खरीफ फसलों में रोग-कीट व्याधि हेतु सम-समायिकी वैज्ञानिक सलाह
टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के वैज्ञानिक डॉ. बी.एस. किरार, डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. आई. डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा कृषकों को जिले की प्रमुख फसलों में रोग-कीट व्याधि हेतु समसामयिकी सलाह जारी की जा रही है जो इस प्रकार है बर्षा जारी रहने से या भूमि में पर्याप्त नमी होने से सोयाबीन की फसल में नीला भ्रंग/चक्र भृंग (गर्डल बीटल) से पौधों को नुकसान होता है यदि इसकी समस्या दिखाई दे जब तने में 3 गोले बने हो और ऊपर का भाग सूख गया हो तो नियंत्रण हेतु क्विनालफास 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से गोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । एक एकड़ हेतु 600 मि.ली. दवा की मात्रा की आवश्यकता होती है ।
सोयाबीन/उर्द में एंथ्रेक्नोज बीमारी जो पत्तों में कत्थई से लाल रंग के अनियमित आकार के धब्बे से पत्तियां नष्ट हो जाती है तथा एरियल झुलसा रोग जिसमें पूरा का पूरा पौधा मुरझा जाता है के नियंत्रण हेतु टेबुकोनाजोल 250 मि.ली. दवा एक एकड के लिए पर्याप्त रहती है इसमें अथवा टेबुकोनाजोल $ सल्फर 400 ग्राम प्रति एकड अथवा हेक्जाकोनाजोल 200 मि.ली. प्रति एकड अथवा पारोक्लोस्ट्राबिन 200 ग्राम प्रति एकड को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । सरकोस्पोरा पत्ति धब्बा रोग, एरियल ब्लाइट एवं एंथ्रेक्नोज यह सभी रोग एक साथ पौधों में हो सकते हैं इसलिए इनके नियंत्रण के लिए एंथ्रेक्नोज बीमारी के लिए सुझाये गये रासायनिक दवाओं का छिडकाव करना चाहिए । उर्द/सोयाबीन के अलावा अन्य सब्जियों में जैसे टमाटर, अरबी, बैगन, अदरक, लौकी, खीरा और तरोई आदि में भी अल्टरनेरिया झुलसा, पत्ती धब्बा आदि रोगों का प्रकोप होने पर मन्कोजैब $ मेटालेक्जिल की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव कर सकते है ।
पीला चित्तरी धब्बा रोग एवं पीला मोजेक बीमारी को फैलाने वाली सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए खेत में पीला चिपक ट्रेप का प्रयोग कर सकते हैं या खेतों में कीटों के नियंत्रण हेतु लाइट ट्रेप का प्रयोग किया जा सकता है जिससे खेत में कीटो की जनसंख्या का नियंत्रण हो जाता है तथा फसल में आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रहते हैं साथ ही पीला विषाणु रोग से प्रभावित पौधों की जब शुरुआत में संख्या कम होती है तब उनको खेतों से उखाड़कर या प्रभावित अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए । पत्ते खाने वाली इल्लियों के साथ सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर बीटासायफ्लूथ्रिन $ इमिडाक्लोप्रिड की 140 मि.ली. प्रति एकड अथवा थायोमिथोक्साम $ लेम्डा सायहेलोथ्रिन 60 मि.ली. प्रति एकड की दर से छिड़काव करें इस उपाय से तना मक्खी अथवा फल व फली मक्खी तथा बैगन या टमाटर का फल छेदक का भी नियंत्रण हो जाता है ।
पीला रोग की तीव्रता अधिक होने पर थायोमिथोक्साम 25 डब्ल्यू. पी. की 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी का छिड़काव करें । कृषकों को यह भी सलाह दी जाती है कि उनको फेरोमेन ट्रेप (नर कीट आकर्षक जाल) लगाना चाहिए जिससे नर कीटों का नियंत्रण हो जाता है । उर्द/सोयाबीन में या अन्य खरीफ फसलों में चूहों से नुकसान बहुत हो जाता है चूहों के प्रबंधन हेतु गेहूं के आटा $ जिंक फास्फाइट का मिश्रण बनाकर खेत में चूहों के बिलों के पास रखना चाहिए । जब आर्थिक रूप से क्षति स्तर को बीमारी या कीट का प्रकोप हो तभी रासायनिक दवाओं की सही मात्रा का प्रयोग सही शाम के समय और हवा या पानी ना होने पर उपयोग करना चाहिए एक साथ दो दवाओं को मिलाकर छिडकाव नहीं करना चाहिये ।