विदेश में बढ़ी रतलाम के लहसुन की डिमांड, दिल्ली, मुंबई, मद्रास जैसे महानगरों में धाक
अन्नदाता जैविक पद्धति से कर रहे खेती
अमित निगम
रतलाम, मप्र के किसान अब आत्मनिर्भर हो रहे हैं। खेती-किसानी नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर देश के साथ राज्य का भी नाम रोशन कर रहे हैं। रतलाम में स्ट्राबेरी, मटर, अंगूर, अमरूद की खेती के साथ ही लहसुन की खेती में भी जिले के किसान अव्वल हैं। जिले में प्रतिवर्ष ढाई लाख मीट्रिक टन से अधिक लहसुन का उत्पादन हो रहा है। ज्यादातर किसान जैविक पद्धति से खेती कर रहे हैं। इस वजह से लहसुन की विदेशों में भी विशेष मांग हो रही है। प्रदेश में भी सबसे बेहतर क्वालिटी का लहसुन रतलाम का ही माना जाता है, जो देश के दिल्ली, मुंबई, मद्रास जैसे महानगरों में धाक जमाए हुए है। तीस हजार हेक्टेयर में हो रही लहसुन की खेती से 25 हजार किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आत्म निर्भर मप्र अभियान के तहत भी लहसुन के उत्पादन पर ध्यान दिया जा रहा है। जिले के पिपलौदा, जावरा और रतलाम ब्लाक में सबसे अधिक किसान लहसुन की खेती कर रहे हैं। रबी सीजन में उत्पादन अधिक होता है।
मलेसिया में भी मांग
व्यापारी नीलेश बाफना के अनुसार रतलाम में होने वाली उंटी लहसुन की गांठ मजबूत होती है। औषधि गुण व स्वाद में बेहतर होने के कारण सउदी अरब, बंगलादेश और मलेशिया में रतलाम के लहसुन की अच्छी मांग है।
एक हेक्टेयर में 90 क्विंटल
जिले के पिपलौदा के लहसुन उत्पादक किसान राजेश पाटीदार बताते हैं कि मल्चिंग पद्धति से लहसुन की जैविक खेती हो रही है, जिससे उत्पादन बढ़ा है। इसकी सप्लाई देश के बड़े शहरों के अलावा विदेशों में भी होती है। एक हेक्टेयर में 90 क्विंटल तक उत्पादन हो रहा है। दो हेक्टेयर में हमें हर सीजन 190 क्विंटल तक उत्पादन मिल रहा है। खेती में जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।
इनका कहना है
रतलाम जिले में लहसुन उत्पादन का 60 प्रतिशत हिस्सा विदेश जा रहा है। हर सीजन में ढाई लाख मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन हो रहा है। औसतन लहसुन 60 से 100 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। यहां के किसान सीधे दिल्ली, मुंबई, मद्रास जैसे शहरों की मंडी में लहसुन भेजते हैं। वहां से आयात-निर्यात करने वाले व्यापारी विदेश भेज रहे हैं।
पीएस कनेल, उपसंचालक, उद्यानिकी विभाग, रतलाम