सावधान! डिस्पोजल कप में चाय की चुस्की छीन लेगी आंखों की रोशनी

सावधान! डिस्पोजल कप में चाय की चुस्की छीन लेगी आंखों की रोशनी

सस्ते पेपर कप के चक्कर में खस्ती हो जाएगी लोगों की हालत

कुल्हड़ बनाने वालों को राज्य सरकारों को देनी चाहिए सब्सिडी

जनता की आवाज: मिट्टी के कुल्हड़ का उपयोग होना चाहिए अनिवार्य

अरविंद मिश्रा

भोपाल, सावधान! डिस्पोजेबल पेपर कप में गर्म पेय पदार्थ, दूध-चाय और कॉफी का पीना जानलेवा है। यही नहीं, यह लोगों को दृष्टिहीन भी कर सकता है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि आईआईटी खडग़पुर के शोधकर्ताओं ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। गौरतलब है कि आज के समय में अधिकांश लोग कॉच की ग्लास में चाय-कॉफी पीने से परहेज करते हैं। अगर दुकानदार कॉच की ग्लास में चाय देते हैं तो लोग उसे पीने से इंकार कर देते हैं।

वहीं अगर दुकानदार चाय-कॉफी डिस्पोजल पेपर कप में देता है तो लोग उसे ज्यादा पसंद करते हैं। क्योंकि वो कप यूज एंड थ्रो रहता है। डिस्पोजल कप में चाय-कॉफी पीने वाले कुछ लोगों का मानना है कि कॉच की ग्लास में एक दिन में लगभग 50 लोग चाय पीते हैं। लेकिन दुकानदार उस ग्लास को सामान्य पानी से धोकर लोगों का चाय-कॉफी पिलाते हैं।  जबकि डिस्पोजल कप का एक बार ही इस्तेमाल रहता है। इसलिए उसे ज्यादा उपयोगी मानते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि उसका लगातार इस्तेमाल लोगों की आखों की रोशनी तक छीन सकता है।  दरअसल, आईआईटी, खडग़पुर की एक रिसर्च में पाया गया है कि इन डिस्पोजेबल पेपर कप में गर्म पेय पदार्थ पीना सही नहीं है, क्योंकि इन पेपर कप से माइक्रोप्लास्टिक सहित कई हानिकारक तत्व निकलते हैं। 

शोध के दो तरीके  

शोधकर्ताओं ने इस स्टडी के लिए दो तरीके आजमाए। एक- 85 से 90 सेल्सियस तापमान वाला गर्म पानी एक डिस्पोजेबल पेपर कप में डाला गया और 15 मिनट तक इंतजार किया गया। इसके बाद पानी की जांच की गई, जिसमें माइक्रोप्लास्टिक्स के कण मिले। दूसरा- 30 से 40 डिग्री सेल्सियस के गर्म पानी में एक पेपर कप डुबोया। इसके बाद पेपर लेयर से सावधानी से हाइड्रोफोबिक फिल्म को अलग किया गया और गर्म पानी को 15 मिनट तक रखा गया। साथ ही, प्लास्टिक फिल्म के फिजीकल, केमिकल और मैकेनिकल बदलावों की जांच की गई।

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि ये माइक्रोप्लास्टिक के कण विषाक्त पदार्थों के वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। इनमें पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम जैसे जहरीले भारी धातु और कार्बनिक यौगिक शामिल हैं। जब इन विषाक्त पदार्थों को निगला जाता है, तो स्वास्थ्य के लिए काफी गंभीर हो सकते हैं।

मिट्टी के कुल्हड़ को मिले बढ़ावा

'जागत गांव हमारÓ से एक खास बातचीत के दौरान भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ल ने कहा कि आईआईटी खडग़पुर के शोधकर्ताओं ने जो खुलासा किया है, वह बिलकुल सही है। लेकिन डिस्पोजल पेपर कप का इस्तेमाल रोकने के लिए सरकारों का आगे आना होगा। अगर सरकार मिट्टी के कुल्हड़ का इस्तेमाल अनिवार्य कर दे तो इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार का अवसर बढ़ जाएंगे। लोग गांवों में मिट्टी के वर्तन बनाने लगेंगे। इससे हमारी संस्कृति भी बची रहेगी और एक स्वस्थ्य पीढ़ी का निर्माण भी होगा। सरकार को चाहिए कि मिट्टी के कुल्हड़ बनाने वालों को ज्यादा से ज्यादा सब्सिडी दे ताकि लोग अधिक से अधिक उत्पादन करें। 

इस तरह बनाते हैं पेपर कप

यह पेपर कप एक महीन हाइड्रोफोबिक फिल्म से तैयार किए जाते हैं, जो अममून प्लास्टिक (पॉलीथिलेन) से बनते हैं। कई दफा पेपर कप में तरल पदार्थ को रोकने के लिए को-पॉलीमर्स का इस्तेमाल किया जाता है। आईआईटी, खडग़पुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर सुधा गोयल, रिसर्च स्कॉलर वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसफ ने यह अध्ययन किया और पाया कि पेपर कप में 15 मिनट तक गर्म पानी रखने से माइक्रोप्लास्टिक की पतली परत क्षीण हो जाती है।

इनका कहना है
अभी हाल ही में किया गया यह अध्ययन बताता है कि ऐसे उत्पादों के इस्तेमाल से पहले सावधानी पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। हमें पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को खोजना होगा, लेकिन साथ ही हमें हमारे पारंपरिक व स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देना होगा।
प्रो. वीरेंद्र के तिवारी, निदेशक, आईआईटी, खडग़पुर

हमारा अध्ययन बताता है कि एक पेपर कप में 85 से 90 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला 100 मिली गर्म तरल पदार्थ अगर 15 मिनट तक रहता है तो उसमें 25 हजार माइक्रोन आकार के माइक्रोप्लास्टिक के कण निकले। इसका मतलब है कि एक औसत व्यक्ति अगर दिन में तीन बार पेपर कप में चाय या कॉफी पीता है तो वह अपने शरीर के भीतर 75 हजार सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक के कण पहुंचा रहा है, जो एक व्यक्ति के आंखों को दृष्टिहीन तक कर सकता है।
प्रो. सुधा गोयल, आईआईटी, खडग़पुर  

प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं है। ये पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। इसलिए बायोडिग्रेडेबल चीजों को बढ़ावा देना चाहिए। इको फेंडली हों। हमार प्रयास है कि भोपाल डिवीजन के अंतर्गत जितनी भी दुकानें हैं, उन सब में प्लास्टिक पेपर कप का उपयोग न किया जाए। साथ ही मिट्टी से बने कुल्डड़ के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। रेलवे पहले से ही अधिकांश स्टेशनों में कुल्हड़ के इस्तेमाल को बढ़ाव दे रहा है।
विजय प्रकाश, सीनियर डीसीएम, रेलवे, भोपाल डिवीजन

दुकानदार घटिया क्वालिटी का प्लास्टि कप इस्तेमाल करते हैं। इसलिए ये ज्यादा नुकसानदेह होते हैं। इसमें गर्म चीजों का इस्तेमाल घातक होता है। इसके उपयोग से पेट, स्किन और किडनी जैसी कई गंभीर बीमारियां होती हैं। रही बात पेपर कप की तो यह पूर्णत: सेनेटाइजेन न हो पाने कारण सुरक्षित नहीं है। क्योंकि ये कई हाथों से गुजरकर हम तक पहुंचता है। सबसे उपयोगी मिट्टी के कुल्हड़ होते हैं। सिर्फ ध्यान रखना चाहिए कि जब इस्तेमाल करें तो पानी से धो लें।
डॉ. रतन कुमार वैश्य, सीनियर फिजीशियन, भोपाल

डिस्पोजल पेपर कप का उपयोग कैंसर का निमंत्रण है। इससे हमारी कृषि योग्य भूमि कुछ दिनों में बजर हो जाती है, क्योंकि ये कभी गलता नहीं है। ये धीरे-धीरे उपजाऊ जमीन की उर्वरा शक्ति को खत्म कर देता है। यही नहीं, मिट्टी पर एक परत का रूप धारण कर लेता है। इसलिए ऐसे सभी डिस्पोजल को बैन कर देना चाहिए जो स्वत:ही न समाप्त हो जाएं। डिस्पोजल से गर्म पेय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सरकार मिट्टी के कुल्हडों का बढ़ावा दे।  
इंजी. कुलदीप मिश्रा, एमटेक, सिविल, जल विद

हमारे यहां लोग चाय-कॉफी पीना डिस्पोजल और कुल्हड़ में ही पसंद करते हैं। कोरोना काल से लोगों में यह डर हो गया है कि कॉच की ग्लास अच्छे से साफ नहीं की जाती है। इसलिए लोग ग्लास से परहेज करते हैं। रही बात हमारे फायदे की तो हमें कॉच के ग्लास में ही फायदा होता है। चूंकि एक डिस्पोजल पेपर कप हमें 40 पैसे में, मिट्टी का कुल्हड़ डेढ़ रुपए में और कॉच का ग्लास दो रुपए 25 पैसे में पड़ता है।
प्रशांत कोरे, कैफे रंजीत, एमपी नगर जोन-1, भोपाल