गेहूं की फसल को रोग से कैसे बचाएं और ले अच्छा उत्पादन: कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

गेहूं की फसल को रोग से कैसे बचाएं और ले अच्छा उत्पादन: कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

भोपाल, भाकृअप– गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा किसानों को गेहूं फसल में जनवरी माह के दूसरे पखवाड़े के लिए सामयिक सलाह दी गई है। वर्तमान मौसम गेहूं के विकास के लिए काफी अनुकूल है तथा इस वर्ष गेहूं की रिकार्ड पैदावार की उम्मीद की जा रही है। कृषि परामर्श सेवा के अंतर्गत कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को गेहूं एवं जौ की फसल में निम्न कृषि कार्य करने की सलाह दी जाती है।

फसल में कब डालें खाद

किसान भाईयों से अनुरोध है कि देरी से बोई गई फसल में बुआई उपरान्त दी जाने वाली नाइट्रोजन को बुआई के 40 -45 दिन तक फसल में डाल दें।  नाइट्रोजन के समुचित उपयोग के लिए यूरिया को सिंचाई के पहले छिड़का कर डालें। गेहूं में पीलेपन के कई कारण होते हैं।  अगर फसल में पीलापन है तो अत्यधिक नाइट्रोजन (यूरिया )का प्रयोग न करें। साथ ही साथ कोहरे अथवा बादलों वाली अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग रोक दें। गेहूं में बिजाई उपरांत लगभग दो बैग यूरिया (50  किग्रा नाइट्रोजन ) प्रति एकड़ का प्रयोग करें,  जिसकी आधी मात्रा पहली सिंचाई पर एवं आधी मात्रा दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करें। सिंचाई से पूर्व किसान मौसम पर नज़र रखें और यदि वर्षा का पूर्वानुमान हो तो सिंचाई रोक दें, ताकि पानी की अधिकता की स्थिति से बचा जा सके। किसान भाइयों से अनुरोध है कि गेहूं में पत्ती माहूँ (चेपा ) के लिए भी निरंतर निगरानी रखें।  अगर पत्ती माहूँ की संख्या आर्थिक क्षति स्तर ( ई टी एल- 10-15 माहूँ / टिलर ) को पार करती है , तब क्यूनालफोस 25 प्रतिशत ई सी नामक दवा की 400 मिली मात्रा 200 – 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

पीले रतुआ के लिए अपने खेतों में कड़ी निगरानी रखें

पीला रतुआ गेहूं का मुख्य रोग है यह प्रायः उत्तर -पश्चिमी मैदानी क्षेत्र और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है। जनवरी माह में पीला रतुआ के मुख्य रूप से जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब के रूप नगर, नवा शहर, लुधियाना, होशियारपुर, गुरदासपुर, पठानकोट आदि एवं हरियाणा के यमुनानगर, कुरुक्षेत्र ,अम्बाला के आसपास के इलाके में आने की संभावना रहती है।  वर्तमान मौसम की स्थिति जैसे 7 से 17  डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान, सुबह में ओस के साथ धुंध या हल्की वर्षा आदि, पीले रतुआ की बीमारी के अनुकूल हैं। इसलिए , किसानों को सलाह दी जाती है कि वे पीले रतुआ के लिए अपने खेतों में कड़ी निगरानी रखें।  यह रोग पत्तियों और पर्णछद पर पीले रंग की धारियों के रूप में प्रकट होता है और संक्रमित पत्तियों को छूने से उँगलियों पर पीला पाउडर लग जाता है।  रोग छोटे पैच या संक्रमित केंद्र बिंदु से शुरू होता है और अनुकूल जलवायु में तेज़ी से फैलता है। पत्तियों पर पीलापन कई कारणों से हो सकता है जैसे कि खेत में पानी भरना ,पोषक तत्वों की कमी आदि ,लेकिन पीला रतुआ की खास पहचान यह है कि इसमें पीला पावडर बनता है और छूने पर उँगलियों या कपड़ों पर लग जाता है। 

रोग दिखने पर क्या करें और कौन सी दवा डालें

पीला रतुआ के लक्षण दिखने पर निकटतम आईसीएआर संसथान, कृषि विश्विद्यालय,राज्य कृषि विभाग या केवीके में रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर पीला रतुआ की पहचान सुनिश्चित करें और उसके पश्चात् कवकनाशी का छिड़काव करें।  पीला रतुआ की रोकथाम के लिए प्रभावित क्षेत्रों में अनुशंसित कवकनाशी जैसे प्रोपिकोनाज़ोल @0.1  % या टेबुकोनाज़ोल 50 %+ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25 % @ 0.06  % का छिड़काव करें और ज़रूरत पड़ने पर 15  दिनों के बाद दोहराएं।

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