जौ की छिलका रहित किस्म गीतांजलि किसानों को बना रही मालामाल

जौ की छिलका रहित किस्म गीतांजलि किसानों को बना रही मालामाल

गीतांजलि किस्म का उपयोग गेहूं की तरह कर सकते हैं

भोपाल। जौ की खेती देश के भीतर प्राचीन काल से होती आ रही है। यह एक देसी अनाज है जिसका इस्तेमाल गेहूं के आने के पहले सबसे ज्यादा होता रहा है। गेहूं प्रमुख खाद्यान्न के रूप में उगाया जाने लगा तो जौ का उपयोग पशुओं के चारे और पोषण के लिए किया जाने लगा। जौ एक ऐसी फसल होती है जिसमें कम सिंचाई के साथ-साथ उर्वरक की मात्रा भी कम लगती है। जौ की खेती प्रमुख रूप से रबी के सीजन में होती है। गेहूं की तुलना में जौ की खेती में समय के साथ-साथ फसल लागत भी कम आती है। हालांकि गेहूं के मुकाबले जौ के उपयोग के फायदे ज्यादा हैं। इसमें फाइबर की मात्रा काफी ज्यादा होती है। गेहूं और चावल के उपयोग से जहां शरीर में ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है। जौ के उपयोग से शरीर को कई सारे फायदे भी होते हैं। अभी तक जौ का उपयोग सीधे खाद्यान्न के रूप में नहीं हो पता है क्योंकि इसके ऊपर एक छिलका होता है जिसे हटाने के लिए काफी मेहनत करनी होती है। वही जौ की एक ऐसी किस्म भी अब विकसित हो चुकी है जो बिना छिलके वाली है। गीतांजलि नाम की इस किस्म का उपयोग गेहूं की तरह सीधे तौर पर किया जा सकता है। 

खेती से किसान की बढ़ेगी आय

गेहूं के मुकाबले जौ का उत्पादन कम है। वहीं उपभोग भी काफी कम हैं। गेहूं को सीधे प्रयोग में लिया जा सकता है जबकि जौ से आटा बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है। वही जौ की एक उन्नत किस्म का विकास हुआ है जो छिलका रहित है। गीतांजलि नाम से यह किस्म किसानों के बीच काफी ज्यादा चर्चित हो रही है। इस जौ की किस्म का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। वही इस किस्म में पोषक तत्व की मात्रा भी भरपूर पाई जाती है। अगर किसान इस प्रजाति के जौ की खेती करते हैं तो उन्हें गेहूं के मुकाबले ज्यादा फायदा मिलता है। 

धार्मिक रूप में भी जौ का इस्तेमाल

जौ का उपयोग खाद्यान्न में तो होता ही है। वही धार्मिक रूप में भी इसका इस्तेमाल खूब होता है। इसीलिए अब अयोध्या में रामलला के मंदिर बनने के बाद जौ की मांग में काफी ज्यादा तेजी आई है। इसीलिए अयोध्या और आसपास के क्षेत्र में जौ से बने हुए वस्तुओं की खपत बढ़ गई है जिसके चलते किसानों को भरपूर फायदा भी हो रहा है। अयोध्या स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष बीपी शाही ने बताया कि उनके फार्म पर कुल चार तरह की जौ की किस्म का प्रदर्शन किया गया है जिसमें गीतांजलि एक ऐसी किस्म है जो छिलका रहित है। इस किस्म की खेती से किसानों को काफी ज्यादा मुनाफा भी हो रहा है। 

जौ की उन्नत किस्में

किसानों के बीच प्रचलित है। कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या में जौ की चार किस्म का प्रदर्शन किया गया है। किसानों को जौ की खेती के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष बीपी शाही ने बताया कि उनके यहां डीडब्यूआरबी137 जौ की उन्नत किस्म है जिसका उत्पादन 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वही यह 135 दिन में तैयार हो जाती है। इसी तरह डीडब्यूआरबी 182 किस्म का उत्पादन 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसी के साथ आरडी 2907 किस्म का उत्पादन 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यह 130 दिन में तैयार हो जाती है जबकि गीतांजलि छिलका रहित किस्म है। किसान इस किस्म को सबसे ज्यादा खेती कर रहे हैं क्योंकि गेहूं की तरह इस किस्म को सीधे तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। 

बंजर भूमि में भी जौ की खेती

जौ की खेती पूरे देश में बड़े सीमित भूभाग पर रह गई है। देश के भीतर जौ का सबसे ज्यादा उत्पादन बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में होता है। भारत में हर साल 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है। जौ की फसल हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है। यहां तक की 7 से 8 पीएच वाली दोमट मिट्टी में भी इसकी खेती होती है। जौ की फसल को गेहूं के मुकाबले कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है। यह दो से तीन सिंचाई में तैयार हो जाती है।

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