कृषि वैज्ञानिकों ने देखी किसानों की उन्नत खेती, दिया उचित सलाह
टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. बी. एस. किरार, वैज्ञानिक डॉ. एस. के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. आर. के प्रजापति एवं डॉ. आई.टी. सिंह के द्वारा विगत दिवस ग्राम परावास, नन्ही टेहरी, गुदनवारा के किसानों के प्रक्षेत्र का भ्रमण किया गया। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के सुझाव से जगदीश अहिरवार के द्वारा टमाटर, मिर्च, बैगन, खीरा, सहजन की फसल वैज्ञानिक तकनीकी से लगाई गयी है।
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टमाटर, मिर्च, बैंगन की बहुत सी किस्में प्रचलन में हैं, परंतु किसान को उत्पादन तकनीकी की सही जानकारी के अभाव या समय से रोग, कीट व्याधियों का उचित प्रबंधन न होने के कारण काफी नुकसान होता है। जगदीश बहिरवार ग्राम परावास के द्वारा स्टैकिंग विधि से टमाटर, विंग एवं ट्रिप सिंचाई पद्धति से बैगन एवं मिर्च लगाया गया है। स्टैकिंग विधि से टमाटर की खेती करने से उत्तम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि इस विधि से टमाटर के पौधों को सहारा देकर रस्सी जी.आई. ठार से पौधों को बांध देते हैं, जिससे पौधों में लगे फल मिट्टी के संपर्क में नहीं आते। क्योंकि मिट्टी के संपर्क में आने पर टमाटर के फलों में सहन (फल सहन) पैदा हो जाती है। खासतौर पर खरीफ मौसम में जिससे उत्पादन में कमी के साथ माथ गुणवता भी खराब होने लगती है। यदि किसान टमाटर की खेती सहारा देकर (स्टेकिंग) पद्धति से नहीं करते हैं तो पैदावार में लगभग 30-35% प्रति हेक्टेयर कमी आ जाती है। हमारे जिले के जो भी किसान टमाटर की खेती व्यवसायिक स्तर पर करना चाहते हैं, वे महारा देने के लिए टमाटर जिस कतार में लगे हैं। उस कतार में 5 मीटर के अन्तराल पर 2 मी. ऊंचे बाँस लगा दें फिर इन बाँसों में 3-4 पतले तार इस प्रकार से बांधते हैं कि पहला तार जमीन से लगभग 45 सेमी ऊंचाई पर रहें एवं शेष तार 30-30 सेमी की ऊंचाई पर इस तरह बांधते हैं कि एक मण्डप जैसी आकृति बन जाये। इन तारों में मुतली बांधकर मुतली के नीचे जाने वाले छोर पर छोटी-छोटी खुटियाँ बाँधकर उस ख़ुदी के पौधे के बगल में लगा देते हैं जिनसे पौधे मुतली के महारे ऊपर पड़ सके।
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सब्जी फसल में मल्चिंग के कारण बराबर आवश्यकतानुसार नमी बनी रहती है साथ ही खरपतवार की समस्या नहीं रहती है। मल्चिंग के द्वारा फसलों में उगने वाले खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। मन्दिगमिवर प्लास्टिक पनी धान के पैरा, पलाश के पत्ते, आदि से कर खरपतवार नियंत्रित किया जा सकता है। मल्चिंग के पश्चात् दिप सिंचाई पद्धति भी एक आवश्यक पहलू है। खुला पानी देने से फसल में जितनी मात्रा में फसल को पानी की आवश्यकता होती है उससे अधिक या कम मिल पाता है परंतु दिप सिंचाई पद्धति में फसल के प्रत्येक पौधे को उसकी आवश्यकतानुसार ही पानी मिलता है। पि सिंचाई पद्धति से खुना पानी देने पर लगभग 5 गुना पानी अधिक लगता है।