बेकार पड़ी जमीन पर भी खेती करके बढ़ा सकते हैं रोजगार-स्वरोजगार के अवसर, जानिए कैसे
डॉ. वेद प्रकाश सिंह
वरिष्ठ प्रशिक्षक, सेडमैप, भोपाल
भोपाल, कई बार हम बेकार पड़ी भूमि को बेकार ही पड़े रहने देते हैं और यह नहीं सोचते हैं कि बेकार पड़ी भूमि का उपयोग कैसे करना है। कुछ लोग तो यह सोचकर बेकार पड़ी भूमि का उपयोग नहीं करते, क्योंकि उन्हंे लगता है कि यह घाटे का सौदा है, परंतु अब नई कृषिकरण तकनीक से हम बेकार पड़ी भूमि से भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि हमारे पास बेकार भूमि हो ही, जिनके पास नहीं है वह भी किसी और से बेकार पड़ी भूमि लीज पर लेकर नई कृषिकरण तकनीक का उपयोग कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
देश में 1,69,96,000 हेक्टेयर जमीन बंजर है
इस प्रकार देखा जाए तो बेकार पड़ी जमीन पर भी खेती करके हम रोजगार-स्वरोजगार के अवसर बढ़ा सकते हैं। यहां हम जानेंगे कि बेकार भूमि कितने प्रकार की हो सकती है और उनसे कैसे लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए हमें आंकड़ों पर भी ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक होगा। बेकार पड़ी भूमि से लाभ की संभावनाएं इसलिए भी अधिक हैं क्योंकि अपने देश में 1,69,96,000 हेक्टेयर जमीन बंजर है। यह भी कह सकते हैं कि ये भूमि खेती योग्य नहीं है। जुलाई में लोकसभा में प्रस्तुत कागजात बताते हैं कि देश के पांच राज्यों में सर्वाधिक बंजर जमीन है, इनमें गुजरात (25.52 लाख हेक्टेयर), राजस्थान (24.03 लाख हेक्टेयर), महाराष्ट्र (17.27 लाख हेक्टेयर) और मध्यप्रदेश (13.57 लाख हेक्टेयर) भूमि अनुपयोगी है। हालांकि सरकार द्वारा बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं परंतु जनभागीदारी एवं जनजागरूकता के बगैर इस कार्य में जल्द सफलता मिलती नहीं दिखती।
बंजर जमीन पर औषधीय एवं सगंधीय खेती का प्रशिक्षण प्रदान करना उपयुक्त रहेगा
कृषि क्षेत्र में अपरिमित संभावनाओं के द्वार खोलकर किसानों को अग्रणी और आत्म-निर्भर बनाने के लिए यह आवश्यक होगा कि बंजर जमीन की चुनौती से निपटा जाए। ऐसे समय में जब कृषि के क्षेत्र में नवाचार और आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया जा रहा है, तब बंजर भूमि के उपयोग पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाना सामयिक होगा। इसके लिए बंजर जमीन पर औषधीय एवं सगंधीय खेती का प्रशिक्षण प्रदान करना उपयुक्त रहेाग। देश-प्रदेश के सर्वांगीण विकास तथा गाँव, गरीब और किसान की सशक्त सहभागिता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी बंजर भूमि के उपयोग पर विमर्श आवश्यक हो जाता है।
अनुपजाऊ भूमि पर औषधीय सगंधीय पौधों की खेती की जा सकती है
हमें देश में बंजर पड़ी भूमि पर औषधीय सगंधीय पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन को प्रोत्साहित करना होगा। किसानों के पास अथवा गांवों में पड़ी अनुपजाऊ भूमि, जलप्लावित भूमि, बंजर भूमि, छायादार भूमि, पड़ती भूमि, दलदली भूमि पर औषधीय सगंधीय पौधों की खेती की जा सकती है, जिससे किसान अथवा इच्छुक युवा इस प्रकार की कृषि को अपनाकर अपनी आमदनी को बढ़ा सकें तथा उनके पास उपलब्ध ऐसी भूमि जिसपर वे परंपरागत खेती करने में असमर्थ हैं, उनका भी विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए ऐसी भूमि पर भी खेती कर लाभ कमा सकें, जैसे अनुपजाऊ भूमि, जलप्लावित भूमि, बंजर भूमि, छायादार भूमि, पड़ती भूमि और दलदली भूमि आदि का उपयोग कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
जल भराव अथवा दलदली भूमि पर हो सकती है पांच तरह की खेती
इन भूमियों पर प्रमुख औषधीय पौधे जैसे सफेद मूसली, सतावरी, अश्वगंधा, सर्पगंधा, कालमेघ आदि और सगंधीय पौधे जैसे मेन्था, लेमनग्रास, पामारोजा, सिट्रोनेला, गुलाब, जामा रोजा, गेंदा आदि के कृषिकरण का कार्य किया जा सकता है। अब जल भराव अथवा दलदली वाली भूमि को ही ले लीजिए। इस पर पांच तरह की खेती हो सकती है। इस भूमि पर बच, मंडूकपर्णी, ब्रम्ही, खस और नागरमोथा की खेती की जा सकती है। जलप्लावित भूमि पर सिंघाड़ा, मखाना की खेती की जा सकती है। छायादार भूमि पर अधिकांश औषधीय-सगंधीय पौधों को पसंद है इसलिए इस भूमि पर सफेद मूसली, सतावर, अश्वगंधा, सर्पगंधा, कालमेघ, हल्दी, अदरक, सूरन (ओल या जिमीकंद) घृतकुमारी (ग्वारपाठा) आदि की खेती की जा सकती है। पड़ती भूमि पर ऐसे पौधों की खेती की जा सकती है जो अधिक पीएच मान पर भी उत्पादन दे सकते हैं, जैसे पामारोजा, जामारोजा खस इत्यादि। अनुपजाऊ या बंजर भूमि पर घृतकुमारी की फसल सबसे उपयुक्त है।
परंपरागत फसलों की तुलना में अधिक सरल है औषधीय सगंधीय पौधों की खेती
औषधीय सगंधीय पौधों की खेती की कृषिकरण तकनीक, परंपरागत फसलों के कृषिकरण की तकनीक की तुलना में अधिक सरल है। औषधीय सगंधीय फसलों की बाजार में अच्छी मांग के कारण इन फसलों की खेती परंपरागत फसलों की तुलना में तुलनात्मक रूप से अधिक लाभकारी है। औषधीय सगंधीय पौधों पर प्रशिक्षण पाने का लाभ यह होगा कि इससे परंपरागत खेती की तुलना में प्रति एकड़ आमदनी अधिक प्राप्त कर सकते हैं। इन फसलों की बुवाई तथा कटाई-गहाई का समय परंपरागत फसलों की बुवाई, कटाई-गहाई से अलग होता है, परिणामस्वरूप ग्रामीण अंचल में सरलता से कृषि श्रमिकों की उपलब्ध सुलभ हो सकती है।
औषधीय एवं सगंध फसलों की खेती कृषकों के लिए अधिक लाभदायक
औषधीय सगंधीय फसलों के प्रसंस्करण से ग्रामीण क्षेत्र में अधिकाधिक रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। अधिकांश औषधीय फसलें किसी रोग-व्याधि के शमन के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। अतः इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण रोग व्याधि से नुकसान की संभावनाएं भी अल्प होती हैं, सगंधीय फसलों में एक खास प्रकार की गंध होने के कारण आवारा मवेशियों के द्वारा नुकसान पहुंचाने की संभावना भी अल्प होती है तथा अन्य औषधीय फसलों को भी जानवर नहीं चरते हैं। इस कारण औषधीय एवं सगंध फसलों की खेती कृषकों के लिए अधिक लाभदायक है।
तो हमें बंजर भूमि पर खेती की योजना को मूर्तरूप देना ही होगा
कृषि को लाभदायी बनाने की दिशा में अपनाए जा रहे प्रमुख कदमों में यह कदम भी किसानों की आय वृद्धि में सहायक हो सकता है। यदि हम वाकई कृषि लागत में कमी, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, कृषि विविधीकरण, उत्पाद का बेहतर मूल्य और कृषि क्षेत्र में आपदा प्रबंधन पर संकल्पित होकर कार्य करने के लिए संकल्पित हैं तो हमें बंजर भूमि पर खेती की योजना को मूर्तरूप देना ही होगा।