फलों के फटने का कारण एवं निदान, जानिए डॉ कुकसाल से
डॉ शशिकान्त सिंह
देहरादून। फलों का फटना एक गंभीर व सामान्य समस्या है। फलों का फटना, फलों की गुणवत्ता को कम करने के साथ ही उनमें रोग व कीट आक्रमण की संभावना को भी बढ़ा देता है। आम, लीची, अनार, अंगूर, सेब, चेरी, नीम्बू आदि फलों में फल फटने की समस्या अधिक देखने को मिलती है।
फल फटने के कई कारण हो सकते हैं-
1. वातावरण में अधिक नमी का होना- अधिक तापमान में जब अचानक वर्षा बहुत दिनों के बाद होती हैं, मिट्टी में उपस्थित नमी की अपेक्षा फल के ऊपर अधिक पानी रहना फलों को फटने के लिये बाध्य कर देता है जब फलों द्वारा वर्षा का पानी अधिक मात्रा में सोख लिया जाता है, वह फल के अन्दर प्रविष्ट होकर रस की मात्रा बढ़ा देता हैं जिससे फल फट जाते हैं।
2. अधिक गर्मी के कारण - लगातार सूखे के कारण यदि पौधों के पास की मिट्टी पानी की कमी से अधिक सूख जाती है और बाद में अचानक पानी अधिक मात्रा में दे दिया जाता है तो फल फट जाते हैं। सूखे मौसम में जब तापक्रम अधिक रहता है तो नींबू तथा लैमन के फलों की बाहरी छाल सख्त पड़ जाती है और बाद में अधिक पानी के कारण फलों के अन्दर के भाग भार व आयतन में बढ़ते हैं तो फल फट जाते हैं। फल फटने की क्रिया उस समय अधिक देखी जाती है जब वे पकने लगते हैं।
3. गर्म हवा के कारण-
फल विकसित होते समय लीची के फल अधिकतर तेज तथा गर्म हवाओं के कारण फट जाते हैं।
4. पोषक तत्वों की कमी एवं असंतुलित मात्रा -
पोषक तत्वों की कमी या असंतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करने से भी फल फटने लगते हैं। चेरी आम लीची में बोरोन की कमी से सेब में बोरोन तांबा तथा ज़िंक की कमी से तथा नींबू प्रजाति के फल ताँबे की कमी के कारण फट जाते हैं।
5. परिपक्वता -
फलों के साथ उनके अन्दर की शक्कर तथा घुलनशील ठोस पदार्थ बढ़ते हैं, जिसके फलों के फटने की दशा देखने को मिलती है। फलों का फटना उनकी परिपक्वता के साथ बढ़ता जाता है।
5. कीड़े तथा बीमारियाँ-
बहुत से कीड़े तथा बीमारियों फलों की छोटी अवस्था में ही आक्रमण कर देते हैं। जैसे-जैसे फल बढ़ता है उनका आक्रमण भी अधिक होता. जाता है, जिससे फल फटने शुरू हो जाते हैं।
6. यांत्रिक कारण -
यांत्रिक कारणों द्वारा भी बहुत से फल फट जाते हैं, जैसे कि नींबू प्रजाति के फल कम तापक्रम के साथ अधिक नम मौसम में फटने शुरू हो जाते हैं।
नियंत्रण के उपाय
1. निश्चित समय पर सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई करना - फल लगने से पकने तक अगर सिंचाई तथा निराई-गुड़ाई निश्चित समय पर की जाये तो इस परेशानी से छुटकारा मिल सकता है।
2. जिंक एवं बोरान का प्रयोग - आम एवं लीची में फलों के फटने की अवस्था को रोकने के लिए 0.2% का जिंक सल्फेट एवं बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिए। मृदा में 100 ग्राम जिंक सल्फेट एवं 60-70 ग्राम बोरेक्स प्रति वयस्क पेड़ में प्रयोग करने से फल कम फटते है।
3. एन. ए. ए. हार्मोन का छिड़काव - 20 लीटर पानी में 4 मिलीलीटर नैपथ्लीन एसिटिक एसिड हार्मोन अगर फल पकने के 10 दिन पहले छिड़का जाये तो 60 प्रतिशत फल फटने से बचाये जा सकते हैं।
4. फलों की जल्दी तोड़ाई - अगर फलों को पूर्ण आकार ग्रहण करने के पश्चात पकने के कुछ समय पहले तोड़ लिया जाये तो वे फल फटने से बच जाते हैं।
नियंत्रण के अन्य उपाय
मृदा परीक्षण अवश्य कराएं। पी. एच. मान पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है इसलिए यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय)है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलायें यदि मिट्टी का पी एच मान अधिक (क्षारीय)है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) मिलायें। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है जिस कारण मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
फल उद्यान के चारों तरफ तेज तथा गर्म हवाओं को रोकने के लिये वायु गति अवरोधक वृक्षों को लगाना चाहिये। बीमारियों तथा कीड़ों को नियंत्रित रखना चाहिये। अनार में फलों के फटने के प्रति प्रतिरोधी किस्म जैसे नासिक, डोलका बेदाना लीची की कोलकाता चेरी की बिंग किस्मों का रोपण करें। मल्चिंग - फल पौधों के थावलों में मल्चिंग से भी फलों को फटने से बचाया जा सकता है।