गाय- भैंसों को कैसे बचाएं दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) से

गाय- भैंसों को कैसे बचाएं दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) से

डॉ. शिवम सिंह मेहरोत्रा
डॉ. आर.के बघेरवाल
डॉ. हेमंत मेहता
डॉ. मुकेश शाक्य
पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय महू
दुग्ध-ज्वर  गाय या भैंस में ब्यौने से कुछ समय पूर्व या बाद (24-48 घंटों) में होने वाली चयापचय संबंधी एक आम बीमारी है। दुग्ध-ज्वर  तब होता है जब गायों के शरीर में कैल्शियम का स्तर बहुत कम हो जाता है, जिससे उनके दूध उत्पादन में समस्या होती है। इससे पशु में कैल्शियम की कमी होती है। मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। शरीर में रक्त का बहाव काफी धीमा हो जाता है। अंतत: पशु थक जाता है और बेहोश हो जाता है।  पशु गर्दन और पेट मोड़ कर एक तरफ बैठा रहता है, पशु के शरीर का तापमान समान्य से कम हो जाता है और शरीर ठंडा हो जाता है। 
दुग्ध ज्वर अधिक दूध देने वाली गायों-भैसों में 6 से 12 वर्ष की उम्र में तीसरे से सातवें व्यांत में ज्यादा देखने को मिलता है। गाय - भैंस के खून में सीरम कैल्शियम का औसत 10-12 मिलीग्राम प्रति डेसी-लीटर होता है। जब कैल्शियम 7 मिलीग्राम प्रति 100 मिग्रा. से कम हो जाता है, तो दुग्ध ज्वर के लक्षण दिखाई देते हैं। रक्त में कैल्शियम की कमी इसका कारण है। दो मुख्य कारणों से रक्त में कैल्शियम की कमी होती है।
व्याने के बाद कोलेस्ट्रम के साथ बहुत सारा कैल्शियम शरीर से बाहर आ जाता है। कोलस्ट्रम में रक्त से 12-13 गुना अधिक कैल्शियम होता है। व्यौने के बाद अचानक कोलेस्ट्रम (खीस) निकल जाने के बाद हड्डियों से शरीर को तुरंत कैल्शियम नहीं मिल पाता है।
व्याने के बाद यदि पशु को कम आहार दिया जाए दो अमाशय व आंत अपेक्षाकृत कम सक्रिय होने से कैल्शियम का अवशोषण काफी कम होता है। शरीर में मांसपेशियों में सामान्य तनाव बनाए रखने के लिए रक्त में कैल्शियम-मैग्नेशियम का अनुपात 6:1 होना चाहिए। सामान्य रूप से रक्त के अंदर कैल्शियम और फास्फोरस का स्तर 2:1 होता है।
लक्षण:  दुग्ध ज्वर के लक्षणों को तीन अवस्थाओं में बांटा गया है: प्रथम अवस्था: यह व्याने से पहले की उत्तेजित अवस्था है, जिसके लक्षण निम्नलिखित है। अधिक संवेदनशीलता, उत्तेजना, टेटनस जैसे लक्षण, सिर को इधर-उधर हिलाना, जीभ बाहर निकालना और दांत किटकिटाना, शरीर में अकडऩ, आशिंक लकवा जिसके कारण पशु गिर जाता है। चारा-दाना नहीं खाना, तापमान समान्य से थोड़ा बढ़ा हुआ।

द्वितीय अवस्था

पशु अपनी गर्दन को पिछले भाग की ओर मोड़कर निढाल सा बैठा रहता है, पशु खड़ा नहीं हो पाता है। शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है। जिससे शरीर ठंडा पड़ जाता है। आंखें सुख जाती है। आँख की पुतली फैलकर बड़ी हो जाती है। आँखें झपकना बंद हो जाता है। अमाशय की गति काफी कम हो जाती है जिससे कब्ज होती है।रक्त चाप कम हो जाता है।
तृतीय अवस्था: इस अवस्था में पशु लेटा रहता है, इमसें पशु बेहोशी की हालत में आ जाता  है। शरीर का तापमान बहुत ज्यादा कम हो जाता है। नाड़ी अनुभव नहीं होती तथा हृदय ध्वनि भी सुनवाई नहीं पड़ती है हृदय गति बढ़कर 120 प्रति मितं तक पहुँच जाती है।पशु के बैठे रहने की वजह से अफारा (पेट फूलना) भी हो जाता है।
 उपचार: दुग्ध-ज्वर  का उपचार करने के लिए, आपको गायों को एक विशेष आहार देना चाहिए जिसमें कैल्शियम और विटामिन डी की मात्रा अधिक हो। इसके अलावा, आपको अपनी गायों की नियमित रूप से जांच करानी चाहिए। इसकी सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा कैल्शियम की आपूर्ति करना होता है। इसे इंजेक्शन के रूप में शरीर में प्रवेश किया जाता है। इसके लिए कैल्शियम ग्लूकोनेट को कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट के रूप में दिया जाता है। रोग का स्पष्ट निदान जब ऐसे पशु को कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट का इंजेक्शन सिरा में दिया जाता है और वह तत्काल स्वस्थ हो जाता है।                  इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह और समय रहते उपचार कराना चाहिए। क्योंकि यदि पशु एक बार तृतीय अवस्था में पहुँच जाता है तो मांसपेशियों में लकवा हो जाता है। इसके बाद पशु को बचाना काफी मुश्किल हो जाता है।

रोकथाम

दुग्ध-ज्वर  के मामलों को रोका जा सकता है, दुग्ध-ज्वर  से बचाव करने के लिए,  गायों को स्वस्थ आहार देना चाहिए और उनके दूध उत्पादन को नियंत्रित रखना चाहिए। सुनिश्चित करें कि गर्भावस्था के अंतिम चरण में गायों के आहार में मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा हो । शुष्क अवधि के दौरान कैल्शियम का सेवन 50 ग्राम/दिन से कम (आदर्श रूप से 20 ग्राम/दिन से कम) रखा जाना चाहिए ताकि कैल्शियम के अवशोषण और संचलन में सुधार हो सके।
हालांकि, ब्याने से ठीक पहले आहार में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाई जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जोखिम की अवधि के दौरान पर्याप्त कैल्शियम उपलब्ध रहे। इसके अलावा, आपको गाय- भैसों की नियमित रूप से जांच करानी चाहिए और उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।

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