रैबीज एक घातक रोग, उपचार से बचाव/रोकथाम बेहतर
> डॉ भावना गुप्ता
> डॉ रणविजय सिंह
> डॉ रश्मि कुलेश
> डॉ. ब्रजमोहन सिंह धाकड
> ड़ॉ शिवानी मुडोतिया
-पशु जन स्वास्थ्य एवं महामारी विभाग
पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, जबलपुर
-नानाजी देशमुख पशु चिकित्षा विज्ञान विश्वविद्यालय (म.प्र)
पूरे विश्व में 28 सितम्बर को विश्व रैबीज दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस बीमारी की रोकथाम हेतु सबसे पहली वैक्सीन महान वैज्ञानिक लुईस पास्वर द्वारा 1985 में बनाई गई और उनकी याद में तथा जनमानस में रैबीज के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है।
इसके बचाव के लिए टीकाकरण सबसे महत्व पूर्ण है तथा मनुष्यों में इस बीमारी की रोकथाम हेतु हमे इस बीमारी को कुत्तों/ पशुओं में रोकना होगा, भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से कुत्ते के काटने से फैलती है ।
इसका विषाणु संक्रमित पशुओं की लार से स्वस्थ्य पशु और मनुष्यों को फैलता है। आकड़ों के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 20- हज़ार व्यक्तियों की मृत्यु रैबीज के कारण होती है, जिनमे से ज्यादातर बच्चे हंै, यह एक बहुत प्राचीन बीमारी है।
जुनोटिक महत्व की बीमारियों में रैबीज एक महत्वपूर्ण बीमारी है। यह एक विषाणु जनित रोग हैं एवं मुख्य रूप से कुत्तों से या जंगली जानवरों के काटने/खरोंचने से मनुष्यों को फैलता है, इसका विषाणु संक्रमित पशुओं की लार से स्वस्थ्य पशु और मनुष्यों को फैलता है। आकड़ों के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 20- हज़ार व्यक्तियों की मृत्यु रैबीज के कारण होती है, जिनमे से ज्यादातर बच्चे हंै, यह एक बहुत प्राचीन बीमारी है, किन्तु हम अभी तक इसका उपचार नहीं ढूंढ सके हंै। इसके बचाव के लिए टीकाकरण सबसे महत्व पूर्ण है तथा मनुष्यों में इस बीमारी की रोकथाम हेतु हमे इस बीमारी को कुत्तों/ पशुओं में रोकना होगा, भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से कुत्ते के काटने से फैलती है। अत: कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। इसके साथ साथ कुत्तों का टीकाकरण, पंजीकरण, आम जन में जागरूकता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसी उद्देश्य से पूरे विश्व में 28 सितम्बर को विश्व रैबीज दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस बीमारी की रोकथाम हेतु सबसे पहली वैक्सीन महान वैज्ञानिक लुईस पास्वर द्वारा 1985 में बनाई गई और उनकी याद में तथा जनमानस में रैबीज के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है। यहां पर कुछ महत्वपूर्ण बाते एवं सावधानियां जो की हमें कुत्ते के काटने पर रखनी चाहिए वो इस प्रकार हैं...
कुत्ते के काटने पर क्या सावधानी बरतें
1. काटने से हुए घाव को बहते हुए पानी एवं साबुन से कम से कम 15-20 मिनिट तक धोएं।
2. तुरंत चिकित्सक की सलाह लें एवं टीकाकरण शुरू करवाएं।
3. यदि संभव हो तो जिस जानवर ने काटा है, उसकी निगरानी करें तथा उसे 10-12 दिन तक देखें की कहीं उसमे रेबीज के लक्षण जैसे पागलपन, आक्रामकता, सभी को काटने की प्रवृत्ति या पेरालिसिस आदि इसके साथ साथ बहुत ज्यादा मात्रा में लार का रिसाव तो नहीं हो रहा है।
4. यदि दुधारू पशु को कुत्ते ने काटा है तब भी पशु का पोस्ट बाइट टीकाकरण करे तथा दूध को अच्छी तरह उबालकर ही पिएं।
5. यदि आपने कुत्ते को पाला है तो उनका टीकाकरण समय समय पर करवाएं इस तरह से आप अपनी एवं अपने परिवार के साथ साथ अपने पालतू एवं समाज की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हंै।
6. यदि किसी ने पालतू स्वान रख रखा है तो परिवार के सदस्यों को भी प्रोफाइलेक्टिक टीकाकरण करवाना चाहिए।
कुछ करने से बचें-जैसे
1. किसी भी तरह की झाड़ फूंक आदि से बचना चाहिए।
2. घाव पर हल्दी, तेल, मिर्ची आदि नहीं लगानी चाहिए।
3. घाव में टांके नहीं लगाना चाहिए यदि आवश्यक हो तब भी एक से
दो टीके (पोस्ट बाईट) के बाद ही टाके लगवाए।
4. बिना किसी देरी के चिकित्सक की सलाह जरूर ले तथा डॉग बाइट का इलाज भी डब्लूएचओ के द्वारा निर्धारित केटेगरी के हिसाब से शुरू करना चाहिए।
यहां पर वैक्सीन के सही प्रभाव के लिए यह भी आवश्यक है की उसे रखने में कोल्ड चैन को मेंटेन किया गया हो। इस तरह सामाजिक जागरूकता के साथ संयुक्त प्रयास से ही रेबीज से लड़ा जा सकता है।