कठहा स्कूल के पुराने छात्रों ने पेश की आत्मनिर्भरता की अनोखी मिसाल
लॉकडाउन में वापस गांव लौटे कठहा स्कूल के पुराने छात्रों ने जनसहयोग से 11 लाख एकत्र कर विद्यालय से लगी जमीन खरीदी और शाला विकास के लिए कर दी दान
दीपक गौतम
सतना, जन्मभूमि की माटी और मां के दूध का कर्ज अदा करते आपने कई बार देखा-सुना होगा। लेकिन शिक्षा के मंदिर का कर्ज उतारते नहीं। सतना जिले के अमरपाटन तहसील में कठहा स्कूल के पुराने छात्रों और ग्रामीणों ने जनभागीदारी और आत्मनिर्भरता की अनोखी मिसाल प्रस्तुत की है। जिसे हर कोई सुनकर वाह-वाह कर रहा हैं। आत्मनिर्भर भारत की यह तस्वीर सतना जिले के छोटे से गांव कठहा से निकल कर आई हैं। जहां कोविड-19 के संक्रमण काल के दौरान लॉकडाउन में वापस अपने गांव लौटे कठहा स्कूल के पुराने छात्रों ने अपने स्कूल के लिए जनसहयोग से 11 लाख रुपए की राशि एकत्र कर विद्यालय से लगी हुई जमीन खरीदी और स्कूल के निर्माण कार्यों के लिए दान कर दी।
अच्छे ओहदे पर पुराने विद्यार्थी: शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कठहा में पढऩे वाले छात्र सांसद, विधायक, राष्ट्रीय कंपनियों एवं भाभा अनुसंधान जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में अच्छे ओहदे पर रह चुके हैं। इसी स्कूल से पढ़ चुके हिंदुस्तान पेट्रोलियम के रीजनल मैनेजर कृपाशंकर गौतम, आईआईटी में प्रो. आरके साकेत, भाभा अनुसंधान के वैज्ञानिक रोहित द्विवेदी, कोषालय अधिकारी देवेंद्र द्विवेदी जब लॉकडाउन में अपने गांव लौटे तो उन्होंने सभी पुराने छात्रों और ग्रामीणों की सहायता से अपने स्कूल के लिए कुछ योगदान देकर शिक्षा मंदिर का ऋण चुकता करने की बात सोची।
जन सहयोग की अनोखी मिसाल
कठहा गांव से लगे आठ गांव के लोगों द्वारा अपने विद्यालय के लिए दिए गए योगदान और सामूहिक प्रयास की हर कोई सराहना कर रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग और प्रशासन को भी अब कठहा स्कूल में अतिरिक्त कक्ष बनाने और बच्चों के खेल मैदान विकसित करने का रास्ता साफ हो गया है। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कठहा के पुरा छात्रों और ग्रामीणों ने आत्मनिर्भरता और जन सहयोग की अनोखी मिसाल प्रस्तुत करते हुए यह संदेश भी दिया कि हर सक्षम व्यक्ति को अपने शिक्षा का कर्ज अदा करना चाहिए। जिस स्थान से आपका भविष्य संवरा है, वहां से आगामी पीढ़ी का भी भविष्य निरंतर उज्जवल होता रहे।
स्कूल के लिए खरीदी एक एकड़ से ज्यादा जमीन
कोरोना काल में अपने गांव वापस लौटे पुराने छात्रों ने आपस में निर्णय कर स्कूल के बगल की एक एकड़ निजी भूमि क्रय करने का निर्णय लिया। ग्रामीणों और पुराने छात्रों के अंशदान के जन-सहयोग से साढ़े दस लाख की राशि एकत्र हो गई। कठहा स्कूल के विकास के लिए मातृभूमि गौरव सेवा संकल्प समिति नामक ट्रस्ट का गठन कर विधिवत पंजीयन कराया और स्कूल से लगी एक एकड़ 9 डिस्मिल कृषि योग्य जमीन निजी काश्तकार विवेक दहायत से साढ़े दस लाख रुपए में खरीदकर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) अमरपाटन के माध्यम से कठहा विद्यालय के नाम सुपुर्द कर दी।
खल रही थी मैदान की कमी
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कठहा की स्थापना वर्ष 1932 में हुई थी। आसपास के लगभग 8 गांवों के बच्चे यहां पढऩे आते हैं। छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अतिरिक्त कक्ष और खेल मैदान की सख्त जरूरत है। स्कूल की जगह संकीर्ण हो चुकी है और शासन द्वारा अतिरिक्त कक्ष और खेल मैदान के लिए स्वीकृति मिल सकती है। लेकिन इन निर्माण कार्यों के लिए विद्यालय के पास एक इंच भी जमीन नहीं थी।