फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए बडे काम का है कच्चा कोयला, जानिए बनाने और उपयोग की ​विधि 

फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए बडे काम का है कच्चा कोयला, जानिए बनाने और उपयोग की ​विधि 

भोपाल। खेती में पौधों का विकास फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जिसमें पानी, मिट्टी, धूप ये सब आवश्यक पहलू हैं। लेकिन इनमें मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि पौधे नाइट्रोजन, फास्पफोरस एवं पोटैशियम को मिट्टी से प्राप्त करते हैं। पौधों को इनकी काफी मात्रा में जरूरत होती है। ऐसे में पौधे की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में खाद का छिड़काव किया जाता है। कच्चा कोयला मिटटी के लिए बहुत काम की चीज है, जिससे पौधे में काफी अच्छी ग्रोथ देखने को मिलेगी।

यह तकनीक लगभग 2,000 साल पुरानी

बायोचार बनाने व प्रयोग करने की यह तकनीक लगभग 2,000 साल पुरानी है। इसके द्वारा कृषि अपशिष्ट पदार्थों को मृदा सुधारक के रूप में बदल दिया जाता है, जो कि कार्बन को मृदा में पकड़े रखता है। यह खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है और मृदा की जैव विविधता में वृद्धि करता है। इस तकनीक द्वारा वनों की कटाई पर भी रोक लगती है। बायोचार बनाने की प्रक्रिया में अत्यधिक बढ़िया छिद्रपूर्ण चारकोल बनता है, जो मृदा में पोषक तत्व और पानी की उपलब्धता को बनाए रखने में मदद करता है। गंभीर रूप से कमजोर मृदा वाले क्षेत्रों में, जहां पर कार्बनिक पदार्थों, पानी व उर्वरकों की कमी हो वहां पर, खाद्य सुरक्षा और कृषि भूमि में फसल-विविधता बढ़ाने के लिए बायोचार एक दुर्लभ काबर्निक संसाधन है।। लगभग सभी प्रकार की मृदा में बायोचार का उपयोग सुधारक के रूप में किया जा सकता है। शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों की कम वर्षा पोषक तत्व वाली मृदा में बायोचार के प्रयोग का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है। विकसित बायोचार प्रौद्योगिकी द्वारा मृदा की उर्वरता और मृदा में कार्बन जकड़ने के लक्ष्य के लिए आई.बीआई. (इंटरनेशनल बायोचार इनीशिएटिव) ने पर्याप्त दिशानिर्देश भी जारी किए हैं।

बायोचार द्वारा मृदा में कार्बन संचयन

यह सर्वविदित है। कि वायुमंडलीय कार्बनडाईऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए बायोचार एक प्रबल तकनीकी है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2100 तक बायोचार द्वारा लगभग 400 अरब टन कार्बन का संचयन मृदाओं में हो सकता है। इससे वायुमंडलीय कार्बनडाइऑक्साइड की सांद्रता को 37 पी.पी.एम. तक कम किया जा सकता है। इसके साथ-साथ बायोचार बनाने से रोगजनक सूक्ष्मजीवों को भी दूर रखा जा सकता है। मृदा में भारी धातुओं की विषाक्तता के स्तर में भी कमी लाई जा सकती है। बायोचार जीवाश्म ईंधन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में भी कार्य कर सकता है। परंतु कृषि में एक धीमी रिहाई उर्वरक व कार्बन संचयक के रूप में ही इसके प्रयोग पर बल दिया जाता है।

बायोचार मिट्टी की पोषक तत्वों के अवशोषण, जल धारण क्षमता को बढ़ाता है

पौधों की अच्छी उपज के लिए बायोचार बड़ा उपयोगी माना जाता है। यह एक प्रकार का कोयला है। जो बेहद कम ऑक्सीजन के साथ तैयार किया जाता है। यह मिट्टी की पोषक तत्वों के अवशोषण और जल धारण क्षमता को बढ़ाता है। इसलिए इसे पौधों का टॉनिक भी कहा जाता है।

बायोचार तैयार करने की विधि

बायोचार को तैयार करने के लिए लकड़ी, पत्तियां, जैविक अवशेष या खाद जैसे कार्बनिक पदार्थों को गर्म करके बनाया जाता है। कार्बनिक पदार्थों से कोयला बनाने की इस प्रक्रिया को पायरोलिसिस कहा जाता है। पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सामग्री को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे चारकोल जैसी सामग्री बनती है जिसे बायोचार कहा जाता है। बायोचार यानी कच्चे कोयले का उपयोग विशेष रूप से मिट्टी को बेहतर बनाने के लिए किया गया है।

मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है बायोचार

इसके कई फायदे हैं। जैसे कि यह मिट्टी की जल सोखने की क्षमता को बढ़ा देती है। यह पानी और पोषक तत्व धारण क्षमता को बढ़ाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। बायोचार के उपयोग से पौधों की जड़ों को मिट्टी में गहराई तक बढ़ने में मदद मिलती है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है, 

कैसे बनाएं बायोचार

इसमें जैविक सामग्री, जैसे गाय का गोबर, वर्मीकम्पोस्ट, कोकोपीट या प्राकृतिक उर्वरक आदि का 50-50 मिश्रण बनाएं। फिर इसे 10-14 दिनों के लिए अलग रख दें। इसके बाद यह तैयार हो जाता है। अब इसे आप मिट्टी में छिड़काव कर सकते हैं।  इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है और पौधों के विकास को बढ़ावा मिलता है। 

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