तापमान की चुनौती से जूझती गेहूं की फसल
डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह
प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख
कृषि विज्ञान केंद्र, लहार (भिंड) म. प्र.
पिछले कुछ सालों से हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर रहने वाली भारतीय कृषि अधिक से अधिक उत्पादन लेने की चुनौती के साथ ही जलवायु परिवर्तन की चुनौती से भी जूझ रही है। इसका ताजातरीन उदाहरण गत वर्ष मार्च माह में बड़े तापमान को देखकर लगाया जा सकता है। पिछले वर्ष अचानक मार्च माह में तापमान में वृद्धि होने के कारण गेहूं उत्पादन पर बहुत ही प्रतिकूल असर देखने को मिला था। इसके चलते गेहूं का उत्पादन अनुमान के अनुकूल नहीं मिल पाया था।
जलवायु परिवर्तन की चुनौती से आज पूरी दुनियां मैं कृषि पर प्रभाव देखा जा रहा है। भारत मैं भी खेती के ऊपर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिखाई दे रहा है। संपूर्ण उत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते हुए तापमान का प्रभाव देश की प्रमुख खाद्यान्न फसल गेहूं के ऊपर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। जिसका ताजातरीन उदाहरण पिछले वर्ष मार्च माह में बढ़े हुए तापमान के फलस्वरूप देखा गया था। इस वर्ष भी फरवरी माह से तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव को देखते हुए एक बार पुनः किसानों से लेकर कृषि वैज्ञानिकों और सरकारों की चिंता बढ़ा दी है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा तापमान में हो रही वृद्धि से गेहूं की फसल पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की निगरानी के लिए एक समिति का भी गठन किया जा चुका है। इतना ही नहीं स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक उच्च स्तरीय बैठक में तापमान में हो रही बढ़ोतरी की समीक्षा की गई है।
गेहूं की फसल एक समशीतोष्ण जलवायु की फसल है, जो पककर पूरी तरह से तैयार होने में 140 से 145 दिन तक का समय लेती है। वैज्ञानिक ऐसी किस्में विकसित करने के प्रयास में लगे हैं जो कम समय में पककर तैयार होने के साथ ही अधिक तापमान सहने की क्षमता रखती हों। यदि आने वाले समय में वैज्ञानिक 120 से 125 दिन में पक कर तैयार होने वाली गेहूं की प्रजातियां विकसित कर पाए तो निश्चित रूप से मार्च में बढ़ने वाले तापमान की चुनौती से बचा जा सकेगा। गेहूं के लिए बुवाई के समय 19 से लेकर 23 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार से मार्च माह में गेहूं की फसल की वृद्धि और विकास के लिए 21 से लेकर 26 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। यदि मार्च माह में तापमान में बढ़ोतरी होती है और यह 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंचता है तो गेहूं की फसल के लिए नुकसान का कारण बन सकता है। इससे अधिक तापमान होने पर गेहूं के उत्पादन पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। अधिक तापमान होने की दशा में गेहूं के दाने पूरी तरह से भर नहीं पाते हैं तथा वह हल्के रह जाते हैं। इससे गेहूं का उत्पादन प्रभावित होता है। गेहूं की फसल में दाने मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर तीसरे और चौथे सप्ताह में पकना शुरू हो जाते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश की जाती है कि मार्च माह में तापमान 30 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंचता है तो गेहूं की फसल में एक सिंचाई का सहारा लेकर उत्पादन में गिरावट को रोका जा सकता है।
इस वर्ष मार्च माह के पहले ही सप्ताह से मौसम में आई गिरावट को देखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले दो-तीन सप्ताह तक यदि ऐसा ही मौसम बना रहा तो कोई कारण नहीं है कि गेहूं की फसल का उत्पादन प्रभावित हो और जैसा कि मौसम वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि अगले दो सप्ताह तक तापमान में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी। इसके चलते अगेती दशा में बोई गई गेहूं की फसलों से उत्पादन अच्छा मिलने की पूरी संभावना है। देर से बोई गई गेहूं की प्रजातियों की बात करें तो वह भी 15 अप्रैल तक कटने के लिए पककर तैयार हो जाती हैं। इस कारण यदि यह मौसम अनुकूल रहा तो उनसे भी अच्छा उत्पादन मिलने की संभावना है। होली के दिन मौसम के मिजाज में हुए अचानक बदलाव से तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है।
वैश्विक स्तर पर बढ़ती गेहूं की मांग को देखते हुए भारत सरकार गेहूं उत्पादन में कमी का जोखिम नहीं ले सकती है। इसके लिए बढ़ते तापमान से होने वाले प्रभाव की निगरानी पीएमओ से लेकर कृषि मंत्रालय तक कर रहा है। गत वर्ष के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो गेहूं उत्पादन में तापमान का प्रभाव देखने को मिला था। वर्ष 2021-22 में मार्च माह में तापमान में बढ़ोतरी के कारण पूरे देश में 107 मिलियन टन के लगभग ही गेहूं का उत्पादन हुआ था। जो कि सरकार के अनुमान के अनुसार कम था। जबकि वर्ष 2020-21 में पूरे देश में 109 मिलियन टन से अधिक गेहूं रिकार्ड उत्पादन हुआ था। इस वर्ष 2022-23 के कृषि मंत्रालय के अनुमानित आकड़ो के अनुसार पूरे देश में 112 मिलियन टन से अधिक रिकॉर्ड गेहूं का उत्पादन होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। यदि यह उत्पादन हुआ तो गत वर्ष की तुलना में पूरे देश में 4.5 मिलियन टन से ज्यादा गेहूं का उत्पादन हो सकेगा। वैश्विक स्तर पर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूरे विश्व में गेहूं की मांग काफी बढ़ी है।भारत में गेहूं का अच्छा उत्पादन होता है तो इसका निर्यात होने से देश के किसानों को इसके बढ़ी हुई कीमतों का लाभ मिल सकेगा।
बदलते जलवायु परिवर्तन में बढ़ते हुए तापमान को देखते हुए इस प्रकार की समस्याएं आने वाले वर्षों में भी देखने को मिल सकती हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझने के लिए एक व्यापक और स्थाई रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार तथा कृषि वैज्ञानिक कार्य भी कर रहे हैं। इस प्रकार की समस्याओं से निपटने के लिए किसानों को भी आगे आना होगा। किसानों को चाहिए कि वह गेहूं की तापमान सहनशील प्रजातियों का चयन कर समय से बुवाई करें। मार्च माह में आवश्यकतानुसार तापमान की बढ़ोतरी की दशा में खेत मैं पर्याप्त नमी बनाए रखें, तो कहा जा सकता है के बढ़ते तापमान की चुनौतियों का काफी हद तक सामना किया जा सकता है। साल दर साल पैदा हो रही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की जरूरत है। चुनौती इस बात की भी है कि किसानों को ऐसी प्रजातियां विकसित करके दी जाए जो कि कम समय मैं पककर तैयार होने के साथ ही तापमान की बढ़ोतरी को भी सहने की क्षमता रखती हों।
इस साल भी किसान, वैज्ञानिक एवं सरकार बढ़ते तापमान की इस चुनौती को लेकर अच्छे खासे चिंतित दिखाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं इस चिंता से निपटने के लिए सरकार द्वारा प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं। लेकिन प्रकृति का मिजाज किस करवट बैठेगा यह अभी स्पष्ट रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। वैश्विक स्तर पर गेहूं की बढ़ती मांग को देखते हुए यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इस साल भी किसानों को गेहूं की अच्छी कीमत मिलने वाली है। खुले बाजार तथा मंडियों में भी गेहूं का भाव एमएसपी से ज्यादा ही रहेगा। ऐसा अनुमान बाजार के जानकार तथा विशेषज्ञ भी लगा रहे हैं। भारत सरकार भी एमएसपी के तहत इस वर्ष 3.5 करोड़ टन गेहूं की खरीद करेगी। इसके अलावा घरेलू तथा निर्यात मांग के बढ़ने के चलते गेहूं की मांग अच्छी रहने वाली है। जिसका लाभ किसानों को अच्छी पैदावार होने के बाद ही मिल पाएगा। ईश्वर ने चाहा और प्रकृति ने साथ दिया तो किसान इस लक्ष्य को पाने में सफल हो सकेंगे।