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एक एकड़ में 100 टन गन्ना पैदा कर रहा किसान, जानिए कैसे

नागपुर, महाराष्ट्र के सांगली जिले की तहसील वालवा के कारंदवाडी गांव एक किसान अपने अनुभव और प्रयोग से पारंपरिक खेती को बदल रहा है, 2005-06 से 2017 तक लगातार 1000 क्विंटल गन्ना प्रति एकड़ का उत्पादन कर रहा है और प्रति वर्ष 1 करोड़ तक की उपज दे रहा है।

मुंबई से 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले के वालवा के करंदवाड़ी निवासी किसान सुरेश कबाडे ने 19 फीट गन्ने का उत्पादन कर सबको चौंका दिया। इनसे विधि सीखने के लिए किसान महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश के लोग संपर्क कर रहे हैं।

पाकिस्तानी किसान भी कर रहे तकनीक का इस्तेमाल

कई पाकिस्तानी किसान भी इसकी आविष्कृत तकनीकों के इस्तेमाल में शामिल हैं। अन्य किसानों की तुलना में सुरेश की गन्ने की फसल की खास बात यह है कि उन्होंने जो गन्ना उगाया है वह अन्य किसानों की तुलना में 19 फीट लंबा है और इसका वजन 4 किलो तक हो सकता है।

नौवीं पास हैं प्रगतिशील किसान सुरेश

नौवीं पास सुरेश वैज्ञानिक की तरह खेती करता है। वे कहते हैं, “पहले मेरे खेत में प्रति एकड़ 300-400 क्विंटल उत्पादन होता था, लेकिन जब मुझे कमी महसूस हुई, तो मैंने इसे पूरा करने के लिए अपनी खेती का तरीका बदल दिया। मैं बहुत सारे जैविक और हरे उर्वरकों का उपयोग करता हूं, और इकोबैक्टर और पीएसबी और पोटाश (पूरक बैक्टीरिया) का उपयोग करता हूं। मैं गन्ना बोने से पहले उस खेत में एक चना लगाता हूं। उसमें भी मुझे समय और मौसम याद है।

टिशू कल्चर से गन्ना उगाना शुरू किया

उन्होंने कहा, ‘अब मैंने टिशू कल्चर से गन्ना उगाना शुरू किया है। मेरे क्षेत्र में एक केला टिश्यू कल्चर फर्म है। मैं चाहता हूं कि वह मेरे खेत के सबसे अच्छे गन्ने से ऊतक बनाए, जिससे मैं तीन साल तक फसल काटता हूं। टिश्यू कल्चर का अर्थ है कि किसी एक पौधे के ऊतकों या कोशिकाओं को विशेष परिस्थितियों में प्रयोगशाला में रखा जाता है, जो अपने आप रोग मुक्त होने और अपने जैसे अन्य पौधों का उत्पादन करने की क्षमता रखते हैं।

सुरेश अपने पूरे खेत से 100 अच्छी (मोटी, लंबी और रोगमुक्त) बेंत चुनता है, जिनमें से 10 को वह एक स्थानीय प्रयोगशाला में ले जाता है, जहाँ वैज्ञानिक साल में एक बेंत का चयन करते हैं और उससे ऊतक बनाते हैं। सुरेश कहते हैं, ”मैं इसके लिए लैब को करीब 8,000 रुपये चुकाता हूं। इसलिए F-3 मिलने के बाद मुझे वह गन्ने का बीज मिलता है, जिससे बहुत अच्छी पैदावार होती है।

जमीन और अच्छे बीज का होना बहुत जरूरी

उनका कहना है कि किसी भी फसल के लिए जमीन और अच्छे बीज का होना बहुत जरूरी है। “मैं उन दोनों को बहुत महत्व देता हूं। मैं खुद बीज बनाता हूं, खेतों को अच्छी तरह जोतता हूं, खाद और पानी की व्यवस्था करता हूं। इससे सुरेश 9-11 महीने तक फसल को बीज के लिए खेत में रखता है, और गन्ने को 16 महीने तक खेत में रखता है।

गन्ने के पत्तों को जलाना पूरी तरह से बंद कर दिया

उनका कहना है कि किसान गन्ने की बुवाई न करें। महाराष्ट्र के कई किसान उनकी तकनीक पर भरोसा कर रहे हैं। पिछले दस वर्षों से उन्होंने गन्ने के पत्तों को जलाना पूरी तरह से बंद कर दिया है। इससे उनके क्षेत्र में कई सुधार हुए हैं। और उनकी मिट्टी में केंचुओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।कृषि के क्षेत्र में सुरेश कबड़े के इस प्रयोग और परिणामों को किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी सराहा।

सनई और ढैंचा से बने खाद का प्रयोग
सुरेश ने बताया कि गन्ने की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव और उसका सही स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। ऐसे में खाद की बड़ी भूमिका रहती है। सुरेश खाद के लिए अपने खेत की मिट्टी में सनई और ढैंचा से बने खाद का प्रयोग करते हैं, इसके अलावा रायजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर और पूरक जीवाणु खाद का इस्तेमाल करते हैं। और सबसे अहम बात, वे गन्ना पहले ट्रे में उगाते हैं, उसके बाद उसे खेत में लगाते हैं। इससे गन्ने की फसल कम समय में तैयार हो जाती है।

लाइन विधि से बुवाई
अहम और जरूरी बात कि सुरेश गन्ने की बुवाई लाइन से लाइन विधि से करते हैं। वे गन्ने की क्यारी की दूरी 5 से 6 फीट दूर रखते हैं। लाइन से लाइन विधि से लगाने का फायदा यह होता है कि खेत की जुताई ट्रैक्टर से बड़ी आसानी से हो जाती है और उर्वरकों के छिड़काव में दिक्कत नहीं आती। पौधे दूर रहते हैं इस कारण जड़ों को धूप भी आसानी से मिलती है। इसी कारण सुरेश के गन्ने की जड़ें बहुत मोटी होती हैं।

बीज का चयन
सुरेश कहते हैं कि गन्ने की खेती में ज्यादा उत्पादन के लिए बीज की चयन बहुत जरूरी है। ऐसे में वे टिशू कल्चर से खुद की किस्म तैयार करते हैं। वे हर साल 100 बेहतरीन पौधों में से एक का चुनाव करते हैं जिससे लैब में टिशू कल्चर से बीज तैयार कराते हैं। इसमें शुगर की मात्रा कम होती है जिस कारण फसल में रोग नहीं लगते और उत्पादन भी खूब होता है। वे इन बीजों को किसानों को बांटते हैं।

30वें दिन जड़ों में जरूरी पोषक आहार
सुरेश कहते हैं कि गन्ने की अच्छी पैदावार के लिए समय का ध्यान दिया जाना भी बहुत जरूरी है। पौधा लगाने के 30वें दिन जब अंकुर दिखने लगे तब पौधे के पास गड्ढा खोदकर जड़ों में जरूरी पोषक आहार डालने चाहिए फिर उसे ढंक देना चाहिए। इस प्रक्रिया को 65वें, 85वें, 105वें, 135वें। 165वें और 225वें दिन भी दुहराना चाहिए। जरूरत पड़ने पर पौधों से खराब हो चुकीं पत्तियों को अलग करते रहना चाहिए। सुरेश इन पत्तियों को फेंकते नहीं, बल्की गड्ढा खोदकर जमीन में गाड़ देते हैं जो आगे चलकर खाद में तब्दील हो जाता है, इस तरह वै जैविक खाद भी बना लेते हैं।

गन्ने को सीधा करने के लिए बिल्कुल न बांधेंबांध
सुरेश किसान भाइयों को राय देते हुए कहते हैं कि कई राज्यों में किसान गन्ने को सीधा करने के लिए उसे बांध देते हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। गन्ने का भोजन उसकी पत्तियों में होता है और जब हरी पत्तियों से गन्ने को बांध दिया जाता है तो पत्तियों में जमा भोजन गन्ने को नहीं मिल पाता। पत्तियां सूख कर वहीं नीचे गिरती हैं, जिनके पोषक तत्व गन्ने में आ चुके होते हैं।

एक एकड़ में 100 टन गन्ना पैदा कर रहा किसान, जानिए कैसे

नागपुर, महाराष्ट्र के सांगली जिले की तहसील वालवा के कारंदवाडी गांव एक किसान अपने अनुभव और प्रयोग से पारंपरिक खेती को बदल रहा है, 2005-06 से 2017 तक लगातार 1000 क्विंटल गन्ना प्रति एकड़ का उत्पादन कर रहा है और प्रति वर्ष 1 करोड़ तक की उपज दे रहा है।

मुंबई से 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले के वालवा के करंदवाड़ी निवासी किसान सुरेश कबाडे ने 19 फीट गन्ने का उत्पादन कर सबको चौंका दिया। इनसे विधि सीखने के लिए किसान महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश के लोग संपर्क कर रहे हैं।

पाकिस्तानी किसान भी कर रहे तकनीक का इस्तेमाल

कई पाकिस्तानी किसान भी इसकी आविष्कृत तकनीकों के इस्तेमाल में शामिल हैं। अन्य किसानों की तुलना में सुरेश की गन्ने की फसल की खास बात यह है कि उन्होंने जो गन्ना उगाया है वह अन्य किसानों की तुलना में 19 फीट लंबा है और इसका वजन 4 किलो तक हो सकता है।

नौवीं पास हैं प्रगतिशील किसान सुरेश

नौवीं पास सुरेश वैज्ञानिक की तरह खेती करता है। वे कहते हैं, “पहले मेरे खेत में प्रति एकड़ 300-400 क्विंटल उत्पादन होता था, लेकिन जब मुझे कमी महसूस हुई, तो मैंने इसे पूरा करने के लिए अपनी खेती का तरीका बदल दिया। मैं बहुत सारे जैविक और हरे उर्वरकों का उपयोग करता हूं, और इकोबैक्टर और पीएसबी और पोटाश (पूरक बैक्टीरिया) का उपयोग करता हूं। मैं गन्ना बोने से पहले उस खेत में एक चना लगाता हूं। उसमें भी मुझे समय और मौसम याद है।

टिशू कल्चर से गन्ना उगाना शुरू किया

उन्होंने कहा, ‘अब मैंने टिशू कल्चर से गन्ना उगाना शुरू किया है। मेरे क्षेत्र में एक केला टिश्यू कल्चर फर्म है। मैं चाहता हूं कि वह मेरे खेत के सबसे अच्छे गन्ने से ऊतक बनाए, जिससे मैं तीन साल तक फसल काटता हूं। टिश्यू कल्चर का अर्थ है कि किसी एक पौधे के ऊतकों या कोशिकाओं को विशेष परिस्थितियों में प्रयोगशाला में रखा जाता है, जो अपने आप रोग मुक्त होने और अपने जैसे अन्य पौधों का उत्पादन करने की क्षमता रखते हैं।

सुरेश अपने पूरे खेत से 100 अच्छी (मोटी, लंबी और रोगमुक्त) बेंत चुनता है, जिनमें से 10 को वह एक स्थानीय प्रयोगशाला में ले जाता है, जहाँ वैज्ञानिक साल में एक बेंत का चयन करते हैं और उससे ऊतक बनाते हैं। सुरेश कहते हैं, ”मैं इसके लिए लैब को करीब 8,000 रुपये चुकाता हूं। इसलिए F-3 मिलने के बाद मुझे वह गन्ने का बीज मिलता है, जिससे बहुत अच्छी पैदावार होती है।

जमीन और अच्छे बीज का होना बहुत जरूरी

उनका कहना है कि किसी भी फसल के लिए जमीन और अच्छे बीज का होना बहुत जरूरी है। “मैं उन दोनों को बहुत महत्व देता हूं। मैं खुद बीज बनाता हूं, खेतों को अच्छी तरह जोतता हूं, खाद और पानी की व्यवस्था करता हूं। इससे सुरेश 9-11 महीने तक फसल को बीज के लिए खेत में रखता है, और गन्ने को 16 महीने तक खेत में रखता है।

गन्ने के पत्तों को जलाना पूरी तरह से बंद कर दिया

उनका कहना है कि किसान गन्ने की बुवाई न करें। महाराष्ट्र के कई किसान उनकी तकनीक पर भरोसा कर रहे हैं। पिछले दस वर्षों से उन्होंने गन्ने के पत्तों को जलाना पूरी तरह से बंद कर दिया है। इससे उनके क्षेत्र में कई सुधार हुए हैं। और उनकी मिट्टी में केंचुओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।कृषि के क्षेत्र में सुरेश कबड़े के इस प्रयोग और परिणामों को किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी सराहा।

सनई और ढैंचा से बने खाद का प्रयोग
सुरेश ने बताया कि गन्ने की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव और उसका सही स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। ऐसे में खाद की बड़ी भूमिका रहती है। सुरेश खाद के लिए अपने खेत की मिट्टी में सनई और ढैंचा से बने खाद का प्रयोग करते हैं, इसके अलावा रायजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर और पूरक जीवाणु खाद का इस्तेमाल करते हैं। और सबसे अहम बात, वे गन्ना पहले ट्रे में उगाते हैं, उसके बाद उसे खेत में लगाते हैं। इससे गन्ने की फसल कम समय में तैयार हो जाती है।

लाइन विधि से बुवाई
अहम और जरूरी बात कि सुरेश गन्ने की बुवाई लाइन से लाइन विधि से करते हैं। वे गन्ने की क्यारी की दूरी 5 से 6 फीट दूर रखते हैं। लाइन से लाइन विधि से लगाने का फायदा यह होता है कि खेत की जुताई ट्रैक्टर से बड़ी आसानी से हो जाती है और उर्वरकों के छिड़काव में दिक्कत नहीं आती। पौधे दूर रहते हैं इस कारण जड़ों को धूप भी आसानी से मिलती है। इसी कारण सुरेश के गन्ने की जड़ें बहुत मोटी होती हैं।

बीज का चयन
सुरेश कहते हैं कि गन्ने की खेती में ज्यादा उत्पादन के लिए बीज की चयन बहुत जरूरी है। ऐसे में वे टिशू कल्चर से खुद की किस्म तैयार करते हैं। वे हर साल 100 बेहतरीन पौधों में से एक का चुनाव करते हैं जिससे लैब में टिशू कल्चर से बीज तैयार कराते हैं। इसमें शुगर की मात्रा कम होती है जिस कारण फसल में रोग नहीं लगते और उत्पादन भी खूब होता है। वे इन बीजों को किसानों को बांटते हैं।

30वें दिन जड़ों में जरूरी पोषक आहार
सुरेश कहते हैं कि गन्ने की अच्छी पैदावार के लिए समय का ध्यान दिया जाना भी बहुत जरूरी है। पौधा लगाने के 30वें दिन जब अंकुर दिखने लगे तब पौधे के पास गड्ढा खोदकर जड़ों में जरूरी पोषक आहार डालने चाहिए फिर उसे ढंक देना चाहिए। इस प्रक्रिया को 65वें, 85वें, 105वें, 135वें। 165वें और 225वें दिन भी दुहराना चाहिए। जरूरत पड़ने पर पौधों से खराब हो चुकीं पत्तियों को अलग करते रहना चाहिए। सुरेश इन पत्तियों को फेंकते नहीं, बल्की गड्ढा खोदकर जमीन में गाड़ देते हैं जो आगे चलकर खाद में तब्दील हो जाता है, इस तरह वै जैविक खाद भी बना लेते हैं।

गन्ने को सीधा करने के लिए बिल्कुल न बांधेंबांध
सुरेश किसान भाइयों को राय देते हुए कहते हैं कि कई राज्यों में किसान गन्ने को सीधा करने के लिए उसे बांध देते हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। गन्ने का भोजन उसकी पत्तियों में होता है और जब हरी पत्तियों से गन्ने को बांध दिया जाता है तो पत्तियों में जमा भोजन गन्ने को नहीं मिल पाता। पत्तियां सूख कर वहीं नीचे गिरती हैं, जिनके पोषक तत्व गन्ने में आ चुके होते हैं।

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