कृषि वैज्ञानिकों ने कारंजा में मशरूम उत्पादन का दिया गया प्रशिक्षण

कृषि वैज्ञानिकों ने कारंजा में मशरूम उत्पादन का दिया गया प्रशिक्षण

rafi ahmad ansari
बालाघाट। कृषि विज्ञान केन्द्र बड़गांव द्वारा बालाभाऊ देवरस सरस्वती शिशु मंदिर/मा.वि. कारंजा, लांजी में बालासाहब जी देवरस, भाऊराव जी देवरस (विद्या भारती प्रणेता) के जयंती समारोह पखवाड़ा के अंतर्गत कृषि संगोष्ठी, प्राकृतिक खेती एवं मशरूम उत्पादन पर प्रशक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. आर.एल. राऊत ने प्राकृतिक खेती पर अपने विचार रखते हुए किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की और प्राकृतिक खेती के लिए प्रति किसान कुछ हिस्से में करें इसके लिए भी उन्हें प्रेरित किया गया। कार्यक्रम का संयोजन सेवान्यास के सदस्य  रामेष्वर जी मटाले एवं संचालन एवं समन्वय विद्यालय के प्राचार्य देवेन्द्र गौतम द्वारा किया गया।

इस दौरान डॉ राउत ने किसानों को अमृतपानी, दशपर्णी, जीवामृत एवं गोमूत्र से कीटनाशक बनाने की विधियों को बताया। आपने प्राकृतिक खेती के लाभ बताये तथा जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत, दशपर्णी, नीमास्त्र आदि बनाने की विधि किसानों को बताया तथा यह भी समझाया कि भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखना एवं पर्यावरण प्रदृषित होने से बचाने हेतु कृषकों को प्राकृतिक खेती अपनाना आवष्यक हैं। इसके साथ ही डॉ. राऊत ने मषरूम के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मषरूम का उत्पादन कर ग्रामीण अंचल के युवा/युवतियां स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं। मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत शुरू किया जा सकता हैं। मषरूम छतरी, कुकुरमुत्ता, खुंभी या पिहरी आदि नामों से जाना जाता हैं, जो कि पौष्टिक रोग रोधक, स्वादिष्ट तथा विषेष महक के कारण आधुनिक युग का एक महत्वपूर्ण खाद्य आहार हैं। इसके अतिरिक्त जानकारी दी की मषरूम में लगभग 35-40 प्रतिषत उच्च कोटी का प्रोटीन पाया जाता हैं। जिसका पाचन लगभग 70-75 प्रतिषत होता हैं। इसमें आवष्यक सभी अमीनों अम्ल ल्यूसिन, लाइसिन, मेथियोनिन, वैलीन और आइसोल्यूसिन पाया जाता हैं।

कार्यक्रम में केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. एस.आर. धुवारे ने चना एवं अलसी में खरपतवार प्रबंधन पर जानकारी देते हुए बताया की शुरूआत में बुवाई करने के 2-3 दिन के भीतर पेण्डामेथलिन 30 प्रतिषत दवा 1 लीटर या पेण्डामेथलिन 38.7 प्रतिषत दवा 700 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दिया जाता हैं तो फसल में खरपतवार की समस्या नहीं होती हैं तथा बाद में आवष्यकता पड़ने पर एक बार हाथों से निंदाई किया जा सकती हैं। डॉ. धुवारे ने चना में कीट एवं रोग की जानकारी देते हुए बताया की चने में इल्ली के प्रबंधक हेतु अंग्रेजी के ’’टी’’ आकार की 1.5 से 2 फीट की करीब 18-20 खूंटी चने के खेत में गाड़ देवें जिस पर पंक्षी आकर बैठेगें तथा जैसे ही उन्हें फसल में इल्ली दिखाई देवेगी, उन्हें चुन-चुन कर खाकर उनका नियंत्रण करती रहेगी। इसके अलावा भी यदि चने के खेत में इल्ली दिखाई देती हैं तब शुरूआत में प्रोफेनोफॉस 50 प्रतिषत दवा 350 मि.ली./एकड़ की दर से छिड़काव करें तथा फूल एवं फली बनने की अवस्था में इण्डोक्साकार्ब 14.5 प्रतिषत दवा 160 मि.ली./एकड़ या ईमामेक्टीन बेन्जोएट 5 प्रतिषत दवा 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

मौसम वैज्ञानिक धर्मेन्द्र आगाषे ने मौसम की जानकारी हेतु मेघदूत एवं दामिनी मोबाईल एप्प के विषय में विस्तृत में जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान केन्द्र के श्री जितेन्द्र नगपुरे ने प्रषिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न कराने में विषेष सहयोग किया। उद्यानिकी विभाग से श्री निलेष सुलाखे द्वारा विभागीय योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी। पषुपालन विभाग से पषुपालन को बढ़ावा देने हेतु शासन द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी। कार्यक्रम में सेवान्यास के सदस्यों, कृषकों एवं छात्रों की सक्रिय भागीदारी रही।

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