तेवड़ा खरपतवार मानव शरीर के लिए घातक : वैज्ञानिक

तेवड़ा खरपतवार मानव शरीर के लिए घातक : वैज्ञानिक

kamlesh pandey
छतरपुर, तेवड़ा खरपतवार मानव शरीर के लिए घातक है। इसमें पाया जाने वाले न्यूरोटॉक्सिन का शरीर में संचयन होने पर मनुष्य में लकवा जैसी घातक बीमारी होती है। इसीलिए तेवड़ा खरपतवार को जड़ से नष्ट करने के लिए जरूरी है कि खेत में ही इसका उन्मूलन किया जाए। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय नौगांव द्वारा छतरपुर जिले के कृषकों से अपील की गई है कि चने की फसल में उपजे तेवड़ा खरपतवार जिसे घास मटर के नाम से भी जाना जाता है, को नष्ट करना मानवीय जीवन के लिए अनिवार्य है। 

कृषक जिनकी चने की फसल 60 से 70 दिन की अवस्था पर है उनके लिए इस समय तेवड़ा खरपतवार को उखाड़कर फेंकने का सबसे उचित समय है। इस अवस्था में खरपतवार में पुष्पन एवं फलन की प्रक्रिया प्रारंभ हो रही होती है। इसीलिए इसे जड़ से समाप्त करने के लिए यह अवस्था उपयुक्त है। खरपतवार को समाप्त करने से कृषक के चने की फसल साफ एवं स्वच्छ होती है और तेवड़ा खरपतवार रहित उपार्जन को बेचने पर कृषकों को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है। 
चने की खड़ी फसल में तेवड़ा खरपतवार के प्रकोप की स्थिति है तो हाथों द्वारा प्रथम निंदाई 40 से 45 दिन की अवस्था पर और द्वितीय निंदाई 60 से 65 दिन क अवस्था पर जरूर करें।

ऐसे कृषक जिनकी चना फसल में तेवड़ा का पौधा प्रतिवर्ष दृष्टिगत होता है वह फसल चक्र पद्धति अपनाएं और खरपतवार के उपयुक्त प्रबंधन के लिए रासायनिक नींदानाशक दवा फ्लूक्लोरालीन (वैसालीन) 50 प्रतिशत, ईसी का 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्वों प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय पर प्रयोग करें। ऐसा करने से तेवड़ा खरपतवार पर 80 प्रतिशत तक नियंत्रण पाया जा सकता है। इस प्रयोग से आगामी चने की फसल में खरपतवार आने की संभावना न्यूनतम रहती है।

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, जनपद पंचायतों के सीईओ और विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारियों को संबोधित पत्र में अवगत कराया गया है कि 15 मार्च से चने के साथ-साथ मसूर, सरसों का उपार्जन शुरू होगा। उपार्जन केन्द्रों से समर्थन मूल्य पर तेवड़ा रहित चना किया जाएगा। इसके लिए किसानों को खेतों से तेवड़ा खरपतावार के पौधे को नष्ट करने के लिए जागरूक बनाएं।
शीलेंद्र सिंह, कलेक्टर, छतरपुर