कम खर्च में ज्यादा मुनाफा पाने के लिए करें ये खेती
भोपाल, तुलसी एक औषधीय पौधा है। इसकी ऊँचाई चार फीट तक होती है। तुलसी के सभी भागों जैसे जड़, पत्ती, तना, फूल और बीज का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में किया जाता है। तुलसी का इस्तेमाल बुखार, सर्दी-खाँसी, दाँतों और साँस सम्बन्धी रोगों में भी लाभदायक होता है। तुलसी में विषाणुओं और जीवाणुओं से लड़ने की क्षमता होती है इसीलिए इसे हर घर में रखते हैं ताकि आसपास का वातावरण साफ़ रहे। तुलसी की खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती है। आइये जानते हैं कैसे करें खेती और कैसे कमाएं मुनाफा...
तुलसी के प्रकार
भारत में तुलसी मुख्य रूप से दो तरह की होती है। एक गहरे रंग की जिसे कृष्ण तुलसी कहते हैं। इसे श्यामा तुलसी भी कहा जाता है और एक तुलसी जिसके पत्ते हरे रंग के होते हैं और मंजरी काली होती है उसे श्री तुलसी या रामा तुलसी भी कहते हैं।
तुलसी की खेती के लिए आवश्यक जलवायु
तुलसी का पौधा सामान्य मिट्टी में भी अच्छी तरह बढ़ जाता है। वैसे भुरभुरी या दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी तरह से हो, इसके लिए बहुत उपयोगी रहती है। तुलसी क्षारीय और कम नमक वाली मिट्टी में भी बहुत अच्छी बढ़त पाती है।
कैसे करें तुलसी के पौधे की खेती की तैयारी
सिंचाई और जल निकासी की उचित व्यवस्था करके क्यारियां तैयार की जा सकती हैं। यह मुख्यतः बरसात की फसल है और गेहूं की कटाई के बाद इसकी रोपाई कर दें तो बेहतर रहता है।
कितने समय में होगी तैयार
यदि आप 1 एकड़ जमीन पर तुलसी की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए 600 ग्राम बीजों की जरूरत होगी। तुलसी का पौधा तैयार होने में कम से कम 15 दिन का समय लगेगा। कुल 60 से 90 दिनों में तुलसी की फसल पूरी तरह तैयार हो जाएगी। इसके बाद इसे बाजार तक पहुंचाया जा सकता है।
तीन साल तक पैदावार दे सकता है तुलसी का पौधा
एक बार लगाने के बाद तुलसी का पौधा करीब तीन साल तक पैदावार दे सकता है। तुलसी के बीजों को खेतों में सीधे नहीं उगाया जाता। नर्सरी में कोकोपिट ट्रे या छोटी क्यारियों में इसके बीजों को दो-तीन सेंटीमीटर की दूरी पर लगाकर पौधे तैयार करते हैं। बीज लगाने के बाद हल्की सिंचाई करके इन्हें अंकुरित होने तक पुआल या सूखी घास से ढक देते हैं। महीने भर बाद तैयार हुए पौधों को उखाड़कर खेतों में दोबारा रोपाई की जाती है। एक एकड़ के लिए 120 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी में तुलसी के बीजों को डालने से पहले मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर उसे तैयार करना चाहिए। फिर बीज को ‘मैनकोजेब’ या गोमूत्र से उपचारित करके उसे क्यारियों में डालना चाहिए।
तुलसी के लिए जलवायु
तुलसी के पौधों को किसी ख़ास तापमान की ज़रूरत नहीं होती। बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश में तुलसी की खेती ज़्यादा होती है, क्योंकि वहाँ की मिट्टी और जलवायु सबसे उपयुक्त है। सर्दियों में तुलसी के फूल अधिक मिलते हैं और अच्छे से खिलते हैं।
तुलसी की किस्में
अमृता तुलसी – ये किस्म पूरे भारत में मिलती है। इसके पत्तों का रंग गहरा जामुनी होता है। इसके पौधे अधिक शाखाओं वाले होते हैं। तुलसी की इस किस्म का इस्तेमाल कैंसर, डायबिटीज, पागलपन, दिल की बीमारी और गठिया सम्बन्धी रोगों में अधिक होता है।
रामा तुलसी – गर्म मौसम वाली इस किस्म को दक्षिण भारतीय राज्यों में ज़्यादा उगाते हैं। इसके पौधे दो से तीन फ़ीट ऊँचे होते हैं। पत्तियों का रंग हल्का हरा और फूलों का रंग सफ़ेद होता है। इसमें ख़ुशबू कम होती है। ये औषधियों में ज़्यादा काम आती है।
काली तुलसी – इसकी पत्तियों और तने का रंग हल्का जामुनी होता है और फूलों का रंग हलका बैंगनी। ऊँचाई तीन फ़ीट तक होती है। इसे सर्दी-ख़ाँसी के बेहतर माना जाता है।
बाबई तुलसी – ये सब्जियों को ख़ुशबूदार बनाने वाली किस्म है। इसकी पत्तियाँ लम्बी और नुकीली होती हैं। पौधों की ऊँचाई करीब 2 फ़ीट होती है। इसे ज़्यादातर बंगाल और बिहार में उगाते हैं।
कर्पूर तुलसी – ये अमेरिकी किस्म है। इसे चाय को ख़ुशबूदार बनाने और कपूर उत्पादन में इस्तेमाल करते हैं। इसका पौधा करीब 3 फ़ीट ऊँचा होता और पत्तियाँ हरी और बैंगनी-भूरे रंग के फूल होते हैं।
तुलसी के रोग
झुलसा रोग – गर्मियों में तुलसी पर झुलसा रोग का असर पड़ सकता है। इससे पत्तियाँ विकृत होने लगती हैं। पत्तियों पर जलने वाले धब्बे उभर आते हैं। फाइटो सैनिटरी विधि से इसकी रोकथाम करना चाहिए।
जड़ गलन – जल भराव से तुलसी की जड़े गलने लगती हैं और वो मुरझाने लगते हैं। पत्तियाँ पीली होकर झड़ने लगती हैं। ऐसा होने पर तुसली की जड़ों में बाविस्टिन के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
कीट रोग – तुलसी के कीट पत्तियों का रस चूसकर उन्हें उनका विकास रोक देते हैं। कीट के पेशाब से पत्तियाँ पीली पड़कर मुरझाने लगती हैं। इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर एजाडिरेक्टिन का छिड़काव कर सकते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से शुरुआत कर सकते हैं
आप कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए भी इस खेती की शुरुआत कर सकते हैं। आपको तुलसी की खेती के लिए महज 15,000 रुपये खर्च करने की जरूरत है। बुआई के 3 महीने बाद ही तुलसी की फसल औसतन 3 लाख रुपये में बिक जाती है। दवा मार्केट में मौजूद कई आयुर्वेदिक कंपनियां जैसे डाबर, वैद्यनाथ, पतंजलि आदि तुलसी की कॉन्ट्रैक्ट पर भी खेती करा रही हैं।
65-70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है
तुलसी की फसल पौध रोपने के बाद 65-70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके बाद तुलसी के पौधे को काटकर सुखा लिया जाता है। जब तुलसी की पत्तियां सूख जाती हैं तो इन्हें इकठ्ठा कर लिया जाता है। उपज के रूप में एक एकड़ खेत में पांच-छह क्विंटल सूखी पत्ती प्राप्त होती है। डाबर, पतंजलि, वैद्यनाथ व हमदर्द जैसी औषधि कंपनियां तुलसी की पत्तियां 7000 रुपये क्विंटल के हिसाब से खरीद लेती हैं। एक एकड़ तुलसी की फसल पैदा करने में 5000 रुपये का खर्च आता है। एक एकड़ तुलसी की फसल से 36,000 रुपये की बचत एक फसल में हो जाती है। जबकि साल में तुलसी की तीन फसल पैदा की जा सकती है।