कैसे बढ़ाएं खरीफ की फसलों में उत्पादकता बढ़ाने, जानिए वैज्ञानिकों के सुझाव 

कैसे बढ़ाएं खरीफ की फसलों में उत्पादकता बढ़ाने, जानिए वैज्ञानिकों के सुझाव 

सागर, खरीफ की फसलों के बावनी का समय शुरू हो चुका है, ऐसे में हम क्या करें कि हमारी फसल कीट-ब्याध रहित रहे और अच्छा उत्पादन भी मिले। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र सागर के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए कुछ सलाह दी है, जिसे अपनाकर किसान भाई फसल में अच्छा उत्पादन ले सकते हैं और मुनाफा कमा सकते हैं, जानिए क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक-

1. रबी की फसल कटाई के बाद खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई कर जमीन को खुला छोड़ दें ताकि सूर्य की तेज धूप के कारण इसमें छुपे विभिन्न हानिकारक कीटों के अंडे तथा नींदा के बीज व कंद नष्ट हो जाएंगे साथ ही मृदा में वायु संचार व जलधारण क्षमता में वृद्धि होगी।

2. रबी फसलों की कटाई के बाद मानसून से पहले विभिन्न खेतों से मृदा नमूना एकत्र कर जांच हेतु प्रयोगशाला भेजें व मृदा स्वास्थ्य पत्रक में दी गई अनुशंसा अनुसार खाद व संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग कर टिकाऊ तथा वैज्ञानिक खेती करें।

3. ग्रीष्मकालीन उड़द, मूंग एवं सब्जियो में सफेद मक्खी एवं अन्य रस चूसक कीटों के नियंत्रण हेतु एसिटामप्रीड 20 एस पी एक ग्राम प्रति लीटर अथवा बीटासाईफ्लूथ्रीन, इमिडाक्लोप्रीड) 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

4. अरहर उत्पादन की कम लागत एवं जल संरक्षण के साथ भरपूर पैदावार देने वाली पद्धति, अरहर सघनीकरण प्रणाली् हेतू नर्सरी पहले से तैयार करें।

5. मृदा उर्वरता में वृद्धि करने हेतू हरी खाद - सनई या ढेंचा या लोबिया या उर्द मूंग की बुबाई मई माह के अंत तक करें।

6. खेत से दीमक को पूरी तरह से नष्ट करने हेतू खेत की मेंढो या आस-पास बने बमीठों  को नष्ट करें ।

7.  खेत की तैयारी करते समय ध्यान दे की खेत के ढाल की विपरीत दिशा में जुताई एवं बखरनी करें।

8. खरीफ  फसलों की बुबाई के पुर्व निम्न बातों का ध्यान दे- सही फसल का चुनाव, उन्नत किस्म का चयन, बीजोपचार, दवाओं, जैव उर्वरक, उपयुक्त नींदानाशक  एवं  मृदा स्वास्थ्य पत्रक आधारित उर्वरक आदि की व्यवस्था बुबाई के कम से कम एक सप्ताह पूर्व अवश्य कर लें।

9. खडी फसल में (बुबाई या रोपाई के बाद ) डी.ए.पी., सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश, जिंक सल्फेट का प्रयोग कदापि नहीं करें। इन उर्वरकों का प्रयोग बुबाई के पहले या बुबाई के साथ या रोपाई के पहले आधार रूप में किया जाता है।

मानसून की समान्य स्थिति

1. सोयाबीन की बुवाई 25 जून से 05 जुलाई के बीच मानसून आने पर सोयाबीन की उन्नत किस्मे जे.एस.2069, जे.एस.2098, आर.वी.एस. 2004-1, आदि की बुवाई पहले करें बाद में 05 जुलाई से 10 जुलाई के बीच जे.एस 93 05, जे. एस 2029, जे.एस. 2034, जे.एस. 9560, आदि की बुवाई करें।

2. सोयाबीन मे मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उर्वरक 20: 60: 40: 20 एन: पी: के: एस: किलो/हेक्टेयर बीज को राइजोबियम और पी एस बी कल्चर 10 ग्राम/किग्रा बीज का प्रयोग करना चाहिए।

3. मिश्रित फफूंद नाशक थायरम $ काबोज़्क्सिन 2 ग्राम/किग्रा बीज या थायरम $ कार्बेन्डाजिम (2: 1) 3 ग्राम/किग्रा बीज या ट्राइकोडर्मा विरिडे 10 ग्राम/किग्रा बीज के साथ बीजोपचार करें।

4. थाइमेथोक्साम 30 डब्ल्यूपी 10 ग्राम/किग्रा बीज के साथ बीज उपचार जहां स्टेम मक्खी, सफेद मक्खी और पीला मोजेक वर्ष दर वर्ष होता है।

विलंबित मानसून की स्थिति

-कूंड़ एवं नाली विधि से बुवाई, करें तथा फफूदँनाशक 02 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को राइजोबियम व पी. एस. बी. कल्चर की 10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से निवेशित (उपचारित) करना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उवज़्रक (20: 60: 40: 20 एन: पी: के: एस कि.ग्रा. प्रति हे.) का प्रयोग, जल उपलब्धता पर हल्की सिंचाई एवं कषज़्ण विधि (डोरा, कुल्फा, बक्खर) खरपतवार प्रबंधन करना चाहिए।

कूंड़ एवं नाली विधि - उन्नत किस्म के साथ (जे.एस - 2034, जे.एस -9560, जे.एस --9305, जे.एस -2034) कूड एवं नाली विधि से बुवाई, फफूदँनाशक 02 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को राइजोबियम व पी. एस. बी. कल्चर की 8-10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से निवेशित (उपचारित) करना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उर्वरक (20: 60:20 न.फ.पो. कि.ग्रा. प्रति हे.) का प्रयोग, जल उपलब्धता पर हल्की सिंचाई एवं कर्षण विधि (डोरा, कुल्फा, बक्खर) खरपतवार प्रबंधन करना चाहिये।

नमी संरक्षण के लिए इंटरकल्चरल ऑपरेशन 

-सूखे की स्थिति में - फसल की वृद्धि की अवधि के दौरान यदि आवश्यक हो तो सिंचाई करें साथ ही मिट्टी में नमी संरक्षण के लिए इंटरकल्चरल ऑपरेशन करना चाहिए।

देर से मानसून की स्थिति में उर्द और मूंग की बुवाई

-उर्द - एवं मूंग की बुवाई समान्यत: 05 जुलाई के बाद 20 से 25 जुलाई तक करना चाहिये। उन्नत किस्म जेयू-86, पीयू-31,  पीयू-19,  पीय-1, आईपीयू-94.1  के साथ कूड एवं नाली विधि से बुवाई, फफूंदनाषक 02 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को राइजोबियम व पी. एस. बी. कल्चर की 10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से निवेशित (उपचारित) करना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उर्वरक (20: 60:20 न.फ.पो. कि.ग्रा. प्रति हे.) का प्रयोग, जल उपलब्धता पर हल्की सिंचाई एवं कर्षण विधि (डोरा, कुल्फा, बक्खर) खरपतवार प्रबंधन करना चाहिये।

-मूंग - उन्नत किस्म पी.डी.एम.-139ए टी.जे.एम.-3, जे.एम.-721, विराट शिखा पी.डी.एम.-131, एच.यू.एम.-11, एच.यू.एम.-16 के साथ कूड एवं नाली विधि से बुवाई, फफूंदनाषक 02 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को राइजोबियम व पी. एस. बी. कल्चर की 8-10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से निवेशित (उपचारित) करना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उर्वरक (20: 60:20 न.फ.पो. कि.ग्रा. प्रति हे.) का प्रयोग, जल उपलब्धता पर हल्की सिंचाई एवं कर्षण विधि (डोरा,कुल्फा,बक्खर) खरपतवार प्रबंधन करना चाहिये। 

-मूंग, में उर्दं एवं सोयाबीन फसल के साथ अरहर एवं मक्का तथा ज्वार की अंन्तरवर्ती फसल बुवाई करना चाहिए। 
-अरहर की अधिक उत्पादन देने वाली किस्में जैसे राजीव लौचन, टी.जे.टी. 501, आई.पी.पी.एल 87, तथा राजेशवरी किस्मों का प्रयोग करें तथा बीज उपचार के बाद जून के आखिरी सप्ताह तथा जुलाई प्रथम सप्ताह तक लाईन से बुवाई करें। 

धान

कम अवधि की उन्नत किस्म जैसे (जे.आर. 201, जे.आर 206. जे.आर. 81, जे.आर. 676, एम.टी.यू 10-10, दन्तेश्वरी, सहभागी, तथा मध्यम अवधि की किस्में क्रांति,महामाया,आई.आर.36, एवं 64 पूसा बासमति एक तथा पूसा सुगंधा 5, पी.एस.-3, पी.एस.-4, पी.ए.6129, पी.ए.6201 की पंत्तियों में बुवाई या रोपाई करें। एवं फफूंनाषक 02 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को राइजोबियम व पी. एस. बी. कल्चर की 8-10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से निवेशित (उपचारित) करना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर संतुलित उर्वरक (100: 60: 40 न.फ.पो. कि.ग्रा. प्रति हे.) का प्रयोग एवं उपयुक्र्त नीदानाषक दवा से खरपतवार का प्रबंधन।