भंग गौ-सदन बहाल हो जाएं तो सड़क पर नहीं दिखेंगी गाय

भंग गौ-सदन बहाल हो जाएं तो सड़क पर नहीं दिखेंगी गाय

भोपाल। मैं गौ संवर्धन बोर्ड की संवैधानिक नियमावली के दायरे में और शिवराज सरकार के अधिकारों की परिधि में ही रहकर प्रदेश में गायों के संरक्षण एवं संवर्धन के दायित्वों का निर्वहन करने में सदैव तत्पर रहता हूं। मध्यप्रदेश में सिर्फ सरकार गौशालाएं नहीं चला सकती है। हां, वो अपने हिस्से का काम बाखूबी कर रही है। गौ-पालन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्सहित कर रही है। गौशाला के संचालन और उनके संरक्षण के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं, एनजीओ और आम लोगों को आगे आना होगा। तभी इनका संचालन-संरक्षण सही से होगा। हम इसके लिए विधिवत रूप से जरूरतमंदों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। यह बात मध्यप्रदेश गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने 'जागत गांव हमारÓ के संमाचार संपादक अरविंद मिश्र से खास बातचीत के दौरान कही। 

स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने कहा कि आज मप्र ही नहीं, बल्कि देशभर में आवारा गौ-वंश सबसे बड़ी समस्या बन गया है। इसके लिए लोग सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि लोग गाय तो पालते हैं, लेकिन दूध दुहने के बाद उसे छोड़ देते हैं। हां, अब इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने टैगिंग व्यवस्था शुरू कर दी है। जिसमें पालतू गायों के कान में पीला टैग लगाया जाता है और आवारा गौ-वंश को लाल टैग लगाया जाता है। हालांकि हम चाहते थे कि टैगिंग व्यवस्था के बजाए चिप लगाई जाए। अब एक व्यवस्था यह भी की गई है कि अगर पशु पालक अपनी गाय को छोड़ता है तो पकड़े जाने पर उससे अर्थदंड लेकर छोड़ दिया जाता है, लेकिन अगर तीसरी दफा वही गाय सड़क पर मिले तो उसे कांजी हाउस भेज दिया जाता है। अखिलेश्वरानंद ने एक सवाल पर कहा कि आपको जानकर हैरानी होगी कि अविभाज्य मध्यप्रदेश में दस गौसदन थे। जिसमें 72 हजार एकड़  जमीन थी। लेकिन तत्कालीन सरकार उसे भंग कर दिया। हां, अगर आज वो सदन बहाल कर दिए जाएं तो मैं दावा करता हूं कि मध्यप्रदेश में एक भी गाय सड़क पर नहीं दिखेगी।

सरपंचों ने गौशाला संचालन और संरक्षण से खड़े कर दिए हाथ

गौशालाओं में अब 40 फीसदी दुधारू गायों को मिलेगा बढ़ावा

सर्वाधिक गौवंश मप्र में  

अखिलेश्वरानंद गिरी ने कहा कि हमारा प्रदेश गायों के पालन, संरक्षण, संवर्धन के लिए सर्वाधिक अनुकूल है। देश का सर्वाधिक गौवंश मप्र में है। देश के किसी भी राज्य में इतना विशाल जंगल (95 हजार वर्ग किमी का वन्य परिक्षेत्र) नहीं है। शासन की गौ-पालन की स्पष्ट नीति, प्रदेश का मुखिया शिवराज सिंह चौहान गौ-भक्त, गायों के प्रति संवेदनशील, कृषि उत्पादन के क्षेत्र में मप्र अग्रणी राज्य, यहां का जैविक उत्पादन व उसकी मांग दूसरे राज्यों में है। 

सरकार नहीं चला सकती गौशाला, लोगों को आना होगा आगे
सरपंचों ने खड़े कर दिए हाथ

उन्होंने कहा कि जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार आई तो उसके मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रेवड़ी की तरह गौ-शालाएं खोलने और संचालन की घोषणा कर दी। लेकिन आज हालात यह हो गए हैं कि उनकी नीतियों के कारण पंचायतों में गौशालाओं की देखरेख और गौ संरक्षण करने से सरपंचों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कमलनाथ ने जो गड्ढे किए थे अब हम उन्हें पाट रहे हैं। 

जबलपुर में बन रहा गौ-वंश वन्य बिहार

मप्र के संस्कारधानी जबलपुर में 530 एकड़ में गौ-वंश वन्य बिहार विकसित किया जा रहा है। इसके बन जाने से यहां के किसानों को आवारा गौवंश से छुटकारा मिल जाएगा। चूंकि उनकी फसल पूरी तरह से सुरक्षित हो जाएगी। 

गौ-संवर्धन बोर्ड के नवाचार

अखिलेश्वरानंद गिरी ने मप्र गौ-संवर्धन बोर्ड के नवाचारों के सवाल पर कहा कि हम कई तरह के नवाचार कर रहे हैं। इसके पीछे हमार लक्ष्य है कि गौ-शालाएं स्वरोजगारमुखी बनें, आत्मनिर्भर रहें। इसमें मुख्य रूप से अब मप्र की हर गौशाला में गोबर गैस प्लांट लगाए जाएंगे। गौशालाओं में बिजली तैयार की जाएगी। इससे बड़े पैमाने पर सीएनजी का उत्पान किया जाएगा। जिसे प्रत्साहित करने के लिए राज्य सरकार भरपूर सब्सिडी भी दे रही है। यही नहीं, हर गौ-शाला में सोलर पैनल लगाए जाएंगे। इससे बिजली भी पर्याप्त मात्रा में मिलेगी।

बनाएंगे गौ-काष्ठ

उन्होंने कहा कहा कि अब गौशालाओं में गौ-काष्ठ भी बनाया जाएगा। गौ-काष्ठ बनाने की मशीन 48 हजार की आती है। इसे कोई भी खरीद सकता है। जब गौ-काष्ठ बनने शुरू हो जाएंगे तो हमारे जंगल पूरी तरह से सुरक्षित हो जाएंगे। लकड़ी बचेगी और उसकी चोरी भी रुक जाएगी। साथ ही इसी गौ-काष्ठ से अंतिम संस्कार भी किया जाएगा। साथ गोबर के प्लांटों से निकलने वाले रॉ-मटेरियल से केचुआ खाद भी बनाई जाएगी।

दुधारू गाय को मिलेगा बढ़ावा

हम चाहते हैं कि मप्र में दुधारू गायों को बढ़ावा दिया जाए। इससे किसानों और पशु पालकों की आय बढ़ेगी। इसलिए अब राज्य की गौशालाओं में 40 प्रतिशत दुधारू गाय रखी जाएंगी। जो भारत की मूल नस्त की गाय हैं, उन्हें ही प्राथमिकाता दी जाएगी। जिसमें गिरि, डांगी, हरियाणा, कांकरेज, केनकथा,  ग्लाओ,  मालवी,  नागोरी,  निमरी,  राठी, रेड कंधारी, लाल सिंधी,  साहीवाल और थारपारकर शामिल हैं।

खेती में गौवंश की अहम भूमिका

एक सवाल पर उन्होंने कहा कि गौ-पालन एवं गौ-संरक्षण और गौ-सेवा भारत के प्रत्येक परिवार की स्वाभाविक और पारंपरिक अभिरुचि रही है। इसका सबसे बड़ा कारण भारतीय कृषि में गौवंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है। इसीलिए भारतीय परिवारों में गौ-पालन, गौ-सेवा, गौचारण की प्रवृत्ति रही है। गायों को संरक्षित करने के लिए गौग्रास निकालने की परम्पवरा को पुनर्जीवित करने का यह अनुकूल समय है।