कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा विश्व दुग्ध दिवस पर वर्चुअल प्रषिक्षण का आयोजन

कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा विश्व दुग्ध दिवस पर वर्चुअल प्रषिक्षण का आयोजन

टीकमगढ़,  कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ़,  पषुपालन एवं डेयरी प्रबंधन विभाग एवं परियोजना संचालक आत्मा, किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग टीकमगढ़ के संयुत्वाधान में 1 जून 2021 को विष्व दुग्ध दिवस पर वर्चुअल प्रषिक्षण का आयोजन किया गया । यह कार्यक्रम मुख्य अतिथि डाॅ. डी. पी. शर्मा,  संचालक  विस्तार सेवायें, जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय, जबलपुर के सानिध्य में आयोजित किया गया । उन्होने अपने उद्बोधन में पशुपालको को व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाते हुये पषुपालन का कार्य करने की सलाह दी । जिससे पशुपालन आय का एक अतिरिक्त साधन विकसित होगा, साथ ही कृषि उत्पादन में भी अच्छी वृद्वि होगी। 

विष्व दुग्ध दिवस पर डाॅ. बी. एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, टीकमगढ़ एवं डाॅ. पी.एन. त्रिपाठी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, पन्ना द्वारा अपने व्याख्यान अन्तर्गत एक प्रगतिषील पषुपालक को तीन वैज्ञानिक मूल मंत्रो गुड ब्रीडिंग, गुड फिडिंग एवं गुड़ मेनेजमेन्ट अर्थात उन्नत नस्ल का चुनाव, उत्तम पोषण आहार एवं अच्छा रखरखाव/प्रबंधन पर विषेष ध्यान देने की सलाह दी गई साथ ही स्थानीय पषुओं की नस्ल में भारतीय अधिक दूध देने वाली नस्लों साहीवाल, गिर थारपारकर, हरियाणा एवं बंगोल के सांड या कृ़ित्रम गर्भधान कराकर नस्ल सुधार के कार्य को प्राथमिकता दी जावे साथ ही साल भर हरा चारा  का उत्पादन करे। पषुपालन करने से वर्मी कम्पोस्ट, एवं बायोगैस को बढ़ावा मिलेगा जिससे उच्च गुणवत्ता का खाद प्राप्त होगा साथ ही ईधन की बचत और महिलाओं को खाना बनाने में धुआं से छुटकारा मिलता है ।

डा. एस.के. खरे, वैज्ञानिक (पशुपालन) द्वारा पषुओ में पोषक तत्वों कैल्षियम, फास्फोरस की कमी से होने वाली बीमारियों के लक्षणो एवं उनके प्रबंधन के बारे में विस्तार से बताया उनके द्वारा पशुओं में होने वाली प्रमुख बीमारियों गलघोटू, एकटंगी, एन्थै्रक्स, खुरपका, मुहंपका, कृमि रोग, थनैला रोग आदि बीमारियों के लक्षणों एवं उनके प्रबंधन पर तकनीकी जानकारी प्रदान की गई साथ ही उनके प्रबंधन पर टीकाकरण के समय के बारे में विस्तार से बताया गया।

डाॅ दीनेष कुमार, सहायक प्राध्यापक द्वारा बताया कि विष्व में भारत दुग्धोत्पादन में 196 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन के साथ प्रथम स्थान पर है और मध्यप्रदेष दुग्धोत्पादन के क्षेत्र 4 थे स्थान पर है । उन्होने बताया कि पषुओं  के रखरखाव एवं पोषण आहार पर विषेष ध्यान देने की आवष्यकता है । पषुओं को हमेषा स्वच्छ पानी पिलाना चाहिये साथ ही ही उनके खाना एवं पानी वाले बर्तन हमेषा साफ रखें और गौषाला हमेषा साफ रखना चाहिये। पषुओं के लिये साल भर हरे चारे की फसलें उगाना चाहिये जिससे बाजार के आहार पर निर्भरता कम हो जायेगी। कार्यक्रम में उपसंचालक पषुचिकित्सक डाॅ. सी. के. त्रिपाठी द्वारा शासन की पषुपालको के लिये संचालित योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया साथ ही किसानो को योजनाओं के सम्बन्ध में समस्याओं का भी समाधान किया गया और उप संचालक कृषि द्वारा भी किसानो के प्रमुख फसले एवं हरा चारा के बारे में विस्तार से बताया गया ।