों की आय को दोगुनी करेगा। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में पूर्णतया स्वदेशी नैनो खाद पर्यावरण मित्र और फसलों के अनुपात में इस्तेमाल का गुण होने के कारण स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अनुकूल होगी।
जल्द ही बाजार में उपलब्ध हो इसके लिए युद्धस्तर पर काम
इफको को यह सफलता उसके गुजरात के कलोल स्थित नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर- एनबीआरसी के वैज्ञानिकों ने दिलाई है। यह नैनो खाद जल्द ही बाजार में उपलब्ध हो इसके लिए युद्धस्तर पर काम शुरू हो गया है। इससे पहले, पिछले साल जुलाई से ही इफ्को नैनो यूरिया विकसित कर किसानों को दे रहा है।
नैनो जिंक और नैनो कॉपर भी विकसित करने की दिशा में जुटा
दुनिया में भारत की यह शुरुआत अपनी तरह की पहली है। इफ्को यहीं नही रुका है, वह वर्तमान में नैनो जिंक और नैनो कॉपर भी विकसित करने की दिशा में जुटा है। नैनो डीएपी भी नैनो यूरिया की तरह से 500 एमएल की बोतल में होगी। यानी किसानों को 18 सौ रुपये की 50 किलो की बोरी की जगह, बहुत कम डीएपी में काम हो जाएगा। इसकी कीमतों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, लेकिन आकलन के मुताबिक यह छह सौ रुपये प्रति बोतल हो सकती है।