चने की उन्नत खेती: जानिए उन्नतिशील प्रजातियां और आवश्यक उर्वरकों की मात्रा
ग्वालियर, दलहनी फसलों में चना एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों की कुल पैदावार का लगभग आधा हिस्सा चने से प्राप्त होता है। चने का मुख्य उपयोग दाल-बेसन व हरे चारे का उपयोग सब्जी के रूप में व मिठाईयां बनाने में प्रयुक्त होता है। चने के दानों में 21 प्रतिशत प्रोटीन, 62 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, रेशा, वसा, कैल्शियम, लोहा तथा हरे चने में प्रचुर मात्रा में विटामिन ‘सीÓ पाया जाता है। चना दुधारू पशुओं तथा विशेषकर घोड़ों को खिलाने के काम आता है। इस कारण इसकी दाल को घोड़ा-दाल भी कहते हैं। भारत में कुल उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत चना उतरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान व महाराष्ट्र आदि राज्यों में पैदा होता है।
चने की उन्नतिशील प्रजातियां
कृषि विज्ञान केन्द्र के ग्वालियर प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ राज सिंह कुशवाह के अनुसार चने की उन्नतिशील प्रजातियां:- RVG-202, RVG-203, RVG -204, पूसा मानव, पूसा पारवती एवं पूसा चिकपी -10216। बुवाई के पूर्व बीज को किसी भी फफूंद नाशक से उपचारित अवश्य करें। बीज प्राप्त करने के लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविधालयोंं एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों मे जाकर सम्पर्क करने का कष्ट करें।
चना फसल में आवश्यक उर्वरकों की मात्रा
रासायनिक तत्वों की मात्रा ( कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर) :- नत्रजन 20 किलो , फासफोरस 50 किलो एवं 10 किलो पोटाश साथ ही 8 से 10 टन पकी हुई गबर की खाद प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। सिफारिश के अनुसार तत्वों की पूर्ति हेतु खाद समूह एवं एवं उनकी मात्रा किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर:--समूह-1 :- यूरिया 43 किलो, एस एस पी 313 किलो, एम ओ पी 32 किलो एवं समूह- 2:-- डी ए पी 107 किलो एवं एम ओ पी 32 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें। 1 हेक्टेयर 5 बीघा का होता है। ऊपर दी गई मात्राओं का 5 में भाग देकर 1 बीघा की मात्रा निकाल सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र गवालियर में आकर सम्पर्क करने का कष्ट करें।