भारतीय और विदेशी गोवंश की उन्नत नश्लें, जानिए इनकी क्या है विशेषता
डॉ. सोनू कुमार यादव, डॉ.अंजनी कुमार मिश्रा, डॉ. राहुल चैरसिया, डॉ. उपेन्द्र सिंह नरवरिया, डॉ. भावना अहरवाल
पीएचडी शोध छात्र, प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, पीएचडी शोध छात्र, सहायक प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक
डॉ. प्रमोद शर्मा, सहायक प्राध्यापक, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय रीवा, मप्र.
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय महू , मप्र.
भारत में प्राचीन काल से ही पशुपालन व्यवसाय के रुप मे प्रचलित रहा है। भारत में 70फीसदी आबादी ग्रामीण है। 20वीं पशुधन गणना के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी 53578 मिलियन है, जो 2012 की तुलना मे 4.6 प्रतिशत अधिक है।
पशुधन गणना के अनुसार मादा मवेशी (गायो कीं कुल संख्या) 145.12 मिलियन आंकी गई, जो पिछली गणना से 18 प्रतिशत अधिक है। पशुओं के समूह को जो कि विभिन्न गुणों में एक जैसे देखने मे, शारीरिक अनुपात में, आकृति मे एक तरह के हो, और एक ही वंश के हो, नस्ल कहलाते हं।
भारतीय गायों की नस्लें: भारत में गायों की नस्लों को 3 प्रकार में बांटा जा सकता है-
दूध देने वाली नस्लें: 1. साहीवाल, 2. लाल सिन्धी, 3. गिरि, 4. देओनी।
दूध एवं खेती दोनों के काम आने वाली नस्लें: 1. हरियाणा, 2. थारपारकार, 3. कांकरेज, 4. अंगोल।
खेती में काम आने वाली नस्लें: 1. अमृत-महल, 2. कंगायम, 3. मालवी, 4. हल्लीकर, 5. सीरी।
दूध देने वाली नस्लें:
1.साहीवाल,अन्य नाम-लोला, मोन्टगुमरी, यह नस्ल पाकिस्तान के मोन्ट-गुमरी जिले में तथा भारत के पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के जिलों में पायी जाती है।
उत्पादन: यह नस्लऔसतन 2200-2500 किग्रा दूध 300 दिन में देती है। नर पशु छोटे मोटे खेती के कामों के लिए उपयोगी।
लाल सिन्धी: इस नस्ल का मूल स्थान पाकिस्तान के करांची तथा हैदराबाद है। भारत के उत्तरी राज्यों में भी पाई जाती है।
उत्पादन: इस नस्ल का औसत दुग्ध उत्पादन 2000 किग्रा. प्रति ब्यात होता है। नरपशु खेती या दूसरे भार उठाने के लिए उपयोगी।
गिर: अन्य नाम-काठियाबाड़ी, सूरती, देसान, इस नस्ल का मूल स्थान गुजरात राज्य का गिर जंगल हैं। यह काठियाबाड़ के जूनागढ़ तथा पश्चिमी भारत में पायी जाती हैं।
उत्पादन: इस नस्ल की औसत दुग्ध क्षमता 1700 किग्रा. प्रतिब्यात होती हैं। सांड खेती के कामों के लिए उपयोगी होते हैं।
देओनी: अच्छी दुधारू नस्ल है।
उत्पादन: औसत दूध उत्पादन क्षमता 1500 किलोग्राम प्रति ब्यात हैं। अगर अच्छी तरह पाला जाये तो यह 3000 किलोग्राम प्रतिब्यात दूध दे सकती हैं। बैल खेती के कामों के लिए उपयोगी।
दूध एवं खेती दोनों के काम आने वाली नश्लें
हरियाणा-इस जाति का मूल स्थान रोहतक, हिसार, गुडग़ांव, करनाल तथा दिल्ली है। इसके अतिरिक्त यह जाति जींद, नाभा, पटियाला, अमरपुर, भरतपुर, जयपुर तथा उत्तरप्रदेश के पश्चिम में भी पायी जाती हैं।
उत्पादन: यह एक दुई उद्देषी नस्ल है। इस जाति की मध्यम दर्जे की गायें एक ब्यात में लगभग 1500 किलोग्राम दुध देती हैं। इस जाति के बैल अपने गुणो और शक्ति के कारण बहुत प्रसिद्ध हैं।
अंगोल-अन्य नाम: नैल्लोर: इस जाति के पशु आंध्र प्रदेश के अंगोल नामक इलाके के नेल्लोर और गुंटूर जिले में पाए जाते हैं।
उत्पादन: औसतन एक ब्यात में 800 से 1000 किग्र तक दूध देती है बैल कृषि के काम आते हैं।
थारपारकर-अन्य नाम: थारी: इसका मूल स्थान पाकिस्तान का थार पारकर जिला है। राजस्थान जोधपुर जैसलमेर जिलों में भी पाई जाति हैं।
उत्पादन: यह एक प्रमुख दुई उद्देषी पशु है। एक ब्यात में 2 हजार किग्रा दूध देती है। इस जाति के साडों को दुधारू नस्ल सुधार कार्य के लिए अच्छा समझा जाता हैं।
कांकरेज: अन्य नाम-बिन्नआई, बगाडिय़ा, वधियार। इस जाति के पशु बडा़ैदा, सूरत जिले एवं कच्छ क्षेत्र में पायी जाती हैं।
उत्पादन: इस नस्ल की गाय एक ब्यात में औसतन 1500-1800 किलोग्राम दूध देती हैं। बैल खेती के कार्य के लिए उपयोगी होते हैं।
खेती में काम आने वाली नस्लें
अमृतमहल
इस नस्ल के पशुओं का मूल स्थान कर्नाटक राज्य है। मद्रास एवं मुुुुंबई के दक्षिणी भागों में भी पायी जाती हैं।
उत्पादन: गाय कम दूध देती है। बैल खेती तथा तांगे-गाडिय़ों में जोतने और तेज चाल, कृषि कार्य के लिए सर्वोत्तम है।
कंगायम
अन्य नाम-कंगाबंद कांगू: इस नस्ल के पशु कोयम्बतूर जिले में पायी जाती हैं।
उत्पादन: कम दूध वाली। भारवाही कार्य के लिए प्रसिद्ध हैं।
मालवी
इस नस्ल का मूल स्थान मप्र का मालवा है। यह नस्ल राजस्थान में भी पायी जाती हैं। यह खेती की नस्ल हैं।
सीरी
यह दार्जिलिंग, सिक्किम और भूटान में पायी जाती हैं।
हल्लीकर
कर्नाटक राज्य की हासन और तुमकुर की नस्ल हैं।
गाय की विदेशी नस्लें: विदेशों के दुधारू पशुओं की नस्ल भारतीय नस्लों से ज्यादा दूध देती हैं। विदेशी गायों का मुख्यत: जर्सी, होलेस्टीन फ्रिजियन, रेडडेन और ब्राउन स्विस नस्लों का प्रयोग भारत में हो रहा है।
जर्सी
इस नस्ल की उत्पत्ति इंग्लिश चैनल के जर्सी द्वीप से हुई है। औसत दूध उत्पादन की क्षमता 3500-4000 लीटर प्रतिब्यात है। दूध में फैट 4.5 से 5.5 प्रतिशत तक होता हैं।
होलस्टीन-फ्रीजियन
यह नीदरलैंड की नस्ल हैं। पशुओ का रंग काला और सफेद होता हैं। यह नस्ल संसार की सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाली मानी जाती है। औसतन दुग्ध उत्पादन प्रतिब्यात 6000-7000 लीटर होता है। इसके दूध में फैट कम अर्थात 3.0 से 3.5 प्रतिशत होता है।
रेड-डेन
यह डेनमार्क की नस्ल है। पशुओं का रंग गहरा लाल होता है। नर पशु काला पन लिए हुए होता है। प्रतिब्यात दुग्ध उत्पादन 4900 लीटर होता है। दूध में फैट की मात्रा 4.0-4.5 प्रतिशत होता है।
ब्राउनस्विस:
यह स्वीटजरलैंड की नस्ल है। इस का रंग गहरा बदामी होता है। प्रतिब्यात औसतन एक गाय 5000 से 6000 लीटर दूध देती है।